श्री कर्कोटेश्वर महादेव की स्थापना की कथा कर्कोटक नामक सर्प और उसकी शिव आराधना से जुड़ी हुई है। श्री कर्कोटेश्वर महादेव की कथा में धर्म आचरण की महत्ता दर्शाई गई है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार सर्पों की माता ने सर्पों के द्वारा अपना वचन भंग करने की दशा में श्राप दिया कि सारे सर्प जनमेजय के यज्ञ में जलकर भस्म हो जाएंगे। श्राप से भयभीत होकर कुछ सर्प हिमालय पर्वत पर तपस्या करने चले गए, कंबल नामक एक सर्प ब्रह्माजी की शरण में गया और सर्प शंखचूड़ मणिपुर में गया। इसके साथ ही कालिया नामक सर्प यमुना में रहने चला गया, सर्प धृतराष्ट्र प्रयाग में, सर्प एलापत्रक ब्रह्मलोक में और अन्य सर्प कुरुक्षेत्र में जाकर तप करने लगे।