क्या इंसान और डॉल्फिन वाकई दोस्त होते हैं?

बुधवार, 12 सितम्बर 2018 (12:02 IST)
धरती पर दो सबसे बुद्धिमान प्रजाति हैं- इंसान और डॉल्फिन। दोनों में परस्पर उत्सुकता देखी जाती है। कई लोग मानते हैं कि दोनों में दोस्ती हो सकती। क्या वाकई ऐसा है?
 
 
एक खास जुड़ाव
डॉल्फिन की दिमागी चतुराई और संवाद कायम करने की अद्भुत क्षमता की वजह से इसका इंसानों के साथ खास रिश्ता माना जाता है। लेकिन क्या ये वाकई इंसानों की तरह फिक्र करती है? और क्या वाकई डॉल्फिनों को हम अच्छे दोस्त लगते हैं?
 
 
आंखों में लगी एक्स-रे मशीन
इंसानों जैसी कुछ खूबियों की वजह से डॉल्फिन हमें रोचक लगती हैं। इससे भी रोचक बात यह है कि ये मछली शरीर के आरपार देख सकती है। मसलन, हमारे जैसे स्तनधारी जीवों के फेफड़े, कंकाल आदि को डॉल्फिनें आसानी से देख सकती हैं। इन्हें गर्भवती महिलाएं आकर्षित करती हैं और ये गर्भ में पल रहे शिशु के दिल की धड़कन भी सुन सकती हैं।
 
 
एक खूबसूरत दिमाग
डॉल्फिनों में दिमाग और शरीर का अनुपात इंसानों जैसा होता है। ये आसानी से दूसरी भाषा पहचान लेती हैं और साथ मिलकर समस्या को हल करती हैं। यही नहीं, शीशे में खुद को देखकर ये पहचान भी सकती है।
 
 
क्या इनकी कोई अपनी भाषा होती है?
डॉल्फिन आपस में संवाद करती हैं। लेकिन क्या इनकी कोई अपनी भाषा होती है? क्या एक दिन इंसान और डॉल्फिन आपस में बात कर सकते हैं? 1960 में विवादित शोधकर्ता जॉन लिली ने डॉल्फिनों में लाइसर्जिक एसिड डाइथाइलमाड यानि एलएसडी का इंजेक्शन लगा दिया। इस इंजेक्शन से आसपास के बारे महसूस होना कम हो जाता है। इंजेक्शन के बाद डॉल्फिनों ने बोलना जारी रखा, लेकिन इससे इंसान और डॉल्फिन के बीच संवाद की कोशिश बेकार गई।
 
 
सामाजिक होने से साथ एकांत-प्रिय जीव
आमतौर पर डॉल्फिनों को सामाजिक जीव माना जाता है और ये कम ही अकेले रहती हैं। हालांकि ऐसे कई मामले देखे गए हैं जहां डॉल्फिनों को अकेला पाया गया है और ये किसी से संपर्क करने की तलाश में रहती है।
 
 
इंसान-डॉल्फिन के बीच नाराजगी
डॉल्फिनों से संपर्क करना हमेशा खुशनुमा और दोस्ताना नहीं रहता है। कई बार ये इंसानों को समुद्र के बाहर निकालने की कोशिश करती हैं और कई बार समुद्र के अंदर ले जाना चाहती है। इंसानों द्वारा बार-बार प्रताड़ित किए जाने के बाद यह कहना मुश्किल है कि डॉल्फिनें खेल रही होती हैं या हमला कर रही होती हैं।
 
 
पर्यटन की आड़ में प्रताड़ना
कई लोगों का सपना होता है कि वे डॉल्फिन के साथ तैराकी करे और पर्यटन के जरिए यह संभव हो जाता है। हालांकि दुनिया भर के संस्थाएं इसे रोकने की कोशिश कर रही हैं क्योंकि इससे डॉल्फिन का उत्पीड़न होता है। पिछले दिनों हवाई में पर्यटन की आ़़ड़ में डॉल्फिनों की नींद खराब करने का मुद्दा उठा तो यह तय किया गया कि हर शख्स इस मछली से 45 मीटर की दूरी पर रहेगा।
 
 
इंसानों से है खतरा
डॉल्फिनों को इंसानों से कई तरह का खतरा है। 2015-16 में ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स के बीच से शार्क मछलियों को हटाने की मुहिम में 15 डॉल्फिनों की मौत हो गई थी। अन्य खतरों में बढ़ता प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, समुद्र के तापमान का बढ़ना आदि है जिससे डॉल्फिनों पर असर पड़ रहा है।
 

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