तनु वेड्स मनु : फिल्म समीक्षा

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निर्माता : विनोद बच्चन, शैलेन्द्र आर.सिंह, सूर्या सिंह
निर्देशक : आनंद एल. राय
कलाकार : आर.माधवन, कंगना, जिमी शेरगिल, दीपक डोब्रियाल, एजाज खान
सेंसर सर्टिफिकेट : यू/ए * अवधि : 2 घंटे * 14 रील
रेटिंग : 3/5

ज्यादातर फिल्मों में हीरोइन का किरदार वैसा ही पेश किया जाता है, जिस तरह वैवाहिक विज्ञापनों में वधू चाहने वाले लोग अपनी पसंद बताते हैं। सुंदर, सुशील, सभ्य...। हीरोइनों को सिगरेट पीते, शराब गटकते और अपने माँ-बाप से बगावत करते हुए बहुत कम देखने को मिलता है। ‘तनु वेड्स मनु’ की हीरोइन ऐसी ही है, आदर्श लड़की से एकदम अलग। बिंदास, मुँहफट, लगातार बॉयफ्रेंड बदलने वाली और विद्रोही। तनु नामक यही कैरेक्टर फिल्म को एक अलग लुक प्रदान करता है और फिल्म ज्यादातर वक्त बाँधकर रखती है।

‘तनु वेड्स मनु’ देखते समय ‘दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएँगे’, ‘जब वी मेट’, ‘बैंड बाजा बारात’ जैसी कई फिल्में याद आती हैं क्योंकि इसकी धागे जैसी पतली कहानी और फिल्म का ट्रीटमेंट इन हिट फिल्मों जैसा है, लेकिन फिल्म के किरदार और यूपी का बैकग्राउंड फिल्म को एक अलग लुक देता है।

तनु (कंगना) को अपने माँ-बाप की पसंद के लड़के से शादी नहीं करना है। उधर मनु (माधवन) पर भी उसके माता-पिता शादी का दबाव डालते हैं। दोनों की मुलाकात करवाई जाती है और तनु से मनु प्यार कर बैठता है। शादी के लिए हाँ कह देता है, लेकिन तनु इसके लिए राजी नहीं है। वह किसी और को चाहती है और उसके कहने से मनु शादी से इंकार कर देता है।

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तनु को मनु भूला नहीं पाता है और पंजाब में अपने दोस्त की शादी के दौरान उसकी मुलाकात फिर तनु से होती है। दोनों में अच्छी दोस्ती हो जाती है, लेकिन तनु अपने बॉयफ्रेंड से शादी करने वाली है। इसके बाद कुछ घटनाक्रम घटते हैं और तनु, मनु की हो जाती है।

कुछ लोगों को तनु का शादी और प्यार को लेकर इतना कन्फ्यूज होना अखर सकता है क्योंकि वह बार-बार अपना निर्णय बदलती रहती है और किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुँच पाती है, लेकिन निर्देशक ने शुरू से ही दिखाया है कि वह है ही ऐसी। जिंदगी के प्रति उसका नजरिया लापरवाह किस्म का है और इसका असर उसके निर्णय लेने पर भी पड़ता है।

फिल्म का पहला हिस्सा मजेदार है। चुटीले संवाद और उम्दा सीन लगातार मनोरंजन करते रहते हैं। मध्यांतर ऐसे बिंदु पर आकर किया गया है कि उत्सुकता बनती है कि मध्यांतर के बाद क्या होगा, लेकिन दूसरा हिस्सा अपेक्षाकृत कमजोर है।

तनु और मनु की अनिर्णय की स्थिति को लंबा खींचा गया है और मेलोड्रामा थोड़ा ज्यादा ही हो गया है। जिमी शेरगिल वाला ट्रेक ठूँसा हुआ लगता है। वह माधवन की ठुकाई करने का जिम्मा रवि किशन को देता है, इसके बावजूद वह माधवन को नहीं पहचान पाता। लेकिन इन कमजोरियों के बावजूद फिल्म मनोरंजक लगती है क्योंकि तनु और मनु के अलावा कुछ बेहतरीन किरदार फिल्म में देखने को मिलते हैं। इनमें दीपक डोब्रियाल और स्वरा भास्कर का उल्लेख जरूरी है जो तनु और मनु के दोस्त के रूप में नजर आते हैं।

निर्देशक आनंद एल. राय ने फिल्म के चरित्रों पर खासी मेहनत की है और इसी वजह से फिल्म रोचक बन पड़ी है। उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि और वहाँ के रहने वाले लोगों के मिजाज को बखूबी पेश किया गया है। दूसरे हाफ में यदि स्क्रिप्ट की थोड़ी मदद उन्हें‍ मिली होती तो फिल्म बेहतरीन बन जाती।

कंगना फिल्म की कमजोर कड़ी साबित हुई है। वे लीड रोल में हैं लिहाजा उनका अभिनय फिल्म की बेहतरी के लिए बहुत मायने रखता है, लेकिन कंगना अपने रोल के साथ पूरी तरह न्याय नहीं कर पाईं। तनु का जो कैरेक्टर है उसमें कंगना चमक नहीं ला पाईं। डायलॉग डिलीवरी सुधारने की उन्हें सख्त जरूरत है।

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लंदन से लड़की की तलाश में भारत आए मनु के किरदार में माधवन जमे हैं। एक भला इंसान, माँ-बाप का आज्ञाकारी बेटा और सच्चे प्रेमी की झलक उनके अभिनय में देखने को मिलती है। जिमी शेरगिल का रोल ठीक से नहीं लिखा गया है। हिट नहीं होने के बावजूद फिल्म का संगीत मधुर है।

‘तनु वेड्स मनु’ की कहानी में नयापन नहीं है, लेकिन इसके कैरेक्टर, संवाद और कलाकारों की एक्टिंग फिल्म को मनोरंजक बनाते हैं।

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