स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद उधम सिंह का शहीदी दिवस

Udham Singh : आज भारत के स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद उधम सिंह जी का शहीदी दिवस है। 31 जुलाई 1940 को आज ही के दिन ऊधम सिंह को फांसी की सजा दी गई थी। भारत के महान क्रांतिकारी के रूप में पहचाने जाने वाले उधम सिंह का जन्म पंजाब के हिसार जिले में 26 दिसंबर 1899 को हुआ था।
 
उधम सिंह के पिता का नाम सरदार तेहाल सिंह तथा माता का नाम नारायण कौर उर्फ नरेन कौर था। लोग उन्हें शेर सिंह के नाम से जानते थे। उधम सिंह ने अपने माता-पिता तथा अपने भाई मुक्ता सिंह के निधन के पश्चात शिक्षा दीक्षा के लिए खालसा अनाथालय में रहकर अपनी मैट्रिक तक की पढ़ाई पूर्ण की। 
 
उधम सिंह को देशभक्ति के गीत बहुत पसंद थे, तथा वे शहीद भगत सिंह के क्रांतिकारी कार्यों से प्रभावित होकर उनके साथ जुड़ गए तथा भगत सिंह जी के राहों पर चलने लगे। वे गदर पार्टी के साथ जुड़े तथा जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया और देश के लिए शहीद हो गए। 
 
जलियांवाला बाग नरसंहार कराने वाले जनरल डायर और उसके दो साथियों को उधम सिंह ने उस समय इंग्लैड में जाकर गोली मारी थी, जिसकी वजह से अंग्रेजों ने अमर शहीद उधम सिंह को फांसी पर लटका दिया था। जलियां वाला बाग हत्याकांड इतिहास का सबसे काला दिन है, जब अंग्रेजी अफसर जनरल डायर ने 1000 निहत्थे भारतीयों को गोलियों से भून दिया गया था। और ब्रिटिश अफसर जनरल डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। 
 
इस दिन के बाद से अंग्रेजों के शासन काल के अंत की शुरुआत हो गई थी, क्योंकि इस घटना के बाद से भारतीयों में वह आग जल उठी, जिसने सीधे ब्रिटिशों को इस देश से बाहर निकाल दिया। ब्रिटिश काल के अंत की इस घटना में मुख्य रूप से ऊधम सिंह थे। जिन्होंने सबसे पहले ब्रिटिशों के खिलाफ आवाज उठाई। फिर धीरे-धीरे लोग उधम सिंह से जुड़ते गए और कारवां बढ़ता गया।
 
दरअसल, 13 अप्रैल 1919, को जलियांवाला बाग में रॉलेट एक्ट को लेकर सभा हो रही थी, जिसका विरोध किया जा रहा था। उस दिन बैसाखी भी थी। जलियांवाला बाग से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर अमृतसर का प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर था, जहां पर मेला लगा था।

सभी अपने परिजन के साथ इस मेले में आए थे। तब जनरल डायर अपनी फौज को लेकर वहां पहुंच गए और बिना कोई सूचना के वहां मौजूद सैंकड़ों की तादाद में लोगों पर गोलियां बरसा दी थी। कई लोगों ने जान बचाने की कोशिश भी की लेकिन संभव नहीं हो सका। 
 
उस दौरान ब्रिटिश का दबदबा अधिक था, लेकिन हत्याकांड के बाद भारत में अलग ही लहर देखने को मिली। हाउस ऑफ कॉमन्स ने तो डायर के खिलाफ निंदा का प्रस्ताव पारित किया लेकिन हाउस ऑफ लॉर्डस ने प्रशंसा पत्र पारित किया। जिसकी काफी निंदा की गई है और निंदा प्रस्ताव पारित होने के बाद जनरल डायर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 
 
भारत में हुए इस हत्याकांड की पूरी दुनिया में कड़ी आलोचना हुई थी। इसके बाद भारत के दबाव के चलते सेक्रेटारी ऑफ स्टेट एडविन मॉन्टेग्यू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए एक कमीशन बनाया। जिसमें जनरल डायर के खिलाफ जांच की गई। 
 
इस घटना से उधम सिंह के अंदर एक आग सी जल गई थी। सैंकड़ों लोगों की मौत का बदला लेने लिए उधम सिंह लंदन गए। जहां उन्होंने कैक्सटन हॉल में जनरल डायर को गोली मारकर हत्या कर दी थी।

उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की बल्कि अपनी गिरफ्तारी दे दी। फिर उन पर मुकदमा चलाया गया और 4 जून 1940 को उन्हें हत्या का दोषी ठहराया गया। इस तरह भारत के एक खास शहीद के रूप में याद किए जाने वाले उधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को फांसी की सजा दी गई थी। 

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