आंकड़े दर्शाते हैं कि लगभग पूरे साल खुदरा एवं थोक मुद्रास्फीति लक्षित सीमा के भीतर रही लेकिन पेट्रोल एवं डीजल के आसमान छूते दाम ने लोगों को जरूर परेशान किया। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के तहत मापी जानी वाली खुदरा मुद्रास्फीति अधिकांश समय में 5 प्रतिशत के नीचे रही। आरबीआई ने 2 प्रतिशत घट-बढ़ के साथ मुद्रास्फीति के लिए 4 प्रतिशत का लक्ष्य तय किया है। केवल जनवरी में ही खुदरा महंगाई दर 5 प्रतिशत के आंकड़े के पार गई।
थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) नवंबर महीने में पिछले 3 महीने के न्यूनतम स्तर 4.64 प्रतिशत पर रहा है। इस साल के दौरान यह कम से कम 2.74 फीसद और अधिकतम 5.68 फीसदी के बीच रही, वहीं नवंबर महीने में खुदरा मुद्रास्फीति 2.33 प्रतिशत के आंकड़े तक पहुंच गई, जो इस साल का न्यूनतम आंकड़ा है। ऐसा खाद्य पदार्थों एवं कुछ कृषि उत्पादों के मूल्य में कमी के कारण हुआ। यह उपभोक्ताओं के साथ-साथ सरकार और आरबीआई के लिए अच्छी खबर है।
हालांकि यह स्थिति इसके साथ ही चिंता भी उत्पन्न करती है, क्योंकि कृषि उत्पादों के दाम गिरने से किसानों के समक्ष नई तरह के संकट पैदा हो गए हैं। यह संकट उन किसानों के लिए और अधिक बढ़ गया है जिन्होंने कृषि ऋण लेकर खेती की है। ऐसा इसलिए देश के विभिन्न हिस्सों से खबर मिल रही है कि किसानों को प्याज सहित विभिन्न सब्जियों की लागत तक वसूल नहीं हो पा रही है।
इस साल अपने उत्पादों के बेहतर दाम और कृषि क्षेत्र के समर्थन के लिए प्रभावी कदम उठाने की मांग को लेकर किसान कई बार आंदोलन कर चुके हैं। हाल में हुए विधानसभा चुनावों में किसानों के मुद्दे छाए रहे और 2019 के आम चुनावों में इस मुद्दे पर और अधिक, जोर हो सकता है। अतीत में ऊंची महंगाई दर पूर्व की सरकारों के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द रह चुकी है।
एसबीआई समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा कि सरकार को किसी तरह के मूल्य या आय समर्थन योजना के जरिए ग्रामीण क्षेत्र को मदद करनी चाहिए। घोष ने कहा कि खाद्य पदार्थों के दाम में कमी से मुद्रास्फीति में कमी आई है लेकिन तेल में हाल में आई नरमी आने वाले समय में आंकड़ों को कम रखने में मददगार साबित होगी। एक तरफ जहां खाद्य मुद्रास्फीति में कमी उपभोक्ताओं के लिए अच्छी खबर है, वहीं यह किसानों के लिए अच्छी नहीं है। (भाषा)