2009 : धार्मिक कट्टरता का नया रूप

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2009 में धर्म का नए तरीके से दोहन किया गया एक और जहाँ उसे बाजारवाद के चलते बेचा गया, वहीं उसके माध्यम से आतंक और धर्मांतरण के नए-नए रूप विकसित किए गए। राजनीतिज्ञ, कट्टरपंथी और तथाकथित धार्मिक लोग अच्छे शब्दों में गंदा खेल खेलते रहे। अब राजनीति और आतंक का धर्म से गहरा ताल्लुक हो चला है।

यह कहना कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, अब हास्यास्पद ही लगता है। विभिन्नता में भी एकता है यह नारा भी अब चुभने लगा है। भारत में कोई भी सरकार रही हो, उसने भारत की समस्याओं के हल पर गंभीरता से विचार और कार्यवाही कभी नहीं की। गैर-जिम्मेदार राजनीति के चलते हर वर्ष सम्याएँ बढ़ती गई।

धर्म को लेकर कट्टरता तो 2008 में ज्यादा देखने को मिली, लेकिन 2009 में धार्मिक कट्टरता का नया रूप देखने को मिला। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में जहाँ हिंदू, बौद्ध, ईसाई और सिख लड़कियों से जबरन विवाह करने के मामले प्रकाश में आए, वहीं भारतीय राज्य केरल के 'लव जेहाद' की गूंज भारतीय संसद में भी सुनाई दी। इस्लामिक कट्टरता का सिर्फ यही भयानक रूप देखने को नहीं मिला, खुद मुसलमानों पर भी पाकिस्तान और बांग्लादेश में धर्म के नाम पर अत्याचार किए गए।

पंजाब में डेरा सच्चा सौदा का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है। राख के नीचे आग अभी भी सुलग रही है, ऐसे में 7 दिसंबर 2009 में दिव्यज्योति संगठन के आशुतोष महाराज के सत्संग को लेकर लुधियाना को सिख कट्टरपंथियों की तलवारों ने लहुलुहान कर दिया। सिखों का आरोप है कि आशुतोष महाराज सिख गुरुओं के खिलाफ गलत प्रचार कर रहे हैं, जबकि कुछ लोगों का कहना है कि वे रामायण और गुरुग्रंथ साहिब की समानता की बात करते हैं। लुधियाना की हिंसा के खिलाफ दमदमी टक्साल और संत समाज ने भी पंजाब बंद का ऐलान किया था।

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सिख समाज भी आपस में लड़-झगड़ रहे हैं। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) को हरियाणा की सरकार और सिखों ने कहा है कि हमें अब हरियाणा की अलग शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी चाहिए। सितंबर में हरियाणा के लिए अलग एसजीपीसी की माँग कर रहे सिख नेताओं ने जब कुरुक्षेत्र के प्रतिष्ठित छठी पातशाही गुरुद्वारा की जिम्मेदारी संभाल ली तो इस पर शीर्ष निकाय एसजीपीसी ने इसका कड़ा विरोध किया। बस इसी बात को लेकर पंजाब में हिंसक झड़पे होती रही। यह मामला चल ही रहा था कि राजस्थान के सिखों ने गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अधिन रहना अस्वीकार कर दिया है।

एक दूसरे मामले की बात करें मालेगाँव विस्फोट का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा है कि अक्टूबर माह में दीपावली उत्सव की पूर्व संध्या पर गोवा के मडगाँव शहर में हुए विस्फोट का आरोप हिंदू दक्षिण पंथी संगठन सनातन संस्था पर मड़ा गया। सनातन संस्था ने इस विस्फोट की घटना से खुद को अलग करते हुए इसे अपने खिलाफ साजिश बताया, लेकिन पुलिस का कहना है कि सनातन संस्था की गतिविधियों के केंद्र रामनाथी गाँव स्थित आश्रम से कुछ आपत्तिजनक सामग्री मिली है।

अब हम बात करते हैं इस्लामिक कट्टरता की, मई माह में तालिबानी आतंकवादियों के खिलाफ जारी आक्रामक अभियान के कारण अफगानिस्तान और स्वात घाटी से बेघर हुए हिंदू और सिख परिवार पाकिस्तान के पंजाब के सरकारी शिविरों में ठहरे थे, लेकिन अब वे कहाँ हैं ये किसी को पता नहीं। एक प्रतिनिधि मंडल अनुसार उक्त शिविरों में लगभग 3100 प्रवासी परिवार थे, जिनमें से 468 सिख परिवार थे।

पाकिस्तान और बांग्लादेश में कई वर्षों से जारी इस्लामिक हिंसा और अत्याचार के चलते लाखों हिंदुओं ने पाकिस्तान छोड़कर भारत में शरण ले रखी है जिन्हें भारतीय नागरिकता देने का मुद्दा इस साल भी अधर में अटका रहा, लेकिन उन हिंदुओं का क्या,जिन्होंने इस्लाम के डर से 'कबूल है' कह दिया।

पाकिस्तान और बांग्लादेश के कई ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में इस वर्ष से एक नए तरह का ‍जिहाद चल रहा है, जो हिंदू बहुल इलाके हैं, उनकी स्त्री और भूमि को हड़पा जा रहा है। मानवाधिकार संगठन इस मामले पर चुप है। चुप तो वहाँ की सरकार भी है और भारत सरकार तो इस मामले में धृतराष्ट्र की भूमिका में ही नजर आती है।

बांग्लादेश में वर्ष 2001 के चुनाव के बाद हुई हिंसा के कारण आज भी वहाँ के बचे हुए हिंदू, बौद्ध और ईसाई समाज के नागरिकों में दहशत का माहौल है। उक्त चुनाव के बाद बांग्लादेश में हिंदू, बौद्ध, ईसाई सब दूसरे दर्जे के नागरिक हो गए हैं। हिंदुओं से भेदभाव और उनका दमन जारी है, जबकि भारत के पूर्वोत्तर में बांग्लादेश से आकर बस गए मुसलमानों ने वहाँ के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ दिया है। उन्होंने पूरे वर्ष भर छुटपुट हिंसा को अंजाम देकर वहाँ के स्थानीय नागरिकों का जीना दुभर कर रखा है।

असम में सक्रिय 38 गुटों में से करीब 17 गुट बांग्लादेशी मुसलमानों के हैं। घोषित तौर पर इनकी कमान भले ही किसी के भी हाथ में हो, लेकिन उनमें अहम भूमिका बांग्लादेशी मुसलमानों की ही है। ये असम के कई इलाकों में जबरन वसूली करते हैं। इन्हें हरकत उल जिहादी इस्लामी (हूजी) का पूरा समर्थन है। इन आतंकवादी संगठनों ने पूरे राज्य में जाल फैला लिया है। हर जगह उनके 'स्लीपर सेल' मौजूद हैं। 2009 में पूर्वोत्तर में जितने भी विस्फोट हुए उन सभी में 'हूजी' की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।

2008 की हिंसा में सुरक्षाकर्मी सहित 1415 लोग मारे गए थे। पूर्वोत्तर के राज्यों में असम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम एवं मणिपुर शामिल हैं। 2009 के आँकड़े अभी आना बाकी है। असम में अभी अक्टूबर में ही एक बम धमाके में छह लोगों की मौत हो गई थी। फिर नवंबर में असम के नलबाड़ी में हुए बम धमाकों में सात लोग मारे गए। इस तरह पूरे पूर्वोत्तर राज्य में हर मह छोटे और बड़े बम धमाके होते रहे हैं।

स्टोन कैंसर : देश के हजारों साल पुराने मंदिरों और मठों को जहाँ एक ओर कट्टरपंथ के चलते क्षतिग्रस्त कर दिया गया है, वहीं कोणार्क के सूर्य मंदिर, पुराने स्मारक, अशोक का स्तंभ, मंडोर की समाधियाँ, बेंगु का माताजी का मंदिर, खजराओं के मंदिर आदि सभी सीलन और खुरचन का शिकार हो गए है। इसी क्षरण के चलते उन्हें स्टोन कैंसर की बीमारी से ग्रस्त माना जाने लगा है। उक्त धार्मिक पुरा संपदाओं के संबंध में 2009 में पुरात्व विभाग की नींद खुली तो अब इनकी देखरेख की योजना बना रही है।

बाबा और गुरु : जहाँ एक ओर सुदर्शन क्रिया को करने के लिए नए नेटवर्क के चलते उनकी ग्रहक संख्या में इजाफा हुआ है, वहीं योग के प्रति बढ़ती रुचि का परिणाम यह हुआ कि बाबा रामदेव सहित अन्य नवागत योग-गुरुओं की चल पड़ी है। दूसरी और इस वर्ष फिर जोर-शोर के साथ तरुण सागर जी कड़वे प्रवचन कहते हुए देखे गए।

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जून में श्रीश्री रविशंकर को स्जेंट इस्ज्वान विश्वविद्‍यालय हंगरी ने अपने सर्वोच्च सम्मान 'प्रोफेसर हॉनोरिस कॉजा' (मानद प्रोफेसर) से सम्मानित किया। रविशंकरजी विश्वविद्‍यालय द्वारा आयोजित 10वें वार्षिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के मुख्‍य वक्ता थे। इस अवसर पर विश्वविद्‍यालय के उप-डाइरेक्टर प्रो. डॉ. लैस्जलो हॉरनॉक ने उन्हें इस सर्वोच्च सम्मान से नवाजा।

दूसरी ओर अक्टूबर में उन्हें वैश्विक शांति एवं मेलमिलाप में अंतरसंस्कृति संवाद को बढ़ावा देने के प्रयासों के लिए 'कल्चर इन बैलेंस अवार्ड 2009’ प्रदान किया गया। फोरम टिबेरिया द्वारा स्थापित यह पुरस्कार ड्रेस्डन (जर्मन) की मेयर हेल्मा ओरोज ने रविशंकर को प्रदान किया। दिसम्बर में आयोजित मेलबोर्न (आस्ट्रेलिया) में विश्व धर्म सम्मेलन में श्रीश्री ने भाषण दिया। कुल मिलाकर अंत का यह आधा वर्ष उनके लिए योरप दौरों का ही रहा। इसके पूर्व उन्होंने जेल में ध्यान शिविरों का आयोजन किया, माओवादियों से वार्ता की इच्छा जाहिर की, जैसी अनेक गतिविधियों में वे सक्रिय रहे।

इस वर्ष बाबा रामदेव ने एक कदम आगे बढ़ाया। उन्होंने योग के अलावा अब आयुर्वेद के माध्यम से स्वस्थ रहने के प्रचार को जोर-शोर से प्रचारित किया। देश में फैलती स्वाइन फ्लू की खतरनाक बीमारी से निपटने के लिए उन्होंने योग और आयुर्वेद उपचार बताते हुए कहा कि कपालभाति क्रिया और तुलसी के नियमित सेवन से इस रोग से बचा जा सकता है।

दूसरी और उन्हें 'बिग बॉस' में रहने का ऑफर भी आया था, लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया। सुनने में आया था कि ऐसा उन्होंने सेलिना जेटली के कार्यक्रम में शामिल होने की खबर के कारण किया। इससे पूर्व उन्होंने समलैंगिंक संबंधों को कानूनी मान्यता दिए जाने के खिलाफ भी आवाज उठाई, जबकि सेनिला ने पक्ष में, तो दोनों में ही इस बात को लेकर टकराव हो गया था।

उन्होंने भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापना भी की, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के लिए कार्य करना है। आदिगुरु शंकराचार्य के सिद्धांत 'ब्रह्म सत्यं, जगत मिथ्या' से असहमत होने के बाबा रामदेव के कथित वक्तव्य पर संत समाज जब नाराज हुआ तो उन्हें माफी भी माँगना पड़ी थी। कुल मिलाकर इस वर्ष वे ज्यादा विवादों में नहीं रहे।

धार्मिक चैनल का धर्म : धर्म के व्यावसायिकरण के दौर में टीवी चैनलों पर अब नए-नए प्रवचनकार, माला, अँगूठी, स्फटिक और ज्योतिष तथा वास्तु के सामान बेचने वालों की बाड़-सी आ गई है। फिल्मी गानों की तर्ज पर धार्मिक गानों के नए अलबम अब हर कोई बनाने लगा है। आस्था की जगह अब ऊब होने लगी है या कहें कि इस वर्ष धर्म चैनल के माध्यम से संदेह और भ्रम का विस्तार ही ज्यादा हुआ है।

अन्य धार्मिक गतिविधि : एक संपादक ने रामचरित मानस में 3000 व्याकरणिक और भाषाई गड़बड़ियाँ निकालकर अयोध्या के संतो को भड़का दिया। संपादक सहित रामचरितमानस के इस सुधरे हुए संस्करण को तैयार करने में तुलसी पीठ, चित्रकूट के जगद्गुरू रामनंदाचार्य स्वामी राम भद्रछाया को 8 साल की गहन रिसर्च करनी पड़ी।

दूसरी और सिख समाज के दसवें गुरु के दुर्लभ पलंग को जोधपुर के गुरुद्वारा साहिब से नांदेड़ (महाराष्ट्र) साहिब तक की यात्रा करके इंदौर के स्थानीय गुरुद्वारा इमली साहिब में लाया गया। इस पलंग के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी पड़ी। हाँ, इस बार जून में आयोजित अमरनाथ यात्रा शांतिपूर्ण संपन्न हो गई। उधर वैष्णोदेवी की यात्रा में भी खासा उत्साह रहा।

इसके अलावा जैन और बौद्ध मंदिरों में चोरी की वारदात भी पिछले वर्ष जैसी ही रही। खुशी की बात भी रही कि उत्तरप्रदेश के कुशीनगर स्थित बौद्ध मंदिर से चोरी गई 22 करोड़ रुपए की बुद्ध प्रतिमा को सुल्तानपुर के पीपरपुर इलाके से बरामद कर लिया गया। लेकिन इंदौर के गोयल नगर क्षेत्र स्थित जैन मंदिर में सशस्त्र डकैतों ने धावा बोलकर भगवान की प्रतिमा पर चढ़ाए गए लाखों रुपए मूल्य के चाँदी के जेवरात उड़ा लिए थे, उनका अभी तक पता नहीं चला है।

अंतत: त्योहारों की बात। इस वर्ष वैश्विक आर्थिक मंदि के चलते त्योहारों के प्रति कोई खास उत्साह देखने को नहीं मिला। नवरात्रि के गरबा उत्सव की जरूर धूम रही, लेकिन दीपावली के धमाकों की आवाज जोरदार नहीं रही। ईद और बकरीद पर भी महौल उतना उत्साहपूर्ण नहीं दिखा। हाँ, प्रकाश पर्व जरूर उत्साहपूर्ण नजर आया। नवंबर में साँची में बौद्ध उत्सव का आयोजन भी ज्यादा चर्चा में नहीं ही रहा। दूसरी और बालाजी के मंदिर, अजमेर की दरगाह और शिरडी की समाधि पर लोगों की भीड़ में इजाफा जरूर हुआ। क्रिसमस पर इस बार गोवा में ही उत्सवी माहौल देखने को मिला।

2008 में हावी रही धार्मिक कट्टरता

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