चौरासी महादेव में से एक डमरुकेश्वर महादेव की पौराणिक गाथा रूद्र नाम के एक महाअसुर और उसके पुत्र वज्रासुर से शुरू होती है। वज्रासुर महाबाहु तथा बलिष्ठ था। शक्तियां अर्जित करने वाले इस महाअसुर के दांत तीक्ष्ण थे और इसने अपनी शक्तियों के बल पर देवताओं को उनके अधिकार से विमुख कर दिया एवं उनके संसाधनों पर कब्जा कर उन्हें स्वर्ग से निकाल दिया।
नकारात्मक शक्तियों के चलते पृथ्वी पर वेद, पठन-यज्ञ आदि बंद हो गए और हाहाकार मच गया। तब सभी देवता-ऋषि आदि एकत्रित हुए और असुर वज्रासुर के वध का विचार किया। इसी उद्देश्य के साथ देवताओं और ऋषियों ने मंत्र साधना की। तब तेज प्रकाश के साथ एक ‘कन्या’ उत्पन्न हुई। यह जानने पर कि वज्रासुर का नाश करना है, उसने अट्टाहास किया जिससे बड़ी संख्या में कन्याएं उत्पन्न हुईं। उन सभी ने मिलकर वज्रासुर से युद्ध किया। कुछ समय पश्चात दैत्य कमजोर होने लगे और युद्ध स्थल से भागने लगे। यह देख वज्रसुर ने तामसी नामक माया का इस्तेमाल किया। माया से घबराकर वह कन्या उन समस्त कन्याओं के साथ महाकाल वन में आ गईं। वज्रासुर भी अपनी सेना लेकर वहीं आ गया।
इस बारे में नारद मुनि ने विस्तार से सब शिवजी को बताया। शिवजी ने उत्तम भैरव का रूप धारण किया और वे महाकाल वन आए। वहां दानवों की सेना देखकर उन्होंने अपना भयंकर डमरू बजाया। डमरू के शब्द से उत्तम लिंग उत्पन्न हुआ, जिससे निकली ज्वाला में वज्रासुर भस्म हो गया। उसकी सेना का भी नाश हो गया। डमरू से उत्पन्न होने के कारण वह लिंग डमरुकेश्वर कहलाया।