भारत में सूचना तकनीक के क्षेत्र में हुई उन्नति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज अमेरिका में स्कूल जाने वाले कई बच्चे अपने होमवर्क के लिए अब अपने माता पिता की मदद नहीं लेते बल्कि वे भारत के आईटी हब बेंगलुरु पर आधारित ई ट्यूटोरिंग सेवा पर जाते हैं। यह सिर्फ एक उदाहरण है ऐसी कई ऑनलाइन सेवाओं भारत की आईटी कंपनियों द्वारा चलाई जा रही हैं जिनका उपयोग पूरा विश्व धड़ल्ले से कर रहा है।
बाजार विनिमय दर के अनुसार भारत दुनिया की 12वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और क्रय शक्ति समता के अनुसार यह दुनिया की चौथी बड़ी अर्थ व्यवस्था है। भारत में हर साल 4 लाख इंजीनियर बनते है जिनमें से 1 लाख सूचना तकनीक क्षेत्र से हैं।
बेंगलुरु से घबराया अमेरिका
2008 में अमरीका के राष्ट्रपति चुने गए बराक ओबामा ने ऐसे समय में अमेरिका की बागडोर संभाली जबकि वो घोर मंदी से जूझ रहा था। तब उन्होंने अपने देश के आईटी महारथियों को खुले शब्दों में एक मंच से ये चेतावनी दी थी कि 'आप लोग चेत जाइए नहीं तो बेंगलुरु आपसे आगे निकल जाएगा।' दरअसल भारत की सॉफ्टवेयर बनने करने वाली कंपनियां बड़ी तेज रफ्तार से दुनिया के आईटी मार्केट में सिलिकॉन वैली के वर्चस्व को चुनौती दे रही हैं। इस प्रतिस्पर्द्धा में भारत की सिलिकॉन वैली यानी बेंगलुरु की सॉफ्टवेयर कंपनियों का योगदान सबसे ज्यादा है।
इस वर्ष में यहाँ की आईटी और बीपीओ कंपनियों के बदौलत न सिर्फ कर्नाटक में 300 मिलियन डॉलर का निवेश हुआ बल्कि सिलिकॉन वैली के ग्राहक (अमेरिकन एक्सप्रेस, स्विसआर, ब्रिटिश एयरवेज और ब्रिटिश टेलिकॉम) भी बेंगलुरु की ओर चले आए। नैसकॉम के सर्वे के अनुसार यहाँ की कंपनियाँ ई-बिजनेस सॉल्यूशन से 18 बिलियन डॉलर का कारोबार करेगी।
बेंडा-काल-वरु से बेंगलुरु बने इस शहर के सॉफ्टवेयर पार्क ऑफ इंडिया से संबंद्ध 1200 कंपनियाँ काम कर रही हैं, जो भारत की सॉफ्टवेयर
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निर्यात में 33 फीसदी की हिस्सेदारी करती हैं। इन कंपनियों में विश्व की दूसरी बड़ी कंपनी इन्फोसिस और तीसरी कंपनी विप्रो भी शामिल है। नासकॉम के मुताबिक दुनिया की आधी एसईआई सीएमएम लेवल -5 साफ्टवेयर कंपनी बेंगलुरु में हैं।
इस शहर का क्रेज कहें या जरूरत, याहू को भी अपना बिजनेस ऑफिस यहाँ खोलना पड़ा। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जबतक सिलिकॉन वैली हाइटेक समस्या की पहचान करता है, तब तक बेंगलुरु के सॉफ्ट इंजीनियर समस्या का समाधान ढूँढ लेते हैं। जैसे वाईटूके का रिजल्ट।
मंदी के इस साल में सिलिकॉन वैली में बेरोजगारी दर 7.6 से बढ़कर 9.4 हो गई मगर उस दौरान भी यहाँ पेशेवर इंजीनियरों की डिमांड बनी रही और आईटी एक्सपोर्ट ग्रोथ रेट 23 फीसदी रहा। हालात ऐसे हैं तो अमेरिकी प्रेजिडंट ओबामा भला चिंतित क्यों न होंगे।
आउटसोर्सिंग में बढ़ते कदम
2009 में, भारत की 7 कंपनियों ने विश्व की 15 शीर्ष तकनीकी आउटसोर्सिंग कंपनियों में जगह बनाई। मार्च 2009 में आउटसोर्सिंग ऑपरेशंस से होने वाली आय 60 अरब डॉलर थी और 2020 तक इसके 225 अरब डॉलर होने की संभावना है।
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अमरीका द्वारा आउटसेर्सिंग संबंधी कर नीतियों में बदलाव के बावजूद भारत में काम कर रही आउटसोर्सिंग कंपनियों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा एक सर्वेक्षण के अनुसार वैश्विक स्तर पर कारोबारी धारणा में सुधार से भारतीय आउटसोर्सिंग कंपनियों का कारोबार सुधरा है। 2009 की तीसरी तिमाही रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का आउटसोर्सिंग उद्योग माँग में सुधार के चलते आगे बढ़ रहा है।
रिसर्च फर्म एवरेस्ट ग्रुप का ताजा सर्वे बताता है कि अमेरिका और ब्रिटेन में महँगाई बढ़ रही है। इसके चलते उत्पादों की लागत बढ़ रही है और कंपनियों को अपने कर्मचारियों को ज्यादा सैलरी भी देनी पड़ रही है। इससे कंपनियों के कारोबार और मुनाफे पर काफी असर पड़ रहा है। अब इन कंपनियों को लग रहा है कि इससे बेहतर है कि भारत जैसे उभरते बाजार में आउटसोर्स करने से उनको दो फायदे होंगे। उत्पादों की लागत घटेगी और मुनाफा भी प्रभावित नहीं होगा। उत्तरी अमेरिका और ब्रिटेन की कुछ कंपनियों ने इस बारे में काम भी शुरू कर दिया है। वे आउटसोर्सिंग और सहायक कंपनियों की तलाश में भारत जैसे देशों की ओर देख रही हैं।
आउटसोर्सिंग गंतव्य के रूप में भारत को मिल रहे लाभ की वजह से भी उद्योग में तेजी आई है। भारत आधारित आपूर्तिकर्ता डिलीवरी क्षमता बढ़ाने तथा नए केंद्र खोलने पर निवेश कर रहे हैं।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि 2009 की तीसरी तिमाही में वैश्विक स्तर पर आउटसोर्सिंग गंतव्यों की संख्या 18 माह के उच्च स्तर पर पहुँच गई है। तीसरी तिमाही में 36 नए आपूर्ति केंद्रों की स्थापना हुई है, जबकि इससे पिछली तिमाही में 30 नए केंद्र बने थे।
दूरसंचार में अभूतपूर्व प्रगति
भारत अब चीन और अमेरिका के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा टेलीफोन नेटवर्क बन गया है। इसके अलावा भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा वायरलेस मार्केट है जिसमें वर्तमान में 43 करोड़ 50 लाख वायरलेस उपभोक्ता शामिल हैं और 2013 तक 77 करोड़ 10 लाख उपभोक्ताओं तक पहुँचने का लक्ष्य है।
इसके अलावा भारत में 3 करोड़ 76 लाख 60 हजार लैंडलाइन उपभोक्ता हैं। साथ ही 21 करोड़ 50 लाख पीसीओ भी हैं। 2006 से सितम्बर 2009 के दौरान टेलीफोन उपभोक्ताओं की संख्या 14 करोड़ 20 लाख से बढ़कर 50 करोड़ नौ लाख हो गई है। भारत में सेल फोन दरें दुनिया में सबसे कम हैं।
आज दुनिया में भारत को आईटी हब के रूप में उपयोग करने वाली कंपनियों की संख्या हर साल बढ़ रही है। इस वर्ष कई नई दूरसंचार कंपनियों ने भारत में अपना कारोबार बढ़ाया है इनमें एयरसेल, वोडाफोन और एस टेल शामिल हैं।