Lord Krishna's idol feels hungry : भारत में सैकड़ों चमत्कारिक और रहस्यमय मंदिर हैं। ऐसा ही एक श्रीकृष्ण मंदिर भारतीय राज्य केरल के थिरुवरप्पु में स्थित है। कहते हैं कि यह मंदिर 1500 वर्ष पुराना है। कहते हैं कि इस मंदिर में रखी भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को 10 बार भोग लगाया जाता है। यदि भोग लगाने में थोड़ी भी देर हो जाती है तो यह मूर्ति भूख के मारे दुबली हो जाती है। जानिए क्या है इसका रहस्य।
10 बार लगाया जाता है भगवान के विग्रह को भोग :
कहते हैं कि यहां मौजूद भगवान के विग्रह को भूख सहन नहीं होती है, इसलिए उनके भोग की विशेष व्यवस्था की गई है।
उनको 10 बार नैवेद्य अर्पित किया जाता है। नैवेद्य अर्पित नहीं किया जाए तो उनका शरीर सूख जाता है।
यह भी जनश्रुति है कि प्लेट में से थोड़ा-थोड़ा करके नैवेद्य गायब हो जाता है।
मान्यता है कि यह नैवेद्य भगवान श्रीकृष्ण खुद ही खा लेते हैं।
आदिशंकराचार्य ने भी माना इस विग्रह का चमत्कार :
पहले यह मंदिर आम मंदिरों की तरह ग्रहण काल में बंद हो जाता था।
परंतु एक बार यह देखा गया कि ग्रहण खत्म होते-होते उनका विग्रह सूख जाता है, कमर की पट्टी भी नीचे खिसक जाती थी।
जब यह बात आदिशंकराचार्य को पता चली तो वे खुद इस स्थिति को देखने और समझने आए। सचाई को जानकर उन्हें भी आश्चर्य हुआ।
तब उन्होंने व्यवस्था दी कि ग्रहण काल में भी मंदिर को बंद नहीं किया जाए और प्रभु को समय पर भोग लगाए जाएं।
हालांकि इस कथा को विल्वमंगलम स्वामीयार से जोड़कर भी देखा जाता है।
24 घंटे में सिर्फ 2 मिनट के लिए बंद होता है मंदिर :-
आदिशंकराचार्य के निर्देश के बाद से ही यह मंदिर 24 घंटे में मात्र 2 मिनट के लिए ही बंद होता है।
मंदिर बंद करने का समय दिन में 11.58 बजे है। उसे 2 मिनट बाद ही ठीक 12 बजे खोल दिया जाता है।
पुजारी को मंदिर के ताले की चाबी के साथ कुल्हाड़ी भी दी गई है।
उसे निर्देश हैं कि ताला खुलने में विलंब हो तो उसे कुल्हाड़ी से तोड़ दिया जाए ताकि भगवान को भोग लगने में तनिक भी विलंब न हो।
कहते हैं कि 2 मिनट में भगवान नींद ले लेते हैं।
4. अभिषेक के दौरान भूख से सूख जाती है मूर्ति : भगवान के अभिषेक के दौरान भी इस अद्भुत घटना को देखा जा सकता है, क्योंकि अभिषेक में थोड़ा समय लगता ही है। उस दौरान उन्हें नैवेद्य नहीं चढ़ाया जा सकता है। अतः नित्य उस समय विग्रह का पहले सिर और फिर पूरा शरीर सूख जाता है। यह दृश्य लोगों में आश्चर्य पैदा करता है।
जो खाता है यहां का प्रसाद जीवन में कभी भूखा नहीं रहता :
यहां आने वाले हर भक्त को भी प्रसाद दिया जाता है। बिना प्रसाद लिए भक्त को यहां से जाने की अनुमति नहीं है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इनका प्रसाद जीभ पर रख लेता है, उसे जीवनभर भूखा नहीं रहना पड़ता है। श्रीकृष्ण हमेशा उसकी देखरेख करते हैं।
प्राचीन शैली के इस मंदिर के बंद होने से ठीक पहले 11.57 बजे प्रसाद के लिए पुजारी जोर से प्रसाद के लिए आवाज लगाते हैं।
इसका कारण मात्र यही है कि यहां आने वाला कोई भी भक्त प्रसाद से वंचित न रह जाए।
भूख लगने से जुड़ी कथा:
मंदिर से जुड़ी किंवदंतियां हैं कि वनवास के दौरान पांडव, श्रीकृष्ण की मूर्ति की पूजा करते और उनको भोग लगाते थे। उनका वनवास यही तिरुवरप्पु में समाप्त हुआ और मछुआरों के अनुरोध पर उन्होंने इस मूर्ति को यहीं छोड़ दिया था। मछुआरों ने ग्राम देवता के रूप में वहां पर श्रीकृष्ण को पूजना प्रारंभ किया। लेकिन जब वे संकटों से घिर गए तब एक ज्योतिष ने बताया कि आप लोग पूजा ठीक तरह से नहीं कर पा रहे हो। तब उन मछुआरों ने उस मूर्ति को एक समुद्री झील में विसर्जित कर दिया।
फिर कालांतर में केरल के एक ऋषि विल्वमंगलम स्वामीयार नाव से यात्रा कर रहे थे तो उनकी नाव एक जगह जाकर अटक गई। लाख प्रयास करने के बाद भी नाव आगे नहीं बढ़ी तब उन्होंने नीचे डूबकी लगाकर देखा तो वहां एक मूर्ति थी। उन्होंने उसे बाहर निकाला और नाव में रख लिया। फिर वे नाव से उतरकर एक वृक्ष के नीचे कुछ देर आराम करने के लिए रुके और पास में ही उन्होंने वह मूर्ति भी रख दी।
एक झपकी लेने के बाद जब वे उठे तो उन्होंने उस मूर्ति को भी उठाने का प्रयास किया, परंतु वह मूर्ति वहीं भूमि पर चिपक गई थी। ग्रामीणों की मदद से लाख कोशिश करने के बाद भी मूर्ति को वहां से हिला भी नहीं सके तो वहीं पर मूर्ति की प्रतिष्ठा कर दी गई। बाद में यह जाना गया कि इस मूर्ति में कृष्ण का भाव कंस को मारने के बाद के क्षणों का है जबकि उन्हें बहुत भूख लगी थी। इस मान्यता के चलते तभी से यहां पर निरंतर भोग लगाया जाता है।