Shaheed diwas 2024 : भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को क्यों दी गई थी फांसी?

Martyrs Day 23 March 
 
 
HIGHLIGHTS
 
• भारत माता के तीन वीर सपूतों का शहीद दिवस।
• शहीद दिवस पर देश के तीन क्रांतिकारी सपूतों को नमन।
 
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23 march shaheed diwas : 23 मार्च को भारत माता के तीन वीर सपूतों का शहीद दिवस है। इसी दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी। इन अमर शहीद क्रांतिकारियों के बारे में आम आदमी की वैचारिक टिप्पणी का कोई अर्थ नहीं है, बल्कि उनके उज्ज्वल चरित्रों को बस याद किया जा सकता है कि ऐसे मानव भी इस दुनिया में हुए हैं, जिनके आचरण एक किंवदंती हैं। 
 
शहीद भगत सिंह : भगत सिंह का जन्म 27 या 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा (अब पाकिस्तान) में हुआ था। लाहौर में 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेजी अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चंद्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। 
 
शहीद सुखदेव : सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907 को पंजाब को लायलपुर पाकिस्तान में हुआ। भगत सिंह और सुखदेव के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहने से इन दोनों वीरों में गहरी दोस्ती थी, साथ ही दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे। सांडर्स हत्याकांड में इन्होंने भगत सिंह तथा राजगुरु का साथ दिया था।
 
शहीद राजगुरु : राजगुरु का जन्म 24 अगस्त, 1908 को पुणे जिले के खेड़ा में हुआ था। शिवाजी की छापामार शैली के प्रशंसक राजगुरु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से भी प्रभावित थे। पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए राजगुरु ने 19 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में अंग्रेज सहायक पुलिस अधीक्षक जेपी सांडर्स को गोली मार दी थी और खुद ही गिरफ्तार हो गए थे।
 
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भगत सिंह ने अपने अति संक्षिप्त जीवन में वैचारिक क्रांति की जो मशाल जलाई, उनके बाद अब किसी के लिए संभव न होगी। बम फेंकने के बाद भगत सिंह द्वारा फेंके गए पर्चों में यह लिखा था- 'आदमी को मारा जा सकता है, उसके विचार को नहीं। बड़े साम्राज्यों का पतन हो जाता है, लेकिन विचार हमेशा जीवित रहते हैं और बहरे हो चुके लोगों को सुनाने के लिए ऊंची आवाज जरूरी है।' 
 
भगत सिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून-खराबा न हो तथा अंग्रेजों तक उनकी आवाज पहुंचे। निर्धारित योजना के अनुसार भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेंबली में एक खाली स्थान पर बम फेंका था। इसके बाद उन्होंने स्वयं गिरफ्तारी देकर अपना संदेश दुनिया के सामने रखा। उनकी गिरफ्तारी के बाद उन पर एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी सांडर्स की हत्या में भी शामिल होने के कारण देशद्रोह और हत्या का मुकदमा चला। 
 
यह मुकदमा भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में लाहौर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है। करीब 2 साल जेल प्रवास के दौरान भी भगत सिंह क्रांतिकारी गतिविधियों से भी जुड़े रहे और लेखन व अध्ययन भी जारी रखा। फांसी पर जाने से पहले तक भी वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। 23 मार्च 1931 को शाम 7.23 पर भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी दे दी गई। और भार‍त के इन 3 वीर सिपाहियों ने देश के लिए अपना बलिदान दे दिया। 
 
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