गीता दत्त : जन्मजात कलाकार

दिलों की गहराई तक उतर जाने वाली आवाज और गाने के दिलकश अंदाज की मलिका गीता दत्त भारतीय फिल्म संगीत में पश्चिमी प्रभाव की पहचान थी और वह ऐसी फनकार थी जिन्हें हर तरह के गीत गाने में महारत हासिल थी।

एक प्रख्यात फिल्मी पत्रिका ने उनके निधन पर 20 जुलाई 1972 को लिखा था, ‘‘गीता दत्त ठंडी हवा और काली घटा की तरह झूमकर आ ही गई और उनकी आवाज में अलग ही तरह की कशिश थी और वह आपको ‘वाह-वाह’ करने पर मजबूर कर सकती हैं। गीता दत्त ही वह गायिका थीं, जिनसे लता मंगेशकर को डर था। प्रशिक्षण और तकनीक के मामले में लता भारी थी, लेकिन फिर भी रिकार्डिंग रूम में गीता दत्त भारी पड़ती। इसलिए लता ने उनसे दूरी बना ली।’’

गीता दत्त को सबसे पहले संगीत निर्देशक हनुमान प्रसाद ने वर्ष 1946 में फिल्म ‘भक्त प्रह्लाद’ में कोरस गीत गाने का मौका दिया। उसमें गीता को सिर्फ दो पंक्तियां गाने को मिलीं, लेकिन इसने ही उन्हें एक अहम स्थान दिला दिया।

प्रसिद्ध संगीतकार ओ पी नैय्यर ने लिखा है, ‘‘उनकी अलहदा गायिकी के अंदाज को कौन नकार सकता है। उन्हें एक पश्चिमी धुन में रचा गया गीत दीजिए और इसके बाद शास्त्रीय अंदाज वाला गीत दीजिए। वह दोनों के साथ उसी तरह बराबर न्याय करेंगी, जिस तरह कोई जन्मजात कलाकार कर सकता है। उनकी आवाज के उतार-चढ़ाव ने उन्हें हर तरह के संगीतकार की आदर्श पसंद बना दिया। गीता दत्त किसी भी संगीत निर्देशक के लिए पूंजी हैं।’’

अविभाजित भारत के फरीदपुर में 23 नवम्बर 1930 को एक जमींदार परिवार में जन्मी गीता रॉय का परिवार 1942 में मुम्बई आ गया था। संगीतकार एसडी बर्मन ने भक्त प्रहलाद का गीत सुनकर उन्हें फिल्म ‘दो भाई’ में बड़ा मौका दिया। इसका गीत ‘मेरा सुंदर सपना बीत गया’ बेहद लोकप्रिय हुआ और इसके एलपी की बिक्री ने नया रिकॉर्ड बनाया।

आलोचकों का मानना है कि इसके बाद 1949 में रिलीज हुई फिल्म बरसात, अंदाज और महल के गाने बेहद लोकप्रिय हुए। उनके गाए गीत दिन ब दिन बेहतर होते गए। महल का गीत ‘आएगा आने वाला..’ ने लोकप्रियता के सारे रिकॅर्ड तोड़ दिए और आज भी लोकप्रिय है।

यह फिल्म संगीत का वह दौर है जिसमें लता के जादू की शुरुआत हो चुकी थी और 50 के दशक में शमशाद बेगम और गीता रॉय दो ऐसी गायिका थीं, जो लता मंगेशकर के इस अभियान के बीच कामयाबी पाने में सफल रहीं।

गीता दत्त की गायकी काफी हद तक उनकी निजी जिंदगी से प्रभावित थी। ‘बाजी’ फिल्म में गाने के दौरान उनकी मुलाकात उस जमाने के मशहूर निर्देशक गुरुदत्त से हुई। दोनों 1957 में शादी के बंधन में बंध गए और वह बन गयी गीता दत्त।

गीता की आवाज की खनक का बेहतरीन इस्तेमाल संगीत निर्देशक एस. डी. बर्मन ने ‘देवदास’ और ‘प्यासा’ में किया। ‘बाजी’ में जैज संगीत वाली ‘पश्चिमी’ धुनों पर गीत गाकर गीता ने दुनिया को अपनी बहुमुखी प्रतिभा का एहसास कराया।

ओ. पी. नैयर के संगीत निर्देशन में गीता की गायकी और निखरी। अपेक्षाकृत तेज और ज्यादा वाद्य यंत्रों की धुनों से तालमेल बैठाकर अपनी आवाज का जादू चलाने वाली गीता दत्त जल्द ही 1950 के दशक की शीर्ष गायिका बन गईं।(भाषा)

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