थूक से चिपकाए गए आइटम साँग

अगर किसी गीत के लिए फिल्म में जगह नहीं बन रही, तो उसका प्रोमो बनाकर दिखाना दर्शकों के साथ धोखाधड़ी है। आजकल ये धोखाधड़ी खूब हो रही है। याद कीजिए "तनु वेड्स मनु" का गीत "जुगनी"। पूरी फिल्म में आप इंतजार करते रहते हैं कि मीका वाला गीत अब आएगा, अब आएगा, मगर गीत आता है फिल्म खत्म होने पर। पर्दे पर फिल्म में काम करने वाले छोटे-बड़े कलाकारों, कारीगरों, तकनीशियनों के नाम आते रहते हैं और गाना चलता रहता है। अब ऐसे में आप गाना देखेंगे या रस्ता पकड़ेंगे?

याद कीजिए "फिर हेराफेरी" का गीत "ओ मेरी जोहराजबी"। फिल्म के तमाम कलाकारों को ऑर्केस्ट्रा बजाते दिखाया गया है। दर्शकों को इस गीत का इंतजार रहता है, मगर ये गीत भी फिल्म खत्म होने पर आता है। ऐसा इसलिए क्योंकि फिल्म के बीच में ये गीत कहीं फिट नहीं होता। सो अंत में रखा गया है।

आइटम साँग को लेकर भी ऐसी ही धोखाधड़ी आजकल चल रही है। "देल्ही बैली" के प्रचार में चार चाँद लगाने के लिए यह कहा गया कि आमिर खान इसमें आइटम डांस कर रहे हैं। मगर ये आइटम डांस भी फिल्म में कहीं फिट नहीं होता, सो फिल्म खत्म होने पर दिखाया जाता है। सो भी चलते-चलते।

दर्शकों से इस तरह की ठगी बढ़ती ही जा रही है। फिल्म "बुड्ढा होगा तेरा बाप" में भी लगभग यही किया गया। इसके प्रचार में रवीना टंडन द्वारा किए गए आइटम साँग की चर्चा थी। फिल्म के प्रीमियर में भी इसे दिखाया गया। इसकी बहुत तारीफें भी हुईं मगर अब फिल्म में वह आइटम साँग कहीं नहीं है, यहाँ तक कि फिल्म के अंत में भी यह आइटम साँग नहीं दिखता। ये क्या है? जाहिर है आइटम साँग फिल्माया तो गया, पर फिल्म में कहीं गुंजाइश न होने के कारण डाला नहीं गया। डालते तो फिल्म झोल खा जाती। फिर निर्देशक अमिताभ पर इतना फिदा है कि अमिताभ का कोई दृश्य नहीं काट सकता, भले ही आइटम साँग कट जाए।

"देल्ही बैली" में भी वो गीत नहीं दिखाए जा रहे, जिनके द्वारा फिल्म का प्रचार किया जा रहा है। खासकर शास्त्रीय संगीत की धुन पर एक अजीब-सा गीत गाते तीनों नायक... ये गीत पूरी तरह फिल्म से नदारद है। "डीके बोस" भी ठीक से नहीं दिखाया गया। बस यहाँ-वहाँ थोड़ा सा बज गया है।

आमिर खान की ही फिल्म "पीपली लाइव" में "महँगाई डायन" बमुश्किल डेढ़ मिनट ही दिखाया गया। जबकि गीत हिट था और दर्शक इसे छः मिनट तक भी देख सकते थे। कुछ तो गए ही इसी गीत की खातिर थे। आजकल जिस निर्माता-निर्देशक को लगता है कि फिल्म में कसर रह गई है या थोड़ा सा बजट और बच गया है, तो वो एक आइटम साँग रच देते हैं, जो प्रोमो के काम आता है और फिल्म खत्म होते समय दिखा दिया जाता है।

फिल्म देखते हुए जब आप अपेक्षा करते हैं कि अमुक गीत आएगा-आएगा और नहीं आता, तो आप खुद को ठगा सा महसूस करते हैं। साथ ही यह इंतजार पूरी फिल्म पर भी एक किस्म का नकारात्मक प्रभाव डालता है। दूसरी तरफ निर्देशक इतने डरपोक होते जा रहे हैं कि वे फिल्म की गति से कोई समझौता करना नहीं चाहते। अगर ऐसा है तो फिर प्रोमो में भी वो चीज क्यों दिखाई जाती है, जो फिल्म में है ही नहीं? फिल्म पर भरोसा नहीं है और प्रोमो में जो गीत बजता है, वो दिखाना नहीं है। ऐसे में दर्शक कब तक ठगाएँगे? किसी न किसी को तो इसके लिए आवाज उठानी ही पड़ेगी। दुख तब होता है जब खुद को दर्शकों के प्रति बहुत जवाबदेह साबित करने वाले निर्माता आमिर खान भी ऐसी हरकत करते हैं।

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