हम हैं जागरूक नारी

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नववर्ष की नई प्रभात के साथ हम सभी एक नई सोच व नए सपनों को लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं। इन सपनों को हकीकत में बदलने के लिए कदम बढ़ाने से पहले हमारे लिए बीते बर्ष का आकलन करना भी नितांत आवश्यक है। आज आवश्यकता है कि हम बीते वर्ष की गलतियों से सबक लें व उनमें सुधार कर उन्नति के शिखर की ओर कदम बढ़ाएँ। अब वक्त आ गया है जब हम यह सोचें कि हमने बीते वर्ष में क्या खोया और क्या पाया?

वर्ष 2008 हमारे देश के लिए कैसा रहा, आज यह एक गंभीर चिंतन का विषय है, जिस पर हर भारतीय को विचार मंथन करना ही होगा। यह वर्ष जहाँ एक ओर भारत की राजनीति में एक बड़ी उथल-पुथल और देशभर में हुए आतंकवादी धमाकों के नाम रहा, वहीं दूसरी ओर वर्ष 2008 में भारत ने चाँद पर फतह, ओलिंपिक में शानदार जीत तथा कई बड़े सम्मानों का सेहरा बाँधा।

  इन धमाकों के बाद हमने दुनिया को अपना ज़ज़्बा, अपनी एकता व अपनी ताकत दिखाकर यह सिद्ध कर लिया है कि दुश्मन भले ही लाख कोशिश कर ले पर वह हमारी इंसानियत, हमारे देशप्रेम व एकता की बुनियाद को नहीं हिला सकता है। हम निरंतर आगे बढ़ते रहे हैं व बढ़ते रहेंगे।      
आज हर भारतीय अपने देश को लेकर गंभीर हो चला है। जहाँ एक ओर चंद्रयान ने हमारी ख्वाहिशों को हकीकत के पंख लगाए, वहीं दूसरी ओर साल के अंत में हुए मुंबई आतंकवादी हमलों ने हमारे देश को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया।

हर किसी ने इस वर्ष की अपने-अपने ढंग से व्याख्या की। कुछ लोगों ने इस वर्ष को सकारात्मक दृष्टि से लिया तो कुछ ने इसे भारत की सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर एक बदनुमा धब्बा कहा। इस संबंध में हमने विविध क्षेत्रों में सक्रिय महिलाओं से उनकी राय जानी। आइए जानते हैं कि ये महिलाएँ क्या सोचती हैं वर्ष 2008 के बारे में -

सुरक्षा का बीड़ा उठाने वाला पुलिस महकमा :-

सीमाला प्रसाद (सी.एस.पी., इंदौर) :- 'मेरी दृष्टि में वर्ष 2008 बहुत अच्छा रहा। उतार-चढ़ाव तो देश में हर वर्ष होते रहते हैं इसलिए केवल कमियों का रोना रोकर हम कभी आगे नहीं बढ़ सकते हैं। यह वर्ष हमारे देश के लिए खेल की दृष्टि से बहुत ही अच्छा रहा। इस वर्ष हमारे देश के खिलाडि़यों ने कामयाबी के उच्च शिखर को छुआ। रही आतंकवाद की बात तो यह हमारे देश के लिए एक बड़ा चैलेंज रहा। मेरा मानना है कि इससे निपटने के लिए आज जो कदम उठाए गए हैं, निश्चित ही सराहनीय हैं। यह बहुत अच्छी बात है कि इसे हमने गंभीरता से लिया और इसकी आड़ में कई छोटे-बड़े विवाद सब गुम हो गए और आतंकवाद ही हमारे लिए सबसे बड़ा चैलेंज बन गया। मुझे इस बात की खुशी है कि इन धमाकों के बाद हर नागरिक अपने लिए कम बल्कि अपने देश के लिए अधिक सोचने लगा है।'

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अमोग्ला अय्यर (प्रोबेशनल आई.पी.एस. अधिकारी, महू) :- 'वर्ष 2008 मेरी दृष्टि में अच्छे व बुरे अनुभवों वाला रहा। एक पुलिस ऑफिसर होने के नाते यदि कहा जाए तो यह वर्ष देश की आंतरिक सुरक्षा के संबंध में अति महत्वपूर्ण वर्ष रहा। यही वह वर्ष है जब पुलिस महकमे के कार्यों को पूरे देश में सराहा गया। केंद्र सरकार ने भी इस वर्ष पुलिस की ताकत को और अधिक बढ़ाने के लिए पुलिस महकमे में नए लोगों की भर्ती, नए हथियार मुहैया कराना, प्रशिक्षण देना आदि कई महत्वपूर्ण व सराहनीय कदम उठाए। इस वर्ष की महत्वपूर्ण खासियत यह है कि वर्ष 2008 में पहली बार आम जनता ने सार्वजनिक स्थलों पर एकत्रित होकर अपने विरोध को खुले स्वर में मुखरित किया। मुझे आशा है कि आने वाला वर्ष पुलिस महकमे व देश की जनता के लिए बहुत ही अच्छा रहेगा।'

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गायत्री आनन्द सोनी (सब इंस्पेक्टर, पुलिस ट्रेनिंग स्कूल, इंदौर) :- 'यह वर्ष हमारे देश के लिए बहुत ही बुरा रहा। आतंकवाद के नाम रहे इस वर्ष हमने इन धमाकों से कई सबक भी लिए हैं जो कि हमें आगामी वर्षों में इस प्रकार के हादसों की पुनरावृत्ति होने से रोकने में काफी मददगार सिद्ध होंगे।'


कलम के उम्दा कलाकार :-

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मेहरुन्निसा परवेज़ (ख्यातनाम लेखिका) :- 'मेरी मानें तो वर्ष 2008 अच्छा भी रहा और बुरा भी रहा। अच्छा इस दृष्टि से कि इस देश ने इस वर्ष बहुत कुछ उपलब्धियाँ हासिल की और बुरा इसलिए कि वर्ष के जाते-जाते मुंबई के ताज कांड ने हमें शर्मसार कर दिया, जिससे दुनिया के सामने हमारा कद बौना हो गया। जिस तरह किसी भी इमारत की एक ईंट भी हिलने पर पूरी बुनियाद हिल जाती है उसी प्रकार इन आतंकवादी धमाकों ने संपूर्ण देश के जनमानस को हिलाकर रख दिया।

हम भारतीयों की बुनियाद व संस्कार बहुत पुख्ता हैं लेकिन कोई बाहर का आदमी आकर इस बुनियाद को हिला दे तो इसे हम क्या कहेंगे? इसका मतलब यह है कि हरकत कोई और करे और शर्मसार कोई और हो, यह कैसी अजीब बात है? यदि महिलाओं के संदर्भ में बात कही जाए तो अब तक महिलाओं ने कामयाबी के उस शिखर को नहीं छुआ है, जिसकी वे हकदार हैं। मैं मानती हूँ कि आज तक महिलाओं ने जो पाया है वह अपने ही बूते पर पाया है। मैं उम्मीद करती हूँ कि वर्ष 2009 में हर महिला को उसका अधिकार मिले तथा वह स्वतंत्र रूप में अपनी एक पहचान बनाए।'

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मंगला रामचंद्रन (लेखिका संघ अध्यक्ष, इंदौर) :- 'मेरी व्यक्तिगत राय में वर्ष 2008 घटनाप्रधान वर्ष रहा। इस वर्ष देश में काफी उथल-पुथल रही। जहाँ एक ओर समाज में विसंगतियाँ बढ़ीं, वहीं आम व्यक्ति में सुरक्षा की भावना भी बढ़ी।

इस वर्ष चाँद पर हमारी फतह, खेलों में पदक जीतना आदि खुशियों को हम आत्मसात कर ही पाते कि घटनाक्रम फिर तेजी से बदल गए और शेयर बाजार में मंदी तथा आतंकवादी धमाकों से सारा जनमानस क्षुब्ध हो गया।'

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वंदिता श्रीवास्तव (लेखिका व गृहिणी) :- 'यह वर्ष देश के लिए स्वर्णिम वर्ष नहीं था। एक ओर जहाँ इस वर्ष हमने बहुत कुछ खोया, वहीं दूसरी ओर आतंकवादी हमलों के बाद जिस तरह से हमने अपनी एकता का प्रदर्शन किया, वह काबिले तारीफ रहा। पहली बार देश के लोगों का खुलकर विरोध करना निश्चित ही हमारी एकता का परिचायक है।'


सुरों की सरताज हैं हम :-

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आकांक्षा जाचक (गायिका) :- 'वर्ष 2008 की शुरुआत तो बहुत ही अच्छी रही लेकिन इसका आखिरी दौर बेहद ही दर्दनाक रहा। देश में हुए आतंकी हमलों से देश को एक बड़ा आर्थिक नुकसान सहना पड़ा। इन हमलों में वे लोग मारे गए, जिनका किसी से कोई सरोकार नहीं था। उसके बाद शेयर बाजार में अचानक छाई मंदी, राजनीतिक उथल-पुथल-इन सभी ने देश को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया।'

वर्षा झालानी (गायिका) :- 'इस वर्ष हमने जितना पाया नहीं, उससे कहीं अधिक खोया है। देश के कई शहरों में हुए आतंकवादी धमाकों में हमने कई अपनों को खोया है। इस वर्ष देश में जन-धन की जितनी हानि हुई उसकी भरपाई करना बहुत ही मुश्किल है।'

आकाशवाणी कलाकार :-

दविन्दर कौर मधु (वरिष्ठ उद्घोषक, आकाशवाणी इंदौर) :- 'वर्ष 2008 की शुरुआत तो बहुत अच्छी रही लेकिन इस वर्ष का अंत बेहद ही दु:खद रहा। वर्ष के अंत में मुंबई में जो आतंकवादी हमले हुए उसने पूरे देश को झकझोरा है और देश की आंतरिक व्यवस्था के नाम पर सवालिया निशान लगाया है। हमारे देश की आंतरिक व्यवस्था कितनी खोखली है, इसकी पोल इन धमाकों से खुली है। अब वक्त आ गया है कि हम इन हमलावरों से दो-चार हाथ कर एक बार में ही इनका सफाया कर दें ताकि बार-बार इस देश पर हमले न हों।'

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बीना पी. शर्मा (कार्यक्रम अधिशासी, आकाशवाणी इंदौर) :- 'यह वर्ष देश के लिए अच्छा नहीं रहा। इस वर्ष देश में कई स्थानों पर हुए धमाकों में कितने ही निर्दोष लोगों की जान गई। इन धमाकों को देखते हुए वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तो यही कहा जा सकता है कि कल कहाँ और क्या हादसा हो जाए। इस बारे में आज कुछ नहीं कहा जा सकता है।

आज हर माँ अपने बच्चे को स्कूल, कॉलेज या कहीं बाहर भेजने में डर रही है। उनके मन में यही भय कायम है कि उनका बच्चा घर वापस लौटकर आएगा या नहीं। आज इस देश का आमजन महफूज नहीं है। यदि हम महिलाओं की बात करें तो यह वर्ष उनके लिए बहुत अच्छा रहा। इस वर्ष भारत की कई महिलाएँ उच्च पदों पर आसीन हुईं। आज हमारे देश की राष्ट्रपति भी एक महिला है, जो हमारे लिए गौरव की बात है।'

कैमरे की मुस्तैद निगाहें :-

व्योमा मिश्रा (महिला फोटोग्राफर) :- 'इस वर्ष का अंत ऐसा रहा कि हमने जो कुछ वर्षभर में पाया, आतंकी धमाकों के कारण वे सारी उपलब्धियाँ एक पल में ही खो दीं। मेरे अनुसार इस वर्ष के जाते-जाते आतंकवाद देश की सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर एक बदनुमा दाग लगा गया।'

बैंकिंग क्षेत्र में सक्रिय :-

एनी पँवार (स्टेट बैंक ऑफ इंदौर ) :- 'वर्ष 2008 में देश में कई उतार-चढ़ाव आए परंतु हमारी हिम्मत और सूझबूझ से हम इन सबसे उबर पाए। आखिरकार हम आशावादी भारतीय हैं और जहाँ चाह है वहीं राह है।'

निष्कर्षत: यह वर्ष एक विचार मंथन का काल रहा, जिसमें हर भारतीय ने अपने देश के बारे में गंभीरता से सोचा। जहाँ हमने इस वर्ष आतंकवाद के कहर में खून से लथपथ लाशों का ढेर देखा वहीं हमारे देश के धुरंधर खिलाडि़यों व बेहतरीन फिल्मी अदाकारों के द्वारा देश की झोली में डाले गए नायाब पुरस्कारों की चमक को भी देखा। यह मेरा भारत है जहाँ आशा के दीये प्रज्वलित होते हैं।

मौत का तांडव देखते हुए भी हममें भारतीयता अभी तक जिंदा है। आज भी हमें अपने देश पर नाज है। इन धमाकों के बाद हमने दुनिया को अपना ज़ज़्बा, अपनी एकता व अपनी ताकत दिखाकर यह सिद्ध कर लिया है कि दुश्मन भले ही लाख कोशिश कर ले पर वह हमारी इंसानियत, हमारे देशप्रेम व एकता की बुनियाद को नहीं हिला सकता है। हम निरंतर आगे बढ़ते रहे हैं व बढ़ते रहेंगे।