दाएँ हाथ के बल्लेबाज, अस्थायी विकेटकीपर, बाएँ और दाएँ हाथ के गेंदबाज, श्रेष्ठ निकट के क्षेत्ररक्षक
क्रिकेट की दुनिया में अगर सही मायने में किसी बल्लेबाज को लिटिल मास्टर के नाम से जाना जाता है तो वह पाकिस्तान के हनीफ मोहम्मद रहे हैं, जो कि 5 भाईयों में बीच के तीसरे नंबर के थे, जिनमें से 4 ने पाकिस्तान के लिए टेस्ट क्रिकेट खेला। हनीफ मोहम्मद सही मायनों में पाकिस्तान के राष्ट्रीय हीरो थे।
अपने घुटने में चोट की वजह से वेस्टइंडीज के विरुद्ध कराची में 1958-59 में पहला टेस्ट मैच न खेल पाने के बाद हनीफ ने लगातार पाकिस्तान के लिए पहले 24 टेस्ट खेले जो पाकिस्तान क्रिकेट इतिहास के पहले 24 टेस्ट थे। कद से बेहद छोटे 5.6 इंच के हनीफ बहुत ही लड़कपन लिए हुए थे, लेकिन उनमें बल्लेबाजी की असाधारण क्षमता थी। उनके आक्रामक स्टोक्स विशेषकर लेग साइड में दर्शनीय थे। उनके युग के तेज और घातक गेंदबाज ब्रायन स्टेटहेम की दो मारक बाउंसर्स पर लगाए गए हुकशॉट द्वारा दो गगनचुम्बी छक्के आज भी उनके प्रशंसकों की स्मृति में तरोताजा हैं।
हालाँकि हनीफ के पास क्रिकेट की किताब का हर शॉट था, लेकिन फिर भी उन्होंने पाकिस्तान के गौरव के लिए विकेट पर खड़े होकर ठहरी हुई और जिम्मेदारीभरी पारियाँ खेलने का ज्यादा महत्व समझा। इसी वजह से उनके नाम प्रथम श्रेणी क्रिकेट की सबसे लंबी और सबसे बड़ी पारी खेलने का रिकॉर्ड हाल तक ही था, जिसे लारा ने अभी कुछ वर्ष पूर्व ही तोड़ा। 1958-59 में भावलपुर के विरुद्ध खेलते हुए उन्होंने 499 रनों की विशाल पारी खेली।
उनके जीवन से जुड़ा एक और रोचक किस्सा उनके टेस्ट जीवन के अंतिम टेस्ट का था, जो कराची में उन्होंने 1969-70 में न्यूजीलैंड के विरुद्ध खेला। वह अपने भाई सादिक मोहम्मद के साथ बल्लेबाजी करने गए, उनका तीसरा भाई मुश्ताक चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करने आया। यह क्रिकेट इतिहास का तीसरा ऐसा अवसर था जब एक ही टेस्ट में 3 भाई अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। इससे पूर्व ग्रेसेस और हर्न्स भाईयों ने अपने राष्ट्र के लिए किया था। उनका चौथा भाई वजीर भी पाकिस्तान के लिए 20 टेस्ट खेला और पाँचवा भाई रईस एक आधिकारिक टेस्ट मैच में पाकिस्तान के लिए 12वाँ खिलाड़ी बना। हालाँकि हनीफ का परिवार भारत के जूनागढ़ क्षेत्र से संबद्ध था, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि हनीफ महानतम पाकिस्तानी बल्लेबाज थे।
हनीफ ने हमेशा अपने रिकॉर्ड और प्रदर्शन के ज्यादा पाकिस्तान के गौरव और जीत को सर्वोपरी रखा और हमेशा टीम के हित में खेले। उनकी प्रतिभा और समर्पण के किस्से उनके समकालीन क्रिकेट खिलाड़ी आज भी सारी दुनिया में गर्व के साथ आपस में बाँटते हैं।