हर मुल्क में उपेक्षित है महिला

रविवार, 9 मार्च 2008 (11:37 IST)
दुनिया के कमोबेश हर देश में कुछ ऐसे कानून मौजूद हैं, जिनके प्रावधानों के तहत महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण बर्ताव किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार मामलों के उच्चायुक्त लूसी आर्बर ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर यहाँ कहा कि ऐसा प्रतीत होता कि कई देश अपने वादों से मुकर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि यह शर्मनाक है कि मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के 60 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद दुनिया के कई देशों में महिलाएँ अपने मूलभूत अधिकारों से सर्वथा वंचित हैं।

उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि कई मामलों में महिलाएँ एकाधिक भेदभाव की शिकार हो रही हैं। ये भेदभाव नस्ल, आयु और लिंग संबंधी हैं। जब तक दुनिया के तमाम मुल्क अपनी प्रतिबद्धताओं को लेकर गंभीर रुख अख्तियार नहीं करेंगे, लड़कियों और महिलाओं की स्थिति दुविधाजनक ही बनी रहेगी।

संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार मामलों की उच्चायुक्त लूसी आर्बर ने अपनी एक नवीन रिपोर्ट को आधार बनाकर कहा कि इस असफलता से पुरुष और महिला के बीच कानूनी रूप से खाई चौड़ी होती जा रही है।

उन्होंने कहा इससे कई देशों में महिलाओं पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है और कई बार तो यह प्रतिकूलता अपने खतरनाक स्तर को पार कर जाती है।

कानूनी विसंगतियों का उदाहरण देते हुए आर्बर कहती हैं दुनिया की अधिकतर कानूनी प्रणालियों में बलात्कार को एक गंभीर अपराध के रूप में स्वीकार किया जाता है, लेकिन फिर भी अपर्याप्त कानूनी प्रावधानों या स्थानीय कुप्रथाओं के कारण संबंधित कानून समुचित रूप से लागू नहीं हो पाते।

उन्होंने जोर देकर कहा कम से कम 53 ऐसे देश हैं जहाँ किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध उसके पति द्वारा यौन संबंध स्थापित करने को बलात्कार की श्रेणी में नहीं रखा जाता।

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