वक्त बदलता है साल दर साल...कोई मिलता है नया, तो कोई बिछड़ जाता है सदा के लिए। ये पंक्तियां सच्ची लगती हैं जब नए साल की आहट के साथ एक साल बीतने की कगार पर होता है और उस बीते साल के साथ जीवन को अलविदा कहते कुछ चेहरे पीछे छूट जाते हैं। ये नाम और चेहरे भले ही अब दोहराए न जाएं, लेकिन अतीत की सुनहरी स्मृतियों में चमकते जरूर नजर आते हैं। ऐसे ही कुछ नाम और जाने पहचाने चेहरे इस साल भी साथ छोड़ गए...
1 जयललिता (22 दिसंबर 2016) - जे.जयललिता...एक ऐसा नाम जो बॉलीवुड के सुनहरे पर्दे से लेकर राजनीति के मंच तक, अदाकारी से लेकर मुखर दांवपेंचों तक, मजबूती के साथ जनता के बीच स्थापित रहा और अंत तक ओजपुंज और तीखे तेवरों के लिए जाना गया। अभिनय के क्षेत्र में 140 फिल्मों में उन्होंने अपनी अदाकारी के जलवे बिखेरे। इसके बाद राजनीति का सफर शुरू किया और 8 बार विधानसभा का चुनाव लड़ने, एक बार राज्यसभा के लिए मनोनीत होने के अलावा वे चार बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं। तमिलनाडु की जनता का उन्हें भरपूर सहयोग ओर स्नेह मिला। लोगों को उनसे इतना लगाव था कि उन्हें अम्मा संबोधन दिया जाता था। 22 दिसंबर को 68 साल की उम्र में जे. जयललिता को दिल का दौरा पड़ने पर चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से वे वापस नहीं लौटीं और इस दुनिया को अलविदा कह गईं। उनके समर्थकों में इस बात का गहरा दुख था।
जयललिता की जीवनी 'अम्मा जर्नी फ्रॉम मूवी स्टार टु पॉलिटिकल क्वीन' लिखने वाली वासंती उनके बारे में कहती हैं, कि "उनकी ताकत थी कि वो बहुत मजबूत नेता रही हैं और उनका पार्टी पर इतना मजबूत नियंत्रण है कि लोग उनके सामने कांपा करते थे। वो अपने मंत्रियों से मिलना भी पसंद नहीं करती थीं। लोगों में मफ्त चीजें बांटने की नीति ने भी उन्हें बहुत लोकप्रिय बनाया।
2 रामनरेश यादव (22 नवंबर 2016) - राजनीति का एक और बड़ा चेहरा रहे रामनरेश यादव भी साल 2016 में हमारा साथ छोड़ गए। वे 1977 में उत्रप्रदेश के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए थे और उसके बाद राज्यसभा के सदस्य, संसदीय दल का उपनेता होने के साथ-साथ पब्लिक एकाउंट कमेटी (पी.ए.सी.), संसदीय सलाहकार समिति (गृह विभाग), रेलवे परामर्शदात्री समिति और दूरभाष सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में भी कार्यरत रहे। इसके अलावा बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय में एक्सिक्यूटिव कॉसिंल के सदस्य, अखिल भारतीय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ.बी.सी.) रेलवे कर्मचारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और आप जनता इंटर कालेज अम्बारी आजमगढ़ (उ.प्र.) के प्रबंधक एवं अनेकों शिक्षण संस्थाओं के संरक्षक भी रहे।
अखिल भारतीय राजीव ग्राम्य विकास मंच, अखिल भारतीय खादी ग्रामोद्योग कमीशन कर्मचारी यूनियन और कोयला मजदूर संगठन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में वे ग्रामीणों और मजदूर तबके के कल्याण के लिये लंबे समय तक संघर्षरत रहे।
अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने आर्थिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक दृष्टि से पिछड़े लोगों के उत्थान के कार्यों पर ध्यान दिया तथा गांवों के विकास के लिये समर्पित रहे। उत्तरप्रदेश में अन्त्योदय योजना का शुभारम्भ उनके द्वारा ही किया गया। श्री यादव सन् 1988 में संसद के उच्च सदन राज्यसभा के सदस्य बने एवं 12 अप्रैल 1989 को राज्यसभा के अन्दर डिप्टी लीडरशिप, पार्टी के महामंत्री एवं अन्य पदों से त्यागपत्र देकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। प्रतिभूति घोटाले की जांच के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य के रूप में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी।
3 राज बेगम 26 अक्टूबर 2016 - कश्मीरी गायिका राज बेगम ने अपनी दिलकश आवाज से कश्मीर के संगीत प्रेमियों के दिल पर पीढ़ियां तक राज किया और 26 अक्टूबर 2016 श्रीनगर में अंतिम सांस ली। राज बेगम की आवाज का जादू कुछ इस तरह था कि खूबसूरत आवाज के लिए उन्हें नाइटिंगल ऑफ कश्मीर कहा जाता था।
27 मार्च 1927 को जन्मीं राज बेगम ने शादी विवाह समारोहों से गायन की शुरूआत की थी, लेकिन बाद में वे कश्मीर की सबसे अधिक लोकप्रिय महिला गायिकाओं में शामिल हो गईं। बेगम के पिता ने उनकी गायन प्रतिभा को तराशा और 1954 में उन्होंने रेडियो कश्मीर में काम करना शुरू किया। कुछ ही समय बाद स्टेशन से प्रमुखता के साथ उनके कार्यक्रमों का प्रसारण होने लगा।
वर्ष 2002 में राज बेगम को पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया और वर्ष 2013 में उन्हें संगीत अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। जम्मू-कश्मीर सरकार ने भी उन्हें 2009 में उन्हें सम्मानित कर चुकी थी। जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने राज बेगम के निधन पर अपना शोक प्रकट करते हुए अपने शोक संदेश में कहा था कि - कश्मीर ने एक बेशकीमती आवाज खो दी है। उन्होंने बेगम के निधन को कश्मीर के संगीत इतिहास के एक महान कालखंड की समाप्ति कहा। पूर्व मुख्यमंत्रियों फारक अब्दुल्ला, गुलाम नबी आजाद और उमर अब्दुल्ला ने भी बेगम के निधन पर शोक संवेदना प्रकट की थी।
4 रेवती शरण शर्मा 23 सितंबर 2016 - हिन्दी और उर्दू के एक बेहतरीन लेखक और नाटककार के रूप में पहचाने जाने वाले रेवती शरण शर्मा साल 2016 की ढलान पर साहित्य और दुनिया का साथ छोड़ कर हमेशा के लिए चले गए।
ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के लिए कई चर्चित नाटक एवं धारावाहिक लिखने वाले हिन्दी और उर्दू के प्रसिद्ध नाटककार रेवती शरण शर्मा का निधन 92 वर्ष की आयु में 23 सितंबर 2016 को हुआ। अपने जीवनकाल में उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के लिए लभगग 150 नाटक और दूरदर्शन के लिए फिर वही तलाश, अधिकार, और भी गम हैं जमाने में तथा ग्रेट मराठा जैसे लोकप्रिय धारावाहिक भी लिखे जिन्हें काफी पसंद किया गया। चालीस के दशक से ही रेडियो के लिए कई नाटक लिखे। वे इंटरनेशनल थियेटर इंस्टिट्यूट की भारतीय शाखा भारतीय नाट्य संघ के अध्यक्ष भी थे।
रेवती शरण शर्मा सिर्फ हिन्द साहित्य के ही बेहतरीन नाटककार नहीं थे, बल्कि हिन्दी के अलावा वे उर्दू नाटकों की दुनिया में भी सम्मानित लेखक माने जाते थे। 2007 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी मिला और नाट्य लेखन के लिए उन्हें गालिब सम्मान तथा साहित्य कला परिषद् के पुरस्कार से भी नवाजा गया।
5 गुरू प्रमुख स्वामी महाराज 16 अगस्त 2016 - देश और दुनिया में 831 अक्षरधाम और स्वामीनारायण मंदिर बनाने वाले प्रमुख स्वामी महाराज 16 अगस्त 2016 को 95 साल की उम्र में में ब्रम्हलीन हुए। उन्होंने सारंगपुर के स्वामीनारायएा मंदिर में अंतिम सांस ली। निधन के एक वर्ष पहले से उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था, लेकिन अंतिम 1 महीना उनकी तबियत के लिहाज से गंभीर रहा और सीने में इंफेक्शन की शिकायत रही जिसके चलते 1 0 चिकित्सकों की टीम उनके इलाज में रात-दिन लगी हुई थी।
गुरू प्रमुख स्वामी महाराज, स्वामीनारायण भगवान के पांचवे आध्यात्मिक वारसदार थे। वे 1950 में शास्त्री महाराज की ओर से स्थापित किए गए बोचासणवासी अक्षर पुरुषोत्तम संस्थान के अध्यक्ष भी रहे। उनके निधन के बाद श्रद्धालुओं में तो शोक छाया ही, भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी उनके पार्थिव शरीर के दर्शन कर सजल नेत्रों से उनके निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित की और आरती की।
प्रधानमंत्री मोदी ने प्रमुख स्वामी महाराज की तुलना अपने पिता से करते हुए कहा था कि 'मैं जब मुख्यमंत्री हुआ करता था तो वह मेरे भाषण मंगवाते थे और सुनते थे।वह मुझे बताते थे कि किन शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।' पीएम ने आगे कहा कि इंसान को अच्छा इंसान बनाने में एक संत की भूमिका क्या होती है, ये उन्हें उनसे मालूम हुआ। उन्होंने कहा कि 'प्रमुख स्वामी के जाने बाद उनकी कमी हो गई है, लेकिन एक खाली कमरे में जैसे हवा होती है, वैसे ही प्रमुख स्वामी का स्थान हमारी जिंदगी में रहेगा।'
6 महाश्वेता देवी 28 जुलाई 2016 - प्रसिद्ध बांग्ला साहित्यकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी 28 जुलाई 2016 को दुनिया को अलविदा कह गईं। अब जबकि लेखन व्यवसाय हो चला है और किराए के लेखक भी मिलने लगे हैं उनका जाना एक युग का उनके साथ चला जाना है। 1996 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित महाश्वेता देवी अपने सच्चे और प्रभावी लेखन के लिए जानी जाती रहीं। महाश्वेता जी ने कम उम्र में लेखन का शुरू किया और विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए लघु कथाएं लिखकर महत्वपूर्ण योगदान दिया।
वे अपने लेखन लेकिन के लिए विषय की आवश्यकता के अनुसार गरीब और सुदूर बस्तियों में जाकर भी रहीं ताकि उनके उपन्यास की भावभूमि तैयार हो सके। उनके संघर्ष को वे जीतीं थी तब कहीं उनकी कलम कुछ झरती थीं। उनकी सच्ची मेहनत व ईमानदारी ही उनके लेखन की पहचान बनी। उन्होंने स्वयं को दुनिया के समक्ष पत्रकार, लेखक, साहित्यकार और आंदोलनधर्मी के रूप में सशक्त रूप में प्रस्तुत किया। 1956 में प्रकाशित ‘झांसी की रानी’ महाश्वेता देवी की प्रथम रचना है।
कोलकाता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने एक शिक्षक और पत्रकार के रूप में अपना जीवन शुरू किया। कलकत्ता विश्वविद्यालय में अंग्रेजी व्याख्याता के रूप में नौकरी भी की। 1984 में अपना सारा जीवन लेखन को समर्पित कर दिया और स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ले ली। उनके बारे में अधिक पढ़ने के लिए क्लिक करें यहां -
7 निदा फाज़ली 8 फरवरी 2016 - मशहूर शायर निदा फाज़ली का चला जाना साल 2016 की एक अपूरणीय क्षति रही। साल के पतझड़ की शुरुआत से पहले ही निदा फाजली नाम का फूल अपनी खुशबू बिखेरते हुए झर गया और धरोहर में रह गईं यादें, उनके लफ्जों में तैरती हुईं। बीता साल साहित्य के एक और चमकते सितारे को छीनकर ले गया जो न केवल शायदी, गजलों और गीतों बल्कि पूरे साहित्य संसार को शून्य के धरातल पर छोड़ गया। निदा फाज़ली, उनका जीवन परिचय, उनकी रचनाएं और संपूर्ण जानकारी के लिए पढ़ें यहां -
8 अरूंधति घोष 26 जुलाई 2016 - पूर्व राजनयिक अरूंधति घोष भी बीते साल अपने जीवन के 76 बसंत पार कर, जहां को अलविदा कह गईं। वे संयुक्त राष्ट्र में भारत की राजदूत रहीं और व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) पर वार्ता में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने भारत के पक्ष को जोरदार तरीके से रखा था। ”
घोष ने ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड, बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया और मिस्र में भारतीय मिशन समेत कई पदों पर काम किया। वह जिनिवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में भारत की पहली स्थायी प्रतिनिधि भी रहीं। घोष 1996 में जिनिवा में सीटीबीटी पर सम्मेलन मे भारतीय प्रतिनिधिमंडल की प्रमुख थीं और संधि का विरोध करने में भारत के रुख को जोरदार तरीके से रखने के लिए उनकी सराहना की जाती है।
सम्मेलन में उन्होंने भेदभावपूर्ण संधि की बात कहते हुए भारत की ओर से इस पर हस्ताक्षर न करने की बात को मजबूती के साथ रखा। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने घोष के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा था कि उन्हें सीटीबीटी पर बातचीत में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख के तौर पर उनकी भूमिका समेत राष्ट्र के लिए उनकी सेवाओं के लिए याद किया जाएगा।
वर्ष 1963 में वे भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुईं और कूटनीतिक सेवा से नवंबर, 1997 में सेवानिवृत्त हुईं। वे 1998 से 2004 तक संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सदस्य, 1998 से 2001 तक संयुक्त राष्ट्र महासचिव के सलाहकार बोर्ड की सदस्य रहने के अलावा अप्रसार और निरस्त्रीकरण पर विदेश मंत्रालय द्वारा 2007 में स्थापित एक कार्यबल की भी सदस्य रहीं।
9 सैयद हैदर रज़ा 23 जुलाई 2016 - जीवन के केनवास पर कई-कई एहसासों से भरे रंग सफेद से हो गए, जब बीते साल सैयद हैदर रजा ने न केवल रंगों को बल्कि इस रंगीन दुनिया को अलविदा कह दिया। 23 जुलाई 2016 को सारे रंग फीके पड़ गए जब मशहूर पेंटर सैयद हैदर रज़ा का दिल्ली में लंबी बीमारी के बाद 94 साल की उम्र में निधन हो गया। वे पिछले दो महीने से एक निजी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती थे।
आधुनिक कला की दुनिया में सैयद रज़ा एक बड़ा नाम थे और उन्होंने अपनी कूची से अंतरराष्ट्रीय ख्याति हासिल की। रज़ा ने ही पेंटिग में पहले आधुनिकता के रंग सजाए थे। '60 के दशक के आखिरी दौर और '70 के दशक की शुरुआत में रज़ा की चित्र शैली में विविध संस्कृतियों और शैलियों का मनोहर संयोग दिखाई देता है। वे बिंदु शैली के मशहूर चित्रकार थे और वे भारत के सबसे महंगे मॉडर्न आर्टिस्ट में से एक थे।
भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया। सैयद रज़ा 1950 के दशक से ही फ्रांस में लंबे समय तक रहे और वहां काम किया, लेकिन उन्होंने भारत से भी करीबी जुड़ाव बनाए रखा। फ्रांस में भी उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान लीज़न ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया। 1983 में उन्हें ललित कला एकेडमी का फेलो चुना गया था। सैयद हैदर रजा से जुड़ी जानकारी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें -
10 मुबारक बेगम 18 जुलाई 2016 - इस बीते साल एक ऐसी आवाज हमारे बीच से खामोश हुई जो फिल्म इंडस्ट्री को अपने साज़ से रौशन करने में माहिर सी थी। मुबारक बेगम ने 50 के दशक में अपने करियर की शुरुआत रेडियो से की थी लेकिन जल्दी ही वो फिल्मों में गाने लगीं। मुबारक बेगम को बड़ा ब्रेक फिल्म मधुमति के गाने ‘हाले दिल सुनाइए से...’ मिला, जो उस दौर की हिट फिल्मों में शामिल थी।
किरदार शर्मा की फिल्म ‘हमारी याद आएगी’ से उन्हें शोहरत मिली और इसके बाद उन्होंने एक से बढ़कर एक नगमे इंडस्ट्री को दिए। उन्होंने मुख्य तौर पर वर्ष 1950 से 1970 के दशक के बीच बॉलीवुड के लिए सैकड़ों गीतों और गजलों को आवाज दी थी। नामचीन अभिनेत्रियों को सुर देने वाली मुबारक बेगम ने बड़े-बड़े म्यूजिक डायरेक्टर्स से लेकर मोहम्मद रफी तक के साथ काम किया लेकिन 70 के दशक के आते-आते उन्हें इंडस्ट्री भूलने लगी और किसी ने उनकी खैर खबर लेना भी जरूरी नहीं समझा। अपने अंतिम समय में सरकार द्वारा दी जा रही महज डेढ़ हजार रुपए महीने की पेंशन से अपना गुजारा करना पड़ा। निधन के पूर्व वे ग़रीबी की हालत में मुंबई के जोगेश्वरी इलाके में अपनी बीमार बेटी और टैक्सी चालक बेटे के साथ रहती थी और पुराने दिनों को याद करती थी।
11 सुधीर तैलंग 6 फरवरी 2016 - मशहूर कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग का निधन, साल 2016 में कला के क्षेत्र की एक और बड़ी अपूरणीय क्षति रही। बीकानेर में जन्में सुधीर तैलंग का नाम कार्टून और इलस्ट्रेटर के लिए पूरी दुनिया में छाया। इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया, नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान टाइम्स, इंडियम एक्सप्रेस और द टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे तमाम बड़े अखबारों के लिए उन्होंने कार्टून बनाए और एशियन एज के लिए भी काम किया।
नो, प्राइम मिनिस्टर" शीर्षक से उनकी कार्टून पुस्तक भी जारी हुई जिसमें भारतीय पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कुछ कार्टून शामिल हैं।शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में उन्हें २००४ का पद्म श्री पुरस्कार मिला। लेकिन अंत समय में उन्हें किसी प्रकार की सहायता नहीं मिली और मस्तिष्क कैंसर से पीड़ित सुधीर तैलंग 6 फरवरी 2016 इस दुनिया से विदा हो गए। उनसे जुड़ी जानकारी और आलेखों के लिए यहां क्लिक करें -
12 रवीन्द्र कालिया 9 जनवरी 2016 - हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार और संस्मरण लेखक के अलावा एक बेहतरीन संपादक रहे रवीन्द्र कालिया का निधन 9 जनवरी 2016 को हुआ और साहित्य जगत का एक और चमकता रत्न हाथ से फिसलता हुआ जैसे समुंदर की लहरों में खो सा गया। रवीन्द्र कालिया से जुड़ी जानकारी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें - प्रतिरोध का शोकगीत लिखने से पहले चल दिए रवींद्र
13 नीलाभ अश्क, 23 जुलाई 2016 - कवि, अनुवादक और पत्रकार नीलाभ अश्क का जाना भी साहित्य के क्षेत्र में दर्द की कलम की तरह चला और जब-जब उनका जिक्र आएगा, यह दर्द फिर उठेगा और उठता रहेगा।
मशहूर कवि और पत्रकार नीलाभ अश्क का शनिवार को संक्षिप्त बीमारी के बाद 70 वर्ष की उम्र में निधन हो गया, जिसकी जानकारी उनकी पत्नी भूमिका द्विवेदी ने दी थी। उनके जाने से कुछ समय पहले पत्नी भूमिका के साथ साथ उनका विवाद काफी सुर्खियों में रहा। नीलाभ ने इलाहाबाद में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद साहित्य का एक लंबा रास्ता तय किया।
वे 70 साल की ऐसी उम्र में दुनिया से चले गए जिसे रचनात्मक लोगों के लिए संवेदना और विवेक के नए आयामों की और जाने की उम्र माना जाता है। नीलाभ्ज्ञ के बारे में पढ़ें यहां -
14 सतीश जमाली, 21 जून 2016 - हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण कथाकार, और कथा सम्राट प्रेमचंद के बड़े बेटे श्रीपत राय की प्रसिद्ध पत्रिका ''कहानी'' एवं ''नई कहानियां'' पत्रिका के संपादन से संबद्ध रहे सतीश जमाली 21 जून 2016 को 77 साहित्य संसार की रौनक को मंद कर गए। पठानकोट में जन्मे और पढ़े-लिखे जमाली की साहित्य जगत को कई देन हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य को अपनी कहानियों से समृद्ध किया।
साहित्यिक पत्रकार के रूप में भी उनकी अपनी पहचान थी और कथाकार, पत्रिकाओं के संपादक के रूप में भी। युवाओं को वे हमेशा लेखन के लिए प्रोत्साहित करते रहे। कुछ साहित्यकारों के अनुसार सतीश जमाली ७०-८० के दशक के प्रथम पंक्ति के रचनाकार थे और नए लेखक उनका अनुकरण करते थे। क प्रयोगधर्मी रचनाकार होने के साथ ही भाषा-शैली में भी उनका कोई तोड़ नहीं था। कहानियों का विषय हमेशा मध्यम वर्गीय लोगों के जीवन पर केंद्रित रखने वाले सतीश जी कभी लेखन की दौड़ में शामिल हुए और न ही कभी किसी विचारधारा में बंधकर लिखा।
15 प्रेमशंकर रघुवंशी, 21 फरवरी 2016 - म.प्र.हिन्दी साहित्य सम्मलेन के सर्वोच्च सम्मान भवभूति अलंकरण से सम्मानित, वागीश्वरी पुरस्कार,म.प्र.साहित्य अकादमी के दुष्यंत पुरस्कार, बालकृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार, म प्र. लेखक संघ के अमर आदित्य सम्मान ,आर्य भाषा संस्थान वाराणसी के आर्यकल्प पुरस्कार,आलोचना के लिए प्रमोद वर्मा पुरस्कार,दुष्यंत स्मृति संग्रहालय के सुदीर्घ साधना सम्मान से पुरस्कृत प्रेमशंकर रघुवंशी म.प्र.प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष मंडल के वरिष्ठ सदस्य थे।
छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के अनेक स्थानों पर वे हमेशा सक्रिय रहे और संगठन के लिए उन्होंने बहुत काम किया। देश भर के युवा साहित्यकारों व काव्यप्रेमियों के बीच वे अपने सरल-तरल स्वभाव और उत्कृष्ट साहित्य-सृजन के लिए बहुत लोकप्रिय रहे।
16 डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय - हिन्दी साहित्यकार, आलोचक तथा नाटककार रहे डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय का साहित्य के महत्वपूर्ण नाम थे, जिनका खास तौर से नाटक लेखन के क्षेत्र में अहम योगदान रहा। उन्होंने हिंदी नाटकों को नई दिशा दी। वे मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के सचिव एवं 'साक्षात्कार' व 'अक्षरा' के संपादक रहे हैं एवं भारतीय भाषा परिषद के निदेशक एवं 'वागर्थ' के संपादक पद पर कार्य करने के साथ-साथ वे भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली के निदेशक पद पर कार्यरत रहे। वे अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों के सदस्य हैं।
17 बलराम जाखड़ 3 फरवरी 2016 - मध्यप्रदेश के राज्यपाल रह चुके, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता बलराम जाखड़ का 3 फरवरी 2016 को निधन हो गया। वे 1980 से 10 साल तक लोकसभा अध्यक्ष भी रहे।
हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू और पंजाबी भाषाओं का ज्ञान रखने वाले बलराम जाखड़ एशियाई मूल के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें राष्ट्रमंडल सांसद कार्यकारी फोरम के सभापति के रूप में चयनित किया गया। 1991 में वे कृषि मंत्री भी बनाए गए। भारत कृषक समाज के आजीवन अध्यक्ष और जलियांवाला बाग मेमोरियल ट्रस्ट प्रबंधन समिति के अध्यक्ष भी रहे।
स्पीकर पद पर रहते हुए उन्होंने संसदीय कार्यों को कंप्यूटरीकृत और स्वचालित बनाने में विशेष योगदान दिया और संसदीय लाइब्रेरी, अध्ययन, संदर्भ आदि को प्रचारित करने जैसा प्रभावकारी कदम उठाया ताकि सांसदों के संसद संबंधी ज्ञानकोष को बढ़ावा दिया जा सके। इसके अलावा संसद अजायबघर की स्थापना भी बलराम जाखड़ का ही मुख्य योगदान रहा।
18 रज्जाक खान 1 जून 2016 - कई फिल्मों में मुख्य रूप से कॉमेडियन के रोल में नजर आने वाले रज्जाक खान का साल 1 जून 2016 मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया। वे अपने कॉमिक रोल के लिए अब्बास मस्तान की फिल्म बादशाह के लिए काफी फेमस हुए। बच्चों के बीच मकोड़ी चाचा के रूप में उनकी खास पहचान बन गई थी। अपने समय के प्रमुख हास्य कलाकारों में उन्हें हमेशा गिना जाता रहेगा।
19 मुद्राराक्षस 13 जून 2016 - मुद्राराक्षस भारत के प्रसिद्ध लेखक, उपन्यासकार, नाटककार, आलोचक तथा व्यंग्यकार थे। 13 जून, 2016 को सांस लेने में तकलीफ और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उनका निधन को गया।
वे अकेले ऐसे लेखक थे, जिनके सामाजिक सरोकारों के लिए उन्हें जन संगठनों द्वारा सिक्कों से तोलकर सम्मानित किया गया था।उनके साहित्य का अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया जाता है। कहानी, कविता, उपन्यास, आलोचना, नाटक, इतिहास, संस्कृति और समाज शास्त्रीय क्षेत्र जैसी अनेक विधाओं में ऐतिहासिक हस्तक्षेप उनके लेखन की बड़ी पहचान है।
वे अपने जीवनकाल में कई बार राजनीति के भी मैदान में उतरे, साथ ही सामाजिक आंदोलनों से भी जुड़े रहे। अभिव्यक्ति की आज़ादी, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, महिला-उत्पीड़न जैसे गंभीर मुद्दों पर वे अपनी बेबाकी से राय रखते थे। साहित्य-संस्कृति की दुनिया में मुद्राराक्षस का नाम लोगों के लिए आदर्श का काम करता है।
मुद्राराक्षस ने 10 से भी ज्यादा नाटक, 12 उपन्यास, पांच कहानी संग्रह, तीन व्यंग्य संग्रह, तीन इतिहास किताबें और पांच आलोचना सम्बन्धी पुस्तकें लिखी हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने 20 से ज्यादा नाटकों का निर्देशन भी किया।
20 बाबा हर देव निरंकारी - निरंकारी मिशन के प्रमुख रहे बाबा हरदेव सिंह का 13 मई 2016 को कनाडा में एक सड़क दुर्घटना में 62 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।दुर्घटना का कारण कार की रफ्तार का 200 से 300 कि.मी. होना बताया गया। निरंकारी पंथ को मानने वालों में उनके यूं अचानक चले जाने से गहरा दुख रहा लेकिन वे बाबा हर देव निरंकारी को सदैव अपने साथ होने का एहसास पाते हैं।
21 मृणालिनी साराभाई 21 जनवरी 2016 - भारत की प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना रहीं मृणालिनी साराभाई, जिम्हें अम्मा भी कहा जाता था, साल 2016 की शुरुआत में ही 21 जनवरी 2016 को दुनिया को अलविदा कह गईं। शास्त्रीय नृत्य में उनके योगदान और उपलब्धियों के लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण और पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा गया था।
'यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्ट एंगलिया', नॉविच यूके ने भी उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दी थी, साथ ही उन्हें 'इंटरनेशनल डांस काउंसिल पेरिस' की ओर से उन्हें एग्जीक्यूटिव कमेटी के लिए भी नामित किया गया था। प्रसिद्ध 'दर्पणा एकेडमी' की स्थापना मृणालिनी साराभाई ने ही की थी।
22 पुर्नो अगिटोक संगमा 3 मार्च 2016 - लोकसभा के पूर्व स्पीकर एवं मेघालय के तुरा संसदीस क्षेत्र के सांसद रहे पुर्नो अगिटोक संगमा का निधन 3 मार्च 2016 को दिल का दौरा पड़ने के कारण हुआ। वे मेघालय के मुख्यमंत्री, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सह संस्थापक और आठ बार लोकसभा सदस्य भी रहे। 1999 में कांग्रेस से निष्कासित होने के बाद शरद पवार और तारिक अनवर के साथ मिलकर उन्होंने नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी की स्थापना की थी।
23 शंकर घोष 22 जनवरी 2016 - विख्यात तबला वादक पंडित शंकर घोष का 22 जनवरी 2016 का एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। घोष की उम्र 80 साल थी। उनकी बहू जया शील घोष ने बताया कि घोष को दिल की बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती करवाया गया था और वह पिछले 40 दिन से कोमा में थे। उनका आज रात नौ बजे निधन हो गया। पंडित शंकर घोष का नाम देश के मशहूर तबला वादकों में शुमार है। उन्हें वर्ष 2000 में प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
24 आरबीआई के पूर्व डिप्टी गर्वनर एसएस तारापोरे का निधन