स्कूली बच्चों के साथ हादसा: पापा-मम्मी को फुरसत नहीं सुरक्षा देखने की

पहली बात तो बच्चों को पहले से ही टीचर समझा देंगे कि पुलिस अंकल से क्या-क्या पूछना है। फिर बच्चा कैसे पूछ सकता है कि पुलिस बनने के लिए कितने पैसे लगते हैं? ठीक उसी तरह जैसे मोदीजी मेरे गांव में आएं तो सड़ूजी का मकान पंचायत वाले रंगरोगन से चमकीला बना दे। ये कोई पुरानी हिन्दी फिल्म नहीं कि हीरो बचपन में अपने जालिम विलेन बाप का विरोध कर सत्याग्रह का झंडा उठा सके। ये दुनिया है। 
 
हाल ही में गुजरात राज्य के सूरत शहर के समीप एक दुर्घटना में कई बच्चे मारे गए। बच्चों के मरने की खबरें तो आए दिन छपती रहती हैं, मगर ज्यादा तादाद या वीभत्स दुर्घटनाएं झकझोर देती हैं। उक्त दुर्घटना को प्राकृतिक नहीं कहा जा सकता। ये ऐसी अकेली दुर्घटना नहीं है। विगत दिनों में स्कूली बच्चों के साथ ऐसी अनेक दुर्घटनाएं हुई हैं जैसे स्कूली बच्चे स्कूली बसों के हादसे का शिकार हुए आदि-इत्यादि। मां-बाप को केवल एक चिंता होती है बेटा हो या बेटी फिल्मी हीरो-हीरोइन की तरह फटाक से पढ़-लिखाकू आईपीएस या ऊंचे ओहदे की नौकरी करने लग जाए या फारेन रिटर्न (भले ही फारेन में मजदूरी करे) हो जाए। इसीलिए तो पढ़ बेटा पढ़... निजी मान्यता प्राप्त स्कूल-कालेज में पढ़, ट्यूशन पढ़। तेरे मम्मी-डैडी बेटा तुझे जैसे-तैसे (भ्रष्टचार की बदौलत) पढ़ा रहे हैं पढ़ ले।
 
 
पापा को क्या लेनादेना कि तेरी स्कूल में कितने अग्निशमन यंत्र हैं, कितने पानी के साधन है। बेटा तू जिस ट्यूशन स्कूल में जाता है जिस कोचिंग क्लास में जाता है वहां सुरक्षा के क्या-क्या उपाय हैं। इससे पापा को कुछ लेना-देना नहीं। पापा-मम्मी कभी अपने चिंटू चिंटी से ये पूछना गंवारा नहीं करते कि तुम्हारे कोचिंग क्लासेस (स्कूल कालेज) की दीवारें पक्की हैं। पानी की टंकी है? वगैरह-वगैरह। तो फिर संचालक क्यों फालतू इतना खर्च उठाए।

 
 
कान्वेंट-कोचिंग संचालक को तो मुनाफे से मतलब है। बस इस बात की कमी है कि शिक्षा की कोई मंडी नहीं लगती वगरना तो भाव के भाव में बिके। जितनी हाईक्लास शिक्षा उतने हाईक्लास दाम। बिक रही है, लेकिन बड़ी-बड़ी बिल्ंडिगों में। निजी स्कूल-कालेजों में। ये निजी स्कूल कालेज भी बड़े बड़े नेता अधिकारियों के (रिश्तेदारों के नाम से) है जो शिक्षा क्षेत्र को बढ़ावा देने का दावा करते हैं। इन निजी स्कूलों में गरीबों के लिए आरक्षित सीटों की व्यवस्था भी है। कितने गरीब बच्चे इनमें पढ़ रहे हैं। राम जाने। सवाल है सुरक्षा का।
 
 
स्कूली बच्चों की सुरक्षा की गाइड लाइन बनाई जाए और उस पर पूरी तरह से पालन कराया जाए तो आधे से ज्यादा निजी मान्यता प्राप्त स्कूल कालेज और कोचिंग क्लासेस ठप होने के आसार हैं। हादसा हो गया...कुछ दिनों तक ताजा रहेगा। और फिर किसी नए हादसे का इंतजार। जितनी बसों में ओवरलोडिंग नहीं होती होगी मेरे ख्याल से उससे कहीं ज्यादा खचाक निजी स्कूल कालेज या कोचिंग क्लासेस भर ली जाती होंगी।


अकेले मप्र में ही प्राथमिक से लेकर हाई एजुकेशन के लगभग 35 लाख से ज्यादा कोचिंग सेंटर या क्लासेस होंगी जिनमें से 40 प्रतिशत से ज्यादा खतरनाक स्थिति में होंगी। मगर देखने वाला कौन। सरकारी नुमाइंदों की जांच परख का तो सबको पता है। बच्चे की पहली शिक्षा घर से शुरू होने की बात कही जाती है। जब पापा ने ही...(चाहे बिजनेस मैन हो, अधिकारी, कर्मचारी या नेता हो) महंगाई के जमाने में 20 हजार (शायद कम है। ज्यादा भी हो सकती है।) माहवार कमाने वाले चार मंजिला बिल्ंडिग बना लेते हैं। घर में फ्रीज, टीवी, लग्जरी कार वगैरह...। अपनी कमाई के चक्कर में कभी अपनी संतान को अपना भ्रष्टाचार संहिता का पाठ नहीं पढ़ाया तो बच्चे को क्या लेना-देना। वह तो बस टाइम पर पढ़ने चला जाता है। अब स्कूल-कोचिंग क्लासेस की बस में या बिल्डिंग में हादसा हो जाए तो हो जाए।


(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)

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