डिपार्टमेंट : फिल्म समीक्षा

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बैनर : रामगोपाल वर्मा प्रोडक्शन्स, उबेरॉय लाइन प्रोडक्शन्स, वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स
निर्माता-निर्देशक : रामगोपाल वर्मा
संगीत : धरम संदीप, बप्पा लाहिरी, विक्रम नागी
कलाकार : अमिताभ बच्चन, संजय दत्त, राणा दग्गुबती, अंजना सुखानी, मधु शालिनी, ‍विजय राज, नतालिया कौर
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 12 मिनट
रेटिंग : 1.5/5

रामगोपाल वर्मा को कुछ नया नहीं सूझता तो वे अपना पुराने माल की धूल साफ कर फिर परोस देते हैं। पुलिस, अंडरवर्ल्ड, एनकाउंटर को लेकर वे इतनी फिल्में बना चुके हैं कि इस बारे में उनकी सोच अब जवाब दे गई है। ‘डिपार्टमेंट’ में वे कुछ भी नया नहीं पेश कर पाए।

अब तो उनके एक्सपरिमेंट भी टाइप्ड हो गए हैं। हर फिल्म वे शॉट आड़े-तिरछे कोणों से शूट करते हैं और हर बार यह प्रयोग अच्छा लगे जरूरी नहीं है। दरअसल रामू को चीज बिगाड़ कर पेश करने की आदत है, लेकिन कितना बिगाड़ना है इस पर उनका नियंत्रण नहीं है, इस वजह से फिल्म पर से उनकी पकड़ छूट जाती है।

डिपार्टमेंट की कहानी में एकमात्र अनोखी बात ये है कि पुलिस विभाग के अंदर भी एक डिपार्टमेंट बनाया जाता है ताकि अंडरवर्ल्ड पर शिकंजा कसा जा सके। इस डिपार्टमेंट के अंदर काम करने वाले महादेव भोसले (संजय दत्त) और शिवनारायण (राणा दग्गुबाती) में शुरू में तो अच्छी पटती है, लेकिन दोनों के काम करने के तौर-तरीकों में काफी फर्क है, जिससे उनके बीच दूरियां बढ़ने लगती है।

वे गैंगस्टर्स को मारने के लिए दूसरी गैंग्स के लिए काम करने लगते हैं। इन दोनों के बीच आता है गैंगस्टर सर्जेराव गायकवाड़ (अमिताभ बच्चन) जो अब मंत्री है और इन दोनों पुलिस अफसरों का उपयोग कर वह अपना मतलब निकालता है।

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स्क्रीनप्ले ठीक-ठाक है। हर किरदार को समझना और उसके अगले कदम के बारे में अनुमान लगाना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन बतौर निर्देशक रामू ने स्थिति स्पष्ट करने में बहुत ज्यादा वक्त ले लिया। साथ ही उन्होंने कहानी को स्क्रीन पर इस तरह उतारा है कि फिल्म बेहद लंबी और उबाऊ लगती है।

खासतौर पर इंटरवल के पहले ‍वाला हिस्सा बहुत ही धीमा और दोहराव से भरा है। महादेव और शिव गैंगस्टर्स को मारते हैं, घर पर जाकर बीवी या गर्लफ्रेंड से बातें करते हैं और गैंगस्टर (विजय राज) अपने लोगों पर चिल्लाता रहता है, बस यही तीन प्रसंग बारी-बारी से परदे पर आते-जाते रहते हैं और कहानी बमुश्किल आगे खिसकती है।

इंटरवल के बाद कहानी में गति आती है और घटनाक्रम तेजी से घटते हैं, लेकिन बीच में कई बोरियत भरे पल आते हैं जिसके कारण फिल्म में रूचि खत्म हो जाती है और फिल्म खत्म होने का इंतजार शुरू हो जाता है।

फिल्म में कई ऐसे सीन हैं जो सिर्फ लंबाई बढ़ाने के काम आते हैं, जैसे अमिताभ बच्चन का पहला दृश्य, जिसमें लालचंद और वालचंद नामक दो भाइयों के बीच वे समझौता कराते हैं। यह सीक्वेंस दर्शकों को हंसाने के लिए रखा गया है, लेकिन जमकर बोर करता है। गैंगस्टर डी.के. और नसीर को जरूरत से ज्यादा फुटेज दिए गए हैं।

बतौर रामू निर्देशक के रूप में बिलकुल प्रभावित नहीं करते। बजाय फिल्म को मनोरंजक बनाने के उनका सारा ध्यान कैमरा एंगल्स और एक्शन सीन्स पर रहा। एक्शन दृश्य तो फिर भी औसत हैं, लेकिन जर्की कैमरा मूवमेंट्स फिल्म देखने में व्यवधान पैदा करते हैं। फिल्म की एडिटिंग भी खराब है।

तकनीकी रूप से फिल्म कमजोर है। बैकग्राउंड म्युजिक बेहद लाउड है, जब भी डिपार्टमेंट शब्द आता है तो उसके बाद खास किस्म का बैकग्राउंड म्युजिक सुनने को मिलता है, ऐसा लगता है मानो बताया जा रहा हो कि आप डिपार्टमेंट नाम की फिल्म देख रहे हैं। फाइट सीन में दीवार कार्डबोर्ड की नजर आती है। एक-दो सीन सिंक साउंड में हैं तो बाकी फिल्म डब की गई है।

इस तरह की फिल्मों में गानों की जगह बमुश्किल बनती है और हैरानी की बात तो ये है कि रामू ने इस फिल्म में शादी का भी एक गीत डाल दिया है। नमक हलाल के गीत ‘थोड़ी सी जो पी ली है’ को बहुत ही बुरे तरीके से गाया और पेश किया गया है।

अमिताभ बच्चन के किरदार को मनोरंजक बनाने के लिए उन्हें कुछ उम्दा संवाद दिए हैं, जो उनके प्रशंसकों को अच्छे लगेंगे, जैसे- ‘भारत में लोग पांच सौ करोड़ रुपये का गुटखा खाकर थूक देते हैं’ या ‘जैसे गौतम बुद्ध को पेड़ के नीचे साक्षात्कार हुआ था वैसा मुझे धारावी के सिग्नल के नीचे हुआ’। बिग बी ने अपना काम ठीक से किया और वे कुछ राहत के पल देते हैं।

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संजय दत्त कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ते और वे मोटे नजर आए। राणा दग्गुबती, मधु शालिनी और विजय राज का अभिनय ठीक कहा जा सकता है।

डिपार्टमेंट में एक संवाद है कि अंडरवर्ल्ड और फिल्म सिर्फ पब्लिसिटी से चलते हैं, शायद इसीलिए रामू ने फिल्म की बजाय पब्लिसिटी पर ज्यादा ध्यान दिया, लेकिन डिपार्टमेंट को पब्लिसिटी भी बचा नहीं पाएगी।

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