इस साल मानसून के मनमौजीपन ने फिर से किसानों के सामने विकट स्थिति उत्पन्न कर दी है अभी तक सामान्य से आधी से एक तिहाई बारिश ही दर्ज हो पाई है। खेतों में बोई गई सोयाबीन एवं अन्य खरीफ फसलों की पत्तियाँ शाम होने तक मुर्झाने लग जाती हैं। अब से 19-20 वर्ष पहले भी लगभग ऐसी ही स्थितियाँ उत्पन्न हुई थीं।
उस समय मौसम विज्ञानी, मौसम की भविष्यवाणीकर्ता, कृषि वैज्ञानिक , अनुभवी कृषकों आदि की सम्मिलित चर्चा एवं गोष्ठी का आयोजन कर सूखे, असामान्य वर्षा की स्थिति से निबटने के लिए एक रणनीति तैयार की गई थी, जो आज भी प्रासंगिक है। इसके अंतर्गत अल्पकालीन और दीर्घकालीन उपाय सुझाए गए थे। इन उपायों के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:-
निमाड़ क्षेत्र में कपास की दीर्घकालीन उन्नत व संकर किस्में, अरहर की लंबी अवधि वाली जातियाँ जुवार व मक्का की जल्दी पककर तैयार होने वाली स्थानीय व संकर किस्में लगाई जानी चाहिए।
जहाँ बोवनी के बाद फसलों का अंकुरण होकर पौधों में 4 से 10 पत्तियाँ तक आ गई हैं, वहाँ डोरा या कोलपा चलाकर अवरोध परत तैयार कर लें। इससे जमीन के निचले स्तर से नमी को ऊपरी सतह तक लाने वाली बारीक नालियाँ (केपेलरी ट्यूब्स) टूट जाती हैं और निचले स्तर की नमी सुरक्षित रहकर पौधों की जड़ों के उपयोग में आती है।
ये डोरे छोटे पांस वाले बखर (ब्लेड हेरो) के आकार के होना चाहिए। इस तरह के बखर से जमीन की सतह कटने के साथ ही सतह के नींदा आदि भी कटकर वहीं गिरते जाते हैं। ये भी एक तरह की जीवांश की परत का निर्माण कर फसल की दो कतारों के बीच की जगह पर एक रुकावटी जीवांश परत बनाकर नमी की हानि को रोकते हैं।
कपास की उन्नत किस्मों एवं संकर किस्मों के कुछ पत्तों को तोड़कर कम करके भी पौधे से उड़ने वाली नमी को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है। उर्वरकों की पूरी मात्रा एक साथ न देते हुए, एक चौथाई से एक तिहाई मात्रा अलग अलग किस्तों में दी जाती है। इससे यदि फसल में कोई नुकसान भी होता है, तो उर्वरकों पर होने वाले खर्च की कुछ बचत की जा सकती है।
सायकोसिल का छिड़काव करें : यदि खेत के आसपास आइपोमिया, करंज, रतनजोत आदि के पौधे हों तो उनकी पत्तियों को तोड़कर फसलों की दो कतारों के बीच उन्हें बिछाकर एक अवरोध परत तैयार की जा सकती है। कपास के बड़े खेतों में जहाँ पत्तों को हाथ से तोड़ना संभव न हो 'सायकोसिल' नामक पदार्थ 25 मिली प्रति एक लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़कें। इससे पौधों की बढ़वार सीमित हो जाती है। कपास के छोटे खेतों में कपास के पौधों को जिंदा बनाए रखने के लिए एक-एक लोटा पानी दिया जा सकता है।