हमारी जिंदगी को बचाने में सबसे बड़ा हाथ डॉक्टर का होता है। वो डॉक्टर ही होता है, जो बीमारी या दुर्घटना के बाद अपनी सूझबूझ व पेशे के अनुभवों से हमें एक नई जिंदगी देता है।
जब हम दर्द से कराहते हैं तब हमारे मुँह से निकला पहला शब्द यही होता है कि 'डॉक्टर साहब मुझे बचा लो। भले ही आप मेरी सारी दौलत ले लो पर मुझे जिंदगी दे दो'। इन जीवनदाता चिकित्सकों के उपकारों व चुनौतीभरे पेशे के कारण ही चिकित्सक को धरती पर 'भगवान का दूसरा रूप' कहा जाता है।
स्वभाव से सहज, सेवा में तत्पर चिकित्सकों का पेशा किसी चुनौती से कम नहीं होता है। मरीज को निरोगी करना व मौत के मुँह से बाहर खीच लाना हर चिकित्सक का पहला कर्तव्य होता है। इसके लिए वे अपने स्तर भरसक प्रयास करते है परंतु कभी-कभी मरीज को न बचा पाने के कारण उन्हें जन आक्रोश का भी शिकार होना पड़ता है। परंतु फिर भी वे उस अपमान को झेलने के बावजूद भी मरीज की जान बचाने के अपने पेशे का के प्रति बेईमानी नहीं करते हैं।
उस महिला की बीमारी बड़ी ही रेयर बीमारी थी, जो बहुत कम मरीजों को होती है। उस महिला की कलाई के थोड़ा ऊपर की ओर सिक्के से थोड़े बड़े आकार का एक नॉन कीलिंग अल्सर था, जिसका घाव दवाईयाँ लेते रहने से भर जाता व कुछ समय बाद फिर से उसी स्थान पर घाव हो जाता।
आखिर ऐसा क्यों है कि अगर किसी मरीज का जीवन बच गया तो जिस चिकित्सक को आप सिर आँखों पर बैठा लेते हैं लेकिन इसके विपरित यदि कोई मरीज अपनी बीमारी से जंग में हार जाता है तो बगैर कुछ सोचे-समझे मरीज की मौत का सारा दोषारोपण उसी चिकित्सक के मत्थे मढ़ देते है।
कभी सम्मान तो कभी अपमान को सहते चिकित्सक के बारे में क्या कभी किसी ने गंभीरता से सोचा है कि आखिर मरीजों के इस आक्रोश के बावजूद भी वो अपने पेशे व उसके प्रति ईमानदारी को नहीं छोड़ते है। आखिर क्यों वो जनता के अपमान के जहर का घुँट पीकर भी लोगों की जान बचाने की मुहिम में जुट जाते हैं? आज इस विषय पर हम सभी को गंभीरता से चिंतन करना होगा ताकि चिकित्सकों को भी समाज में सम्मान का दर्जा मिले।
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पेशे से जुड़े कुछ यादगार लम्हें : हर चिकित्सक के साथ मरीजों से जुड़े कई वाकियों की लंबी फेहरिस्त है। आज 'डॉक्टर्स डे' है यानि चिकित्सकों का दिन।
इस विशेष दिवस पर हमने की बात शहर के कुछ जाने-माने चिकित्सकों से और जाने उनके पेशे से जुड़े कुछ यादगार अनुभव :
डॉ. अजय पारिख (एम.डी. मेडीसिन) : जब कोई डॉक्टर किसी मरीज को जिंदगी देता है वह उसके जीवन का यादगार लम्हा होता है। सभी चिकित्सकों का पहला प्रयास मरीज को संतोषप्रद उपचार देकर उसे उसकी बीमारी से मुक्त कराना व निरोगी बनाना होता है। इस दिन मैं आपसे अपने पेशे से जुड़ा एक वाकिया शेयर करना चाहूँगा।
एक बार एक गरीब मजदूर किसी अन्य डॉक्टर के अस्पताल में भर्ती था। उसे उल्टी-दस्त की शिकायत थी। अचानक सुबह 6 बजे के करीब उसकी साँस भरने लगी और उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। तब मुझे उसका इलाज करने के लिए वहाँ तत्काल बुलाया गया। मैंने देखा कि वह प्वाइजनिंग (आर्गेनो फॉस्फोरस प्वाइजनिंग) का केस था।
हम सभी शिक्षित और सभ्य नागरिक है इसलिए पहल हमें ही करनी होगी तथा डॉक्टर व मरीज के बीच एक ऐसा रिश्ता बनाना होगा, जो ईमानदारी व विश्वास की नींव पर टिका हो। याद रखें कि किसी बीमारी के घाव तो जल्दी ही भर जाते हैं परंतु शब्दों के घाव कभी नहीं भरते हैं।
हालाँकि मरीज व उसके परिवारजनों ने इस संबंध में मेरे सामने कुछ भी खुलासा नहीं किया था कि उस मरीज को किसी ने जहर दिया था या उसने खुद जहर लिया था। वो मरीज 40 वर्षीय मजदूर आदमी था, जो कि बहुत ही ज्यादा गरीब था उसके बीवी व छोटे-छोटे बच्चे लगातार रो रहे थें। उन्होंने मुझे कहा कि आप इन्हें बचा लोगे तो हम पर बहुत बड़ा उपकार होगा।
उस मरीज के कारण मैं उस दिन अपने क्लीनिक भी नहीं गया तथा उसकी हालत स्थिर होने तक मैंने वहीं रूककर उसका उपचार किया। हालाँकि मुझे इसका जरा भी मलाल नहीं है क्योंकि उस दिन मेरा काम उसकी जान बचाना था।
अंतत: अथक प्रयासों के फलस्वरूप मैंने आखिरकर उसकी जान बचा ही ली। उसके बाद उस मजदूर के परिवारजनों के चेहरे पर जो खुशी की जो रौनक थी वो देखते ही बनती थी। मुझे भी उस दिन बहुत अच्छा लगा कि आखिरकार उस मरीज को अपनी अनमोल जिंदगी मिल गई।
डॉ. सुनील मालपानी (स्कीन स्पेशलिस्ट) : मेरे जीवन का यादगार वाकिया वो है, जब मैंने एक 65 वर्षीय वृद्ध महिला की बीमारी का इलाज किया था। उस महिला की बीमारी बड़ी ही रेयर बीमारी थी, जो अमूमन बहुत कम मरीजों में देखने को मिलती है। उस महिला की कलाई के थोड़ा ऊपर की ओर सिक्के से थोड़े बड़े आकार का एक नॉन कीलिंग अल्सर था, जिसका घाव दवाईयाँ लेते रहने से भर जाता व कुछ समय बाद फिर से उसी स्थान पर वैसा ही घाव हो जाता।
उस महिला ने कई चिकित्सकों से इलाज कराया परंतु उसे उस बीमारी का कोई स्थाई हल नहीं मिला। अंतत: वो मेरे पास आई। मैंने उसकी जाँच में पाया कि उसे तो 'स्किन का ट्यूबरक्यूलोसिस' है, जो कि बहुत रेयर बीमारी है क्योंकि आमतौर पर ट्यूबरक्यूलोसिस फेफड़ों से संबंधित बीमारी है।
मैंने उस महिला को 1 वर्ष तक एंटी टीबी ड्रग्स का ट्रीटमेंट दिया, जिससे उस महिला की वो बीमारी पूरी तरह से चली गई। आज वो महिला पूर्णत: स्वस्थ है। हालाँकि मेरे लिए यह किसी बड़े चैलेंज से कम नहीं था परंतु मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि आखिरकार उस मरीज को उस गंभीर बीमारी से निजात मिल ही गई, जिससे वह लगभग 18 वर्षों से ग्रसित थी।
कुछ ऐसे ही खट्टे-मीठे अनुभव अमूमन हर चिकित्सक के साथ जुड़े है। मैं आज के इस विशेष दिन पर आप सभी से यही कहना चाहूँगी कि आप और मैं हम सभी एक सभ्य समाज के नागरिक है। हम सभी चाहते हैं कि हमसे हर कोई सभ्यता व शिष्टाचार से पेश आए फिर यदि कोई चिकित्सक मरीज से ऐसी अपेक्षा करे तो उसमें हर्ज ही क्या है?
अमूमन हर चिकित्सक किसी भी मरीज की जान बचाने में अपना जी जान लगा देता है, जो हमें जिंदगी और उससे जुड़ी खुशियाँ देता है, उस चिकित्सक को हम बदले में क्या देते है अपमान व तिरस्कार? आखिर यह कैसी सभ्यता है?
हम सभी शिक्षित और सभ्य नागरिक है इसलिए अब पहल हमें ही करनी होगी तथा चिकित्सक व मरीज के बीच एक ऐसा मजबूत रिश्ता बनाना होगा, जो ईमानदारी व विश्वास की नींव पर टिका हो। हमेशा याद रखें कि किसी बीमारी के घाव तो जल्दी ही भर जाते हैं परंतु शब्दों के घाव कभी नहीं भरते इसलिए हमेशा सभी के साथ मृदु व्यवहार बनाएँ।
डॉक्टर्स डे पर शहर के सभी चिकित्सकों को मेरा सलाम।