अब वहाँ है तबाही का मंजर

शुक्रवार, 6 मार्च 2009 (12:31 IST)
तेरह बरस पहले एक दिवसीय क्रिकेट में अपनी बादशाहत पहले पहल साबित करने वाली श्रीलंकाई टीम हाथ में चमचमाता विश्वकप लिए लाहौर के इसी गद्दाफी स्टेडियम से रवाना हुई थी। तब किसे पता था कि एक दिन उसे दहशतगर्दों के खूंरेजी के खेल का यहाँ सामना करना पड़ेगा।

लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम के पास हुए आतंकवादी हमले के बाद श्रीलंकाई टीम को मैदान के भीतर ही से पाकिस्तानी वायुसेना के हेलिकॉप्टरों से भागना पड़ा।

मौजूदा टीम में शामिल ऑफ स्पिनर मुथैया मुरलीधरन और तेज गेंदबाज चमिंडा वास ने 1996 विश्वकप भी खेला था। मुरलीधरन ने जनवरी में लाहौर में तीसरे वनडे में पाकिस्तान को हराने के बाद कहा था इस स्टेडियम से हमारी सुखद यादें जुड़ी हैं। यह मेरे पसंदीदा मैदानों में से है। हमारा प्रदर्शन यहाँ अच्छा रहा है।

लेकिन मंगलवार को हुए आतंकी हमले के बाद श्रीलंकाई क्रिकेटरों ही नहीं बल्कि दुनिया भर के क्रिकेटरों की सोच बदल गई है। अब कोई यहाँ नहीं आना चाहता।

मुरली ने कोलंबो पहुँचने के बाद कहा हम खुशकिस्मत हैं कि आपके सामने खड़े हैं। पूरा वाक्या किसी बुरे सपने की तरह था।

मैदानकर्मी हाजी बशीर ने भी इस मैदान पर श्रीलंकाई को जश्न मनाते और त्रासदी झेलते देखा है।

बशीर ने कहा 1996 विश्वकप जीतने के बाद उनके चेहरों पर अजीब सा नूर था। सब बहुत खुश थे लेकिन मंगलवार को कहानी कुछ और ही थी। मैं नहीं जानता कि उन्हें दोबारा देख पाऊँगा या नहीं।

पचास के दशक में बने गद्दाफी स्टेडियम में पहले सभी खेल होते थे। इसे पहले ओलिंपिक स्टेडियम कहा जाता था। इस पर पहला टेस्ट नवंबर 1959 में पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया।

इसके बाद से 24000 दर्शक क्षमता वाले इस मैदान पर सिर्फ क्रिकेट मैच ही होने लगे। अब तक इस पर खेले गए 40 टेस्ट में से पाकिस्तान ने 12 जीते छह हारे और 22 ड्रॉ रहे। इस मैदान ने 58 एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों की मेजबानी भी की जिसमें पाकिस्तान ने 29 जीते 18 गंवाये और एक ड्रॉ रहा। पाकिस्तान से इतर टीमों ने भी यहाँ दस मैच खेले हैं।

पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने लीबिया के राष्ट्रपति माओमेर कद्दाफी के नाम पर इसका नाम गद्दाफी स्टेडियम रखा। गुलबर्ग इलाके में स्थित इस स्टेडियम में प्रवेश के दो रास्ते हैं। पहला फिरोजपुर रोड से और दूसरा लिबर्टी गोलचक्कर से जहाँ मंगलवार को आतंकवादी हमला हुआ था।

इस स्टेडियम में 2011 विश्वकप का सेमीफाइनल मैच होना है लेकिन अब इसमें संदेह ही है कि 1996 की सुखद यादों को दोबारा यह मैदान जी पाएगा या नहीं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद और उसके सदस्य देशों ने पाकिस्तान में 2011 विश्वकप मैचों के आयोजन पर ही अब सवालिया ऊँगली उठा दी है।

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