फैशन का मनोविज्ञान

- भारती जोशी
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आज सारा संसार फैशन का दीवाना है क्यों‍कि इसमें समाई है दरियादिली। यदि हम अपने सामाजिक व्यवहार पर गौर करें तो पाएँगे कि हमारा अधिकांश व्यवहार फैशन पर ही आधारित है। चाहे यह व्यवहार केश सज्जा के संबंध में हो या जेवर, वेशभूषा, फर्नीचर, जूते-चप्पल, मकान बनाने या कमरे सजाने से संबंधित हो, हम सभी मामलों में फैशन से ही प्रभावित रहते हैं चूँकि मानव स्वभाव नवीनता प्रिय होता है इसीलिए वह फैशन का अनुकरण करता है। फैशन की परिवर्तनशीलता के ही कारण आज हम लोग अंधानुकरण करते हुए भी इसके पीछे-पीछे भाग रहे हैं लेकिन इसके आगे नहीं निकल पाते हैं।

फैशन किसी भी जनसमूह की रुचि या पसंद में होने वाले क्रमिक परिवर्तनों को कहा जाता है जो उपयोगिता द्वारा निर्धारित नहीं होता मनोवैज्ञानिक किम्बल यंग ने फैशन को एक प्रचलन, तरीका, कार्य करने का ढंग, अभिव्यक्ति की विशेषता या सांस्कृतिक लक्षणों को प्रस्तुत करने की विधि कहा है जिसे बदलने की आज्ञा स्वयं प्रथा देती है। यदि हम प्रथा को सामाजिक व्यवहार का एक स्थिर और स्थायी पहलू मानते हैं तो फैशन की इस सामान्य स्वीकृति के अंदर होने वाले परिवर्तन के रूप में कल्पना कर सकते हैं।

फैशन के जन्म और विनाश में एक और मनोवैज्ञानिक प्रेरक शक्ति विद्यमान है वह यह कि फैशन व्यक्ति की हीनता की भावना की क्षतिपूर्ति करता है। जिन लोगों के व्यक्तित्व में कुछ कमी या दोष होता है। उनमें इसी कारण हीनता की भावना पनपती है और वे इसी दोष की क्षतिपूर्ति करने के लिए फैशन के क्षेत्र में नेतृत्व करने की बात सोचते हैं।
  आज सारा संसार फैशन का दीवाना है क्यों‍कि इसमें समाई है दरियादिली। यदि हम अपने सामाजिक व्यवहार पर गौर करें तो पाएँगे कि हमारा अधिकांश व्यवहार फैशन पर ही आधारित है।      


वे आधुनिकतम फैशन के अनुरूप वस्त्र पहनते हैं। वैज्ञानिक, शिक्षक, साहित्यकार, दार्शनिक अक्सर ही अस्त-व्यस्त दिखाई देते हैं। इसका कारण है कि उनमें वास्तविक योग्यता होती है और उन्हें सामाजिक पद व प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए किसी बाहरी दिखावे का सहारा नहीं लेना पड़ता है किंतु जो आश्रित प्रकृति के होते हैं, उनकी आत्मचेतना को किसी न किसी मात्रा में ख्याति, ध्यान विलक्षणता की अपेक्षा होती है।

फैशन उन लोगों के लिए एक आदर्श क्षेत्र प्रदान करता है। यह भी एक धारणा है कि फैशन में स्त्रियों की रुचि पुरुषों की अपेक्षा अधिक होती है। भारतीय समाज पुरुष प्रधान है जहाँ सदैव ही स्त्रियों को निम्न दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। इसलिए स्त्रियाँ अपने अस्तित्व को आकर्षक दिखाने में कायम रखती हैं।

प्राचीन समाज में स्त्रियाँ आभूषण और तड़क-भड़क वाली पोशाक पहनकर पुरुषों को अपनी ओर आकृष्ट करती थीं किंतु आज ये विचार बदल चुके हैं और लड़कियाँ अपने आपको पुरुषों के बराबर साबित करना चाहती हैं।

फैशन के पनपने में सांस्कृ‍तिक पृष्ठभूमि भी अपनी भूमिका अदा करती है। कोई भी फैशन तभी पनपता है जबकि थोड़े बहुत सामाजिक मूल्य उसके पक्ष में हों। फिर भी फैशन है जो आज है वह कल न रहेगा। जो कल था वह आज नहीं है, इसलिए मनोवैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि सांस्कृतिक प्रतिमान के लिए रूप में फैशन एक प्रकार का ऐसा सामाजिक संस्कार है जिसके संबंध में आशा की जाती है कि लोग उसका निर्वाह करेंगे।