शरीर रक्षा करने हेतु

हेतु- शरीर रक्षा में सहायक होता है।

त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांसमादित्य-वर्णममलं तमसः पुरस्तात्‌ ।
त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्युं नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र पन्थाः ॥ (23)

मुनिजन आपको अँधेरे में सूरज के समान निष्कलंक परम पुरुष मानते हैं... सही रूप में/सच्चे स्वरूप में आपको पाकर ही मृत्युंजय हुआ जा सकता है... इसके अलावा अन्य कोई चारा नहीं है और न ही कोई अन्य मुक्ति-मंजिल की राह है।

ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो आसीविसाणं ।

मंत्र- ॐ नमो भगवति जयवति मम समीहितार्थं मोक्षसौख्यं कुरु कुरु स्वाहा।

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