शाहरुख खान : संघर्ष से लिखी सफलता की इबारत

शनिवार, 14 जनवरी 2012 (11:21 IST)
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बॉलीवुड बादशाह, लाखों करोड़ों दिलों की धड़कन बन चुके शाहरुख खान आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक हर उम्र के लोग उनकी फैन लिस्ट में शामिल हैं। खासतौर पर आज के युवा वर्ग पर उनका जादू सर चढ़कर बोलता है। एक सुपरस्टार के रूप में उन्हें मिली यह पहचान महज संयोग की बात नहीं है। इस सफलता के पीछे छिपी है उनकी कड़ी मेहनत और संघर्ष।

अपनी कामयाबी के सफर के दौरान शाहरुख ने जीवन के कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। अच्छे काम के लिए तारीफें और उम्मीद पर खरे नहीं उतर पाने वाले कामों के लिए आलोचनाओं को भी सहा है। जीवन में मिली नकामयाबियों और दुखों से वे निराश नहीं हुए बल्कि उन पलों को भी उन्होंने सकारात्मक रूप से लिया। वे कहते हैं कि 'मैं भगवान को सुख और दुख दोनों के लिए धन्यवाद देता हूं क्योंकि जीवन में अगर दु्ख नहीं होंगे तो हम यह कभी नहीं जान पाएंगे कि खुशियां कितनी अच्छी हैं'।

प्रतिभा के धनी शाहरुख का जन्म 2 नवंबर 1965 में नई दिल्ली में हुआ। उनके पिता ‍ताज मोहम्मद खान एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उनकी मां का नाम फातिमा था। शाहरुख अपने आप को गुड लुकिंग नहीं मानते हैं, लेकिन उनकी स्माइल और डिंपल उनके ट्रेडमार्क बन गए हैं।

अपने अभिनय के द्वारा सफलता के झंडे गाड़ने वाले शाहरुख ने अपनी स्कूली पढ़ाई ‍दिल्ली के सेंट कोलम्बा स्कूल से की। पढ़ाई के साथ-साथ शाहरुख खेल व नाट्य कला में भी काफी अच्छे थे। स्कूल की तरफ से उन्हें 'सॉर्ड ऑफ ऑनर' से भी नवाजा गया जो प्रतिवर्ष स्कूल के सर्वश्रेष्ट विद्यार्थी और खिलाड़ी को दिया जाता है। इसके बाद उन्होंने हंसराज कॉलेज से अर्थशास्त्र की डिग्री एवं जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से मास कम्यूनिकेशन की मास्टर्स डिग्री हासिल की।

शाहरुख को बचपन से ही अभिनय का शौक था। बचपन में वे रामलीला में एक बंदर का रोल निभाया करते थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद शाहरुख ने अभिनय की शिक्षा प्रसिद्द रंगमंच निर्देशक बैरी जॉन से दिल्ली के थियेटर एक्शन ग्रुप में हासिल की। शिक्षक बैरी जॉन शाहरुख की सफलता का सारा श्रेय शाहरुख को ही देते हैं, लेकिन शाहरुख अपनी सफलता का सारा श्रेय अपने प्रशंसकों और उनसे मिले प्यार को देते हैं।

अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद शाहरुख दिल्ली छोड़ मुंबई में आ बसे। मुंबई में कई साल के संघर्ष के बाद उन्होंने अपने अभिनय की शुरुआत फौजी नामक एक सीरियल से की। 80 के दशक में उन्होंने कुछ सीरियल्स किए जिनमें फौजी और सर्कस मुख्य हैं।

यूं तो शाहरुख को हेमा मालिनी ने अपनी फिल्म 'दिल आशना है' के लिए साइन किया था, लेकिन 'दीवान' पहले रिलीज हुई, इसलिए उनकी पहली फिल्म इसे ही माना जाता है। 1992 में राजकंवर के निर्देशन में बनी 'दीवाना' बॉक्स ऑफिस पर सफल रही और इसी फिल्म के बाद शाहरुख को इंडस्ट्री में पहचान मिली।

इस फिल्म में अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ नवोदित कलाकार का फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया। डर, अंजाम और बाजीगर में नकारात्मक किरदार निभा कर उन्होंने काफी नाम कमाया। 1995 में यश चोपड़ा की ‍डीडीएलजे से उनकी रोमेंटिक छवि को बल मिला और उनकी इस छवि ने शाहरुख को रोमांस के बादशाह के रूप में बॉलीवुड में स्थापित कर दिया। शाहरुख को आठ बार सर्वश्रेष्ट अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।

मेहनत और लगन से काम करने के अलावा शाहरुख रिस्क लेने से भी कभी पीछे नहीं हटते। हाल ही में उन्होंने अपने बैनर तले भारत की सबसे महंगी फिल्म माने जाने वाली रा.वन का निर्माण किया।

शाहरुख ने एक हिन्दू लड़की गौरी से शादी की। शाहरुख और गौरी का प्रेम उस समय का है, जब वे अपनी पहचान बनाने के लिए दिल्ली-मुंबई के चक्कर काटते थे।

शाहरुख अपनी अम्मी के बहुत करीब थे। उनकी अम्मी हमेशा कहा करती थीं कि अपने खर्चे कम करने के बजाय अपनी कमाई बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। शाहरुख के लिए ये शब्द किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं। शाहरुख आज सफल अभिनेता और बिजनेसमैन हैं तो उसके पीछे कहीं न कहीं उनकी अम्मी की सीख है।

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