महिला स्वतंत्रता सेनानी : विजयलक्ष्मी पंडित

Vijaya Lakshmi Pandit : भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अपना अमूल्य योगदान देने वाली विजय लक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की बहन थीं। उनका जन्म इलाहाबाद में 18 अगस्त 1900 को हुआ था। उनकी शिक्षा इलाहाबाद में उनके घर में ही हुई। 
 
विजय लक्ष्मी पंडित, नेहरू जी से ग्यारह वर्ष छोटी और बहन कृष्णा से सात वर्ष बड़ी थीं। उन्होंने सन् 1921 में काठियावाड़ के सुप्रसिद्ध वकील रणजीत सीताराम पंडित से विवाह किया। उनकी संतान नयनतारा सहगल है। 
 
जब 1935 देश में भारत सरकार अधिनियम लागू हुआ और उसके तहत 1937 में कई प्रांतों में कांग्रेस की सरकारें बनी, जिसमें विजय लक्ष्मी पंडित को उत्तरप्रदेश, संयुक्त प्रांत का केबिनेट मंत्री बनाया गया। विजयलक्ष्मी पंडित अंग्रेजों के राज में किसी कैबिनेट पद पर रहने वाली प्रथम महिला थीं। 
 
उनका निर्वाचन 1937 में यूनाइटेड प्रॉविंसेज के विधानमंडल में हुआ और उन्हें स्थानीय स्व-प्रशासन एवं जन-स्वास्थ्य विभाग में मंत्री बनाया गया। जिसमें वे पहले 1939 से 1939 तक और बाद में 1946 से 1947 तक इस पद पर बनीं रहीं।  सन् 1940 से 1942 तक ऑल इंडिया वुमेन्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष के पद पर भी रही।
 
उन्होंने 1946 से 1968 के बीच में संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भी किया। इस दौरान विजयलक्ष्मी को 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा का अध्यक्ष चुना गया और वे इस पद पर आसीन होने वाली विश्व की प्रथम महिला बनीं। 1962 से 1964 तक वे महाराष्ट्र के राज्यपाल के पद रहीं तथा 1979 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया। 
 
भारत की स्वतंत्रता के बाद भी वे राजनयिक सेवाओं का हिस्सा बनीं तथा उन्होंने विश्व के अनेक देशों में भारत के राजनयिक के पद पर कार्य किया। विजय लक्ष्मी पंडित, वह शख्सियत थी, जिनके कारण देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू हुई थी। उनकी प्रमुख पुस्तकें द इवॉल्यूशन ऑफ इंडिया (1958) एवं 'द स्कोप ऑफ हैप्पीनेस-ए-पर्सनल मेमोएर हैं। 
 
उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनैतिक थी। जब सन् 1919 ई. में महात्मा गांधी 'आनंद भवन' में आकर रुके तो विजयलक्ष्मी उनसे बहुत प्रभावित हुईं। इसके बाद उन्होंने गांधी जी के 'असहयोग आंदोलन' में भी भाग लिया। और फिर आजादी के लिए कई आंदोलनों में भाग लेकर गांधी जी और नेहरू जी के साथ स्वतंत्रता संग्राम में लड़ाई लड़ीं। 
 
उन दिनों विजय लक्ष्मी हर आंदोलन में आगे रहतीं, जेल जातीं फिर रिहा होतीं और जेल से बाहर आकर पुन: आंदोलन में जुट जातीं। अंतिम दिनों में वे कांग्रेस सरकार की नीतियों की आलोचना करने लगी थीं। विजय लक्ष्मी का निधन 1 दिसंबर 1990 को 90 वर्ष की उम्र में देहरादून में हुआ था।

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