प्रीति सोनी हर पल बीतते लम्हों की तरह बीत गया एक और साल। जैसे हर साल बीतता है एक और साल, और देकर जाता है अपने साथ कई यादें, अनुभव, अवसर और उपलब्धियां, वैसे ही 2015 भी देकर गया। ढेर सारी खूबसूरत यादों और बेहतर उम्मीदों के साथ बिछड़ता साल कहीं खुशियों के रंग बिखेर कर गया, तो कहीं सिसकियों की गूंज। हमने विचार किया इस साल नारी की उभरती तस्वीर पर, उसकी निखरती प्रतिभाओं पर और साल 2015 में उसकी झोली में आई उन उपलब्धियों पर जिनकी वह अधिकारी थी। आइए, एक नजर डालते हैं उसके इस साल के सफर पर... विभिन्न क्षेत्रों के उन शिखर बिंदुओं पर, जहां इस साल स्त्री ने अपना वर्चस्व फैलाया... जिसकी चमक उसके मुखपृष्ठ पर आत्मविश्वास के रूप में जगमगा रही है... जानते हैं साल 2015 की 10 चर्चित महिलाओं को -
1. तिरंगे के सम्मान में समान कदमताल - दिव्या अजीथ
साल 2015 में नारी को अपना वह स्थान भी मिला, जहां यह सवाल ही समाप्त हो गया कि नारी का अस्तित्व कहां नहीं है। इस वर्ष हर क्षेत्र में तेजी से आगे कदम बढ़ाती नारी के सम्मान को उच्चतम गौरव तब प्राप्त हुआ, जब दिल्ली में आयोजित 26 जनवरी 2015 की परेड में पुरुषों के साथ-साथ महिला टुकड़ी को भी शामिल किया गया।
गर्व के साथ सर उठाए परेड में कदमताल करतीं इन तीनों टुकड़ियों में शामिल 154 महिला अधिकारियों का नेतृत्व जब दिव्या अजीथ ने किया तो भारत की गौरवान्वित मिट्टी की खुशबू वहां उपस्थित अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा तक भी पहुंची। हर क्षेत्र में अपने पंख पसारती स्त्री के गौरव को तब चार चांद लगे, जब दिव्या अजीथ के रूप में एक स्त्री ने पहली बार गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होकर सलामी दी।
केवल स्त्री ही नहीं, बल्कि पूरा देश स्त्री के इस मुकाम पर गौरवान्वित हुआ... और एक बार फिर फिर यह सवाल उठकर बुरी तरह कुचल गया कि नारी का अस्तित्व कहां नहीं है।
2. राजनीति में सुनीति का गठबंधन - सुषमा स्वराज
राजनीति के क्षेत्र में स्त्री की उपलब्धियां साल 2015 में भी मुखरित हुईं और उसने हर पल अपने नए आयाम गढ़े। भाषा के प्रति अपनी जिम्मेदारी हो, समाज के प्रति, व्यक्ति विशेष के प्रति हो या फिर विदेश में बैठे भारतीयों के प्रति... सुषमा स्वराज ने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। पाकिस्तान से मूक बधिर गीता को भारत लाकर उसके परिवार से मिलाने का प्रयास भी सराहनीय था, जिसने सुषमा स्वराज की छवि को और सकारात्मक बनाया। हालांकि राजनीति में रहकर उनकी क्रियाशीलता ने कई सवालिया निशान भी खड़े किए, लेकिन वे हर एक सवाल का जवाब बन खुद खड़ी हुईं एक सशक्त भारतीय महिला की तरह।
पाकिस्तान को बुलंद आवाज में लताड़ने का हुनर हो या फिर विदेशी धरती से किसी अपने को अपनी सरजमीं पर लाना, पद की गरिमा को बनाए रखते हुए अपना पक्ष रखना हो या फिर एक महिला और राजनीतिज्ञ के रूप में देश का प्रतिनिधित्व करना, राजनीति में गूंजती इस आवाज को पूरी दुनिया ने गौर से सुना और सराहा भी।
इन्हीं पंक्तियों में हम 10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के सफल आयोजन को कैसे भूल सकते हैं जिसमें दुनियाभर के हिन्दीप्रेमियों ने शिरकत की और विदेश मंत्रालय के आयोजन को सुषमा स्वराज जैसे विदुषी महिला ने एक बेहतरीन जिम्मेदारी और मेजबानी के तौर पर निभाया। हां, साल 2015 में मुखर नारी के स्वर, राजनीति और संसद में भी खूब सुनाई दिए।
3. खेल के मैदान से रैंप वॉक तक - सानिया मिर्जा
क्षेत्र चाहे कोई भी हो, स्त्री अपनी सफलता का वर्चस्व बनाना बखूबी जानती है। घर के कोने से लेकर खेल के मैदान तक में वह खुद को पूर्ण समर्पित कर सफलता के अंतिम बिंदु तक पहुंचती है। टेनिस की दुनिया में एक चमकता सितारा बन चुकी सानिया मिर्जा से बेहतरीन उदाहरण इस बात का और क्या होगा जिसने साल 2015 में 2 ग्रैंडस्लैम के साथ 10 एटीपी टाइटल अपने नाम किए और पूरी दुनिया में भारत को गौरवान्वित किया। सानिया मिर्जा के साथ-साथ यह भारत के गौरव के लिए भी विशेष उपलब्धि थी। छोटी स्कर्ट, नाक की बाली को लेकर उठे विवाद उनका रास्ता नहीं रोक सके और न ही वे खुद कहीं रुकीं...। अगर रुक जाती तो शायद भारत को गौरवान्वित न कर पातीं।
टेनिस के मैदान में झलकती उनकी बेबाकी निजी जिंदगी के साथ-साथ समाज और लोगों के बीच भी दिखाई दी, जब वे विराट कोहली की असफलता का कारण कहलाने पर अनुष्का शर्मा के पक्ष में आवाज उठाती सुनी गईं। 'अनुष्का पर दोष मढ़ा जा रहा है, उनका मजाक बनाया जा रहा है? क्या महिलाओं से केवल ध्यान भटकता है? क्या वे संबल नहीं देतीं? जब हम जीत जाते थे या जब कोहली शतक बनाते थे, उन सबका क्या?' सानिया की इस बेबाकी ने एक बार फिर स्त्री के सम्मान की रक्षा की और उसके अस्तित्व के होने का आभास कराया।
टेनिस से लेकर रैंप पर वॉक करते इस आत्मविश्वास को लोगों ने सलाम जरूर किया, लेकिन उनके भावों की माला वहां जाकर जरा दरक-सी गई, जब सानिया द्वारा भोपाल खेल अलंकरण समारोह में आने के लिए चार्टर्ड विमान के अलावा अन्य विशेष व्यवस्थाओं की मांग की गई। उस समय यह गर्व, जो देशवासियों को उनकी सफलता पर था, सिर्फ सानिया के सिर पर चढ़ा देखा गया।
4. अभिनय की जमीन पर श्रृंगार से आत्मविश्वास तक - कंगना
समय के साथ कदमताल करती स्त्री आज किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है, फिर भले अभिनय का क्षेत्र इससे अछूता कैसे रहता? अभिनय के क्षेत्र में नारी की उपस्थिति भावों को उनके असल सजीव रूप में दर्शकों के सामने प्रस्तुत करती है। अभिनय में सजीवता हो तो वह वस्तु काल, परिस्थिति, विभिन्न मनोभावों और उनकी महत्ता को बखूबी दर्शकों तक पहुंचाने में सफल होती है। कंगना रनौट इसका जीता- जागता उदाहरण हैं। 'तनु वेड्स मनु' जैसी फिल्मों के माध्यम से कंगना रनौट अभिनय के इन चरम बिंदुओं को छूकर खुद को एक बेहतरीन अभिनेत्री और नायिका साबित करने में समर्थ रहीं। साथ ही हिन्दी सिनेमा में नारी के परंपरागत श्रृंगारित, दयनीय, कुटिल या प्रेयसी के किरदारों से परे आज के परिवेश में नारी के बदलते स्वरूपों को समझाने में भी कामयाब रहीं।
हिन्दी सिनेमा में नारी की उपस्थिति के मायने सिर्फ श्रृंगार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह सही अर्थों में असल जीवन की एक नायिका भी है। कंगना के इन किरदारों ने स्त्री जीवन के अनछुए पहलुओं को छुआ और एक अनकहा नारी प्रधान साम्राज्य भी खड़ा किया, जो जरूरी नहीं कि सकारात्मक या नकारात्मक ही हो। लीक से हटकर इन किरदारों से स्त्री की पारंपरिक बुत छवि को हटाकर उसके स्थान पर आज की बोलती छवि को दिखाया गया, जो दरअसल सच की दुनिया में सांस लेती है।
कंगना के अभिनय में झलकती सच्चाई में असल जीवन में अभिनय के प्रति उनकी ललक साफ दिखाई दी और यही ललक कई-कई नवयुवतियों के लिए प्रेरणास्रोत भी बनी। तनु जैसी आसमानी लड़की के साथ-साथ हरियाणवी बोलती तेजतर्रार लेकिन दिल से साफ-सुथरी दत्तो का किरदार दरअसल अपने आप में यह साबित करता है कि अभिनय क्या होता है और अभिनय के दम पर स्त्री प्रधान फिल्में भी पसंद की जाती हैं।
5. सच के हथौड़े से गहरी चोट करता निर्देशन - मेघना गुलजार
वातावरण को प्रभावित करता कोई भी विषय नारी के मन और मस्तिष्क को किस हद तक छूता है इसका उदाहरण थी 2 अक्टूबर 2015 को रिलीज हुई मेघना गुलजार की फिल्म 'तलवार'। समय बीतता जाता है, लेकिन संवेदनाओं से भरे सवाल मन से कभी नहीं मिटते और जवाब के इंतजार में रहते हैं। बहुचर्चित आरुषि तलवार हत्याकांड पर बनी फिल्म 'तलवार' द्वारा एक बार फिर नारी हृदय ने कई सवालों को उठाया और महसूस भी कराया गया, जो समाज और उसके ठेकेदारों के मन में कब के दब चुके थे लेकिन फिर भी कभी न्याय के इंतजार में, कभी अनकही कुंठा के रूप में तो कभी न्याय न मिल पाने के दर्द में कराहते हुए कुलबुला रहे थे।
मेघना गुलजार ने न केवल इस फिल्म के माध्यम से आरुषि हत्याकांड के विभिन्न पहलुओं को छुआ, बल्कि उन्हें समाज के बीच रखकर न्याय व्यवस्था को लेकर भी एक बड़ा सवाल उठाया, जो समाज के लिए अनिवार्य जरूरत थी। इस फिल्म ने देशवासियों को न सिर्फ एक बार फिर से सोचने पर मजबूर किया बल्कि उनके दिमाग पर एक गहरी चोट की और एक संदेश भी दिया। इन सभी का केंद्रबिंदु एक सफल निर्देशन को कहा जाना चाहिए, जो निर्देशन के क्षेत्र में भी नारी के पैरों को मजबूती से जमा गया।
मेघना गुलजार ने निर्देशक के रूप में एक नए आयाम को प्रभावी तरीके से छुआ और यह साबित किया कि नारी की उपस्थिति विषय के भावों को बेहतर ढंग से समझाती है।
6. दुनिया के नक्शे पर भारत की छवि - चंदा कोचर
घर की दहलीज से लेकर देश और विश्व स्तर पर भारतीय महिलाओं ने अपनी प्रभावपूर्ण उपस्थिति दर्ज करवाई है। इस प्रभावी उपस्थिति का चर्चाओं में आना भी स्वाभाविक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य है। आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ चंदा कोचर का विश्व स्तर की प्रमुख महिलाओं में शामिल होना न केवल देश के लिए, बल्कि भारतीय स्त्री जगत के लिए भी गौरवपूर्ण बात रही। भारतीय महिलाओं ने अपनी सफलता का परचम पूरी दुनिया में फहराया है। इस बात का ताजा उदाहरण हैं चंदा कोचर।
चंदा कोचर को साल 2015 के 'एशिया गेम चेंजर' के पुरस्कार से नवाजा गया, जो एशिया महाद्वीप के भविष्य निर्माण में सकारात्मक योगदान देने वाले वास्तविक नेताओं को सम्मानस्वरूप दिया जाता है। चंदा कोचर को मिलने वाला यह पुरस्कार न केवल उनके लिए बल्कि भारत के लिए भी एक सम्मान की बात थी। चंदा कोचर की केवल एक नहीं, बल्कि और भी ऐसी उपलब्धियां इस साल रहीं, जो देश और स्त्री जगत को सम्मानित करती हैं।
'फोर्ब्स' पत्रिका द्वारा जारी की गई दुनिया की 100 शक्तिशाली महिलाओं की सूची में शामिल होकर भी चंदा कोचर ने हमें सम्मान का अधिकारी बनाया। साथ ही भारतीय बैंक की पहली महिला प्रमुख होते हुए भारतीय खुदरा बैंकिंग उद्योग को बदलने का श्रेय भी चंदा कोचर को ही जाता है।
7. संसद के गलियारों से स्पीकर की कुर्सी तक - सुमित्रा महाजन
राजनीति के सफर का आरंभ तो होता है, लेकिन इस सफर का अंत नहीं...। परंतु राजनीति का पालन करते हुए एक सफल और सकारात्मक छवि का होना ही सामाजिक उन्नति का परिचायक है। सुमित्रा महाजन भी उन्हीं नामों में से एक हैं, जो संसद में अधिकारों के लिए सवाल उठाने के कर्तव्य से लेकर जवाबदेहिता के सम्माननीय अवसर तक पहुंच सकीं।
साल 2015 में राजनीतिक उतार-चढ़ाव का स्वर संसद में लंबे समय तक गूंजता रहा, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष के रूप में अपने पद की गरिमा को बनाए रखते हुए सुमित्रा महाजन हर परिस्थिति को बखूबी संभालती नजर आईं। चाहे सांसदों के हंगामे का सामना करना हो या फिर गलत बातों के प्रति अपनी आवाज बुलंद करना- सांसदों को आत्मविश्वास के साथ लताड़ लगाते हुए वे अपने कर्तव्य का निर्वहन करती नजर आईं। सांसदों को बर्खास्त करने तक के उनके फैसले में भी पद और कर्तव्य को लेकर उनका आत्मविश्वास साफतौर पर झलका और यही वजह रही कि इस साल 71 वर्ष की आयु में भी लोकसभा अध्यक्ष का पद संभालतीं 'ताई' अर्थात सुमित्रा महाजन अपने कार्यों के लिए सुर्खियों में रहीं।
8. सवालों और विवादों के घेरे में आकर्षण का केंद्र - राधे मां
'नारी' शब्द कई तरह के भावों को अपने आप में समेटे हुए है। अब तक नारी ममतामयी, गरिमामयी, करुणा और दया की मूरत मानी जाती थी या फिर आत्मविश्वास के साथ खुद को बुलंदियों तक पहुंचाती प्रतिभा के रूप में जानी जाती थी। परंतु इस वर्ष राधे मां के रूप में स्त्री की पारंपरिक छवियों में एक नया अध्याय रचा गया जिसे कभी 'कलियुग' का नाम दिया गया तो कभी 'पाखंड' के विस्तार का।
दुर्गा मां के अवतार के रूप में पूजी जाने वाली राधे मां अपने रूप-रंग से परे लीलाओं को लेकर चर्चा में रहीं। दैवीय लीलाएं नहीं, त्रिया-चारित्रिक लीलाएं... अविश्वसनीय लीलाएं... अकथनीय लीलाएं... और असभ्य लीलाएं...। सच का स्थान कहीं भी सुरक्षित हो, लेकिन राधे मां का चर्चाओं में आना और लंबे समय तक बने रहना इन्हीं लीलाओं की प्रतिक्रियाओं में शुमार था।
नारी के इस रूप और रंग ने असल जीवन के कई रंगों की ओर से आम इंसान का विश्वास डगमगाया। जब राधे मां पर अश्लीलता, पाखंड और कई विवादित विषयों से जुड़े आरोप लगे तो भक्तों को अपने विश्वास में अंधविश्वास की झलक साफ दिखाई दी और नारी के धार्मिक रूप को कहीं अविश्वास तो कहीं मनोरंजन के तौर पर भी देखा गया। नारी का यह अवांछित अवतार साल 2015 में समाज को दिखाई दिया।
9. माय चॉइस के स्वर बुलंद करती 'पीकू' - दीपिका पादुकोण
नारी केवल देह नहीं, वह आत्मा भी है। उसका हृदय भी धड़कता है और मस्तिष्क कई सवाल भी उठाता है... वह सवालों के जवाब भी जानती है और कई बार देना भी चाहती है... वह देह के प्रति खुद जिम्मेदार है और देह के प्रति निर्णय लेने के लिए वह अकेली जिम्मेदार है न कि कोई और...। साल 2015 में नारी देह के प्रति कुछ सवाल भी उठे तो कुछ जवाब भी चर्चा का विषय बने।
नारी देह के प्रति उसकी स्वयं की जिम्मेदारी और अधिकार का संदेश समाज तक पहुंचाते दीपिका पादुकोण के चर्चित वीडियो को पुरुष-विरोधी मानसिकता के रूप में भी देखा गया, जो कि महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों के बीच भी चर्चा का विषय बनकर उभरा। इसके साथ ही दीपिका भी विशेष रूप से चर्चा में रहीं और कई क्षेत्रों में उन्हें सराहा भी गया।
कभी नारी देह के प्रति उनकी बेबाकी ने आकर्षित किया तो कभी असल जीवन में उनके रणबीर के साथ रिश्तों की चर्चाएं चलीं, परंतु अभिनेत्री के रूप में वे स्वयं को समाज और माहौल के प्रति जिम्मेदार मानकर चलती रहीं। 'पीकू' में एक आदर्श बेटी के किरदार ने उन्हें अभिनय और प्रशंसा की बुलंदियों तक पहुंचाया और सालभर चर्चित अभिनेत्री भी।
10. बैडमिंटन के खेल में दुनिया के शीर्ष पर - साइना नेहवाल
घर की रसोई में स्त्री का कोई सानी नहीं, लेकिन खेल के मैदान में भी वह खुद को साबित कर पूरी दुनिया पर छा सकती है। खेल की दुनिया में चमकते दो भारतीय नामों में सानिया मिर्जा के अलावा साइना नेहवाल का नाम भी सालभर सुर्खियों में रहा।
बैडमिंटन में विश्व की शीर्ष खिलाड़ी का खिताब हासिल कर चुकीं साइना नेहवाल ने न केवल भारत को बल्कि प्रत्येक भारतीय को गौरव प्रदान कर खुद को उच्चतम शिखर पर पहुंचा दिया। बैडमिंटन के प्रति उनके समर्पण और देश को गौरवान्वित करने पर 'पद्मभूषण' पुरस्कार के लिए उनका नाम प्रस्तावित किए जाने को लेकर भी विवादों ने जन्म लिया, परंतु विवादों के उतार-चढ़ाव से विचलित न होकर उन्होंने अपना ऊंचाई का सफर जारी रखा। खिलाड़ी होते हुए सेहत के उतार-चढ़ावों ने भी उनके रास्ते को रोकने का भरसक प्रयास किया, परंतु वे डिगती नजर नहीं आईं।
लंदन ओलंपिक कांस्य पदक विजेता साइना ने अपने करियर में 14 अंतरराष्ट्रीय खिताब जीते हैं और इस वर्ष में उनके करियर और सफलता ने उत्कृष्ट शिखर बिंदुओं को छुआ। वर्षभर चर्चा में रहने का कारण केवल उनकी सफलताएं ही नहीं, बल्कि उनकी उदारता भी बनीं, जब प्राकृतिक आपदा प्रभावित क्षेत्रों में साइना ने अपनी ओर से 1 लाख रुपए देने की बात कही...। खेल भावना के साथ ही उनकी मानवता के भी लोग कायल हो गए।