लौट जाना चाहिए था साइमंड्स को : गिली

रविवार, 26 अक्टूबर 2008 (17:06 IST)
एडम गिलक्रिस्ट ने अपनी आत्मकथा में संकेत दिया है कि एंड्रयू साइमंड्स को विवादास्पद सिडनी टेस्ट में गेंद से बल्ला छुआने के बाद पैवेलियन लौट जाना चाहिए था।

उन्होंने लेकिन साथ ही यह कहकर खुद को झुठला दिया कि वह इस ऑलराउंडर के अंपायर की गलती स्वीकार करने के बाद सहज महसूस नहीं कर पाए।

साइमंड्स ने भारत के खिलाफ उस दूसरे टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी में 162 रन बनाए थे, जिस पर अंपायरों की गलतियों और नस्लीय विवाद का साया रहा था। साइमंड्स ने बाद में प्रेस कांफ्रेस में स्वीकार किया था कि गेंद उनके बल्ले से छूकर गई थी।

गिलक्रिस्ट ने जल्द ही प्रकाशित होने वाली अपनी आत्मकथा 'ट्रू कलर्स' लिखा दूसरे टेस्ट में विवादों और अंपायरों की गलतियों का साया रहा। साइमो ने अपनी पारी के शुरू में ईशांत शर्मा की गेंद पर बल्ला छुआया था। लेकिन अंपायर ने गलती करते हुए न ही डिफ्लेक्शन को देखा और न सुना।

साइमो ने उन सभी आलोचकों को बोलने का मौका दे दिया, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया को सही खेल भावना में नहीं खेलने का आरोप लगाया था।

उन्होंने कहा इस मामले को और तूल देने केलिए साइमो ने एक शतक जड़ा। फिर इसे और ज्यादा खराब करने के लिये साइमो ने प्रेस कांफ्रेस में स्वीकार किया कि गेंद उसके बल्ले से छूकर गई थी। टीम में ज्यादातर खिलाड़ियों की तरह मैं भी उसके इस तरह के बयान से सहज महसूस नहीं कर रहा था।

गिलक्रिस्ट ने यह भी स्वीकार किया कि अंपायर ने गलती करते हुए रिकी पोंटिंग को भी आउट नहीं दिया जबकि ऑस्ट्रेलिया ई कप्तान इस टेस्ट में गेंद पर बल्ला छुआकर आउट हो गया था। उन्होंने कहा पहले रिकी ने लेग साइड पर एक गेंद को बल्ले से छुआया था लेकिन उसे नाट आउट करार किया गया। इसके बाद उन्हें हरभजनसिंह की गेंद पर पगबाधा आउट किया गया।

गिलक्रिस्ट ने अपनी आत्मकथा में कहा ज्यादातर क्रिकेटरों का मानना था कि अंपायरों को अपना काम करना था भले ही यह अच्छा फैसला हो या बुरा। आपको अपने भाग्य पर निर्भर होना होता है।

उन्होंने कहा कि उनकी व्यक्तिगत पंसद पैवेलियन लौटना थी और वह अपनी इस सोच को टीम के अपने साथियों पर किसी भी तरह से थोपने का विचार नहीं कर रहे थे इसलिये उन्होंने कहा कि जब वह 2004 में भारत दौरे पर ऑस्ट्रेलिया के कार्यवाहक कप्तान थे तो वह कह सकते थे मैं कप्तान हूँ और हम पवेलियन लौट रहे है।

गिलक्रिस्ट ने कहा पैवेलियन लौटने की किसी भी प्रकार की नई नीति के बारे में टीम में मेरा समर्थन न के बराबर था। जब भी बाहर से इस तरह की बात होती तो मैं ड्रेसिंग रूम में असहज महसूस करता था।

उन्होंने कहा अगर किसी का व्यवहार बदलने की कमान मेरे हाथ में होती तो मेरे पास यह मौका भारत में 2004 में ही होता जब मैं कप्तान था। लेकिन ऐसा कोई तरीका नहीं था कि मैं कहता मैं कप्तान हूँ और हम सभी मैदान से बाहर जा रहे है। मुझे ऐसा नहीं लगा कि मुझे किसी पर भी किसी तरह की चीज थोपने का अधिकार था।
गिलक्रिस्ट ने स्वीकार किया कि उनके आउट होने पर पैवेलियन लौटने का विचार उनकी टीम के साथियों को पसंद नहीं था।

उन्होंने कहा जब भी पैवेलियन लौटने के विषय के बारे में चर्चा होती तो मैं वहाँ से चला जाया करता था क्योंकि इससे मेरे और टीम के साथियों के बीच एक बहस होनी निश्चित थी। इससे मुझे अकेलापन महसूस होता क्योंकि अंदर ही अंदर मुझे टीम को धोखा देने के लिए गाली दी जाती। साथ ही मैं खुद को स्वार्थी महूसस करता क्योंकि मैं अपनी साफ छवि के लिए मैदान छोड़कर जाता था जिससे अन्य खिलाड़ी धोखेबाज लगते।

गिलक्रिस्ट ने खुद के पैवेलियन लौटने के बारे में कहा लेकिन बतौर खिलाड़ी मैं आउट होने पर मैदान छोड़ने के प्रति प्रतिबद्ध था। मेरे पास क्रिकेट को बेहतर बनाने की क्षमता थी भले ही छोटे स्तर पर ही। यह संन्यास ले चुका ऑस्ट्रेलिया ई विकेटकीपर बल्लेबाज वर्ष 2003 में विश्व कप के सेमीफाइनल में आउट होने पर पैवेलियन लौटने के कारण काफी चर्चा में रहा था।

उन्होंने कहा एक साथ रहना सुरक्षित था और टीम के साथ एकजुट विचार रखना ही अच्छा था जो पवेलियन लौटने के पक्ष के खिलाफ थी। ऐसा करने से मैं उनके खिलाफ जा रहा था।

गिलक्रिस्ट ने कहा कि पवेलियन लौटने से अंपायरों के गलत फैसले की संख्या को भी कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अंपायर भी गलती करते हैं। वे भी इंसान हैं और मुझे लगता है कि अगर बल्लेबाज को लगता है कि वह आउट है तो उसे ैवेलियन लौट जाना चाहिए। इससे उन्हें अंपायरों के गलत फैसले की संख्या को कम का मौका मिल रहा है।

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