वो गर्व से कहता है, मैं इन्दौर में जन्मा

शनिवार, 10 मार्च 2012 (14:58 IST)
शांत ... सौम्य और संस्कारित इस क्रिकेटर के क्या कहने। क्रिकेट खेलने की स्टाइल से लेकर परिवार और जन्मभूमि के प्रति अनुराग भी उसमें गजब का है। कहने को वे भारतीय क्रिकेट टीम की 'वॉल' रहे हैं, पर सौम्यता इतनी कि निर्झर बहने वाले झरने जैसी। राहुल द्रविड़ की जन्मभूमि इंदौर है।

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जीवन के सर्वश्रेष्ठ वर्ष क्रिकेट को समर्पित करने वाले इस खिलाड़ी के अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा को इंदौर की रगों में भी महसूस किया गया। राहुल परिवार के प्रति समर्पित एक ऐसे क्रिकेटर हैं, जिन्होंने आगे बढ़ने के लिए केवल मेहनत... मेहनत और मेहनत का ही सहारा लिया।

बचपन में जब गर्मी की छुट्टियों में सभी बच्चों का मन अन्य बच्चों के साथ अलग-अलग तरह के खेल खेलने का होता था, तब राहुल द्रविड़ केवल क्रिकेट की ही बातें करते थे। वे चाहे अकेले हों या अपने दोस्तों के साथ पिकनिक मना रहे हों, उन्हें मनोरंजन का कोई साधन अच्छा नहीं लगता था। वे हरदम क्रिकेट की ही बातें करते रहते। राहुल द्रविड़ के परफेक्ट खिलाड़ी बनने के पीछे परिवार का बहुत बड़ा हाथ है। राहुल के मामा और जाने-माने वास्तुविद सुधाकर काळे ने "नईदुनिया" से बातचीत में राहुल के कई व्यक्तित्व और अनछुए पहलुओं को साझा किया।

पिता के कारण क्रिकेट से लगाव- सुधाकरजी ने बताया कि राहुल के पिता शरद द्रविड़ खुद भी अच्छा क्रिकेट खेलते थे। सही मायने में राहुल जैसे क्रिकेटर को गढ़ने में माता-पिता की मेहनत सबसे ज्यादा रही। घर में स्पोर्ट्स मैग्जीन आती थी और अखबारों के खेल के पन्नों पर आने वाली प्रत्येक खबर को पिताजी पढ़ते और राहुल को भी बताते थे। इस कारण राहुल को बचपन से ही क्रिकेटरों के नाम से लेकर क्रिकेट की बारीकियों के बारे में जानकारी होने लगी थी। पिताजी की प्रेरणा से ही वह स्कूल की क्रिकेट टीम में खेलने लगे। माता-पिता दोनों ही राहुल के प्रत्येक मैच को देखने के लिए छुट्टी लेकर स्कूल जाते थे। यह देखकर टीम के अन्य बच्चे भी अपने घर में बताते कि राहुल के माता-पिता अक्सर मैच देखने आते हैं। राहुल के पिता स्कूल की पूरी टीम को मैच के बाद खाना खिलाने होटल में ले जाया करते थे। इतना ही नहीं, जब कभी होटल जाना संभव नहीं हो पाता, तो वे सभी के लिए लंच बॉक्स लेकर जाते थे। माता-पिता का प्रत्येक मैच में इतना सहयोग मिलने के कारण ही राहुल का क्रिकेट के प्रति जुनून बढ़ता गया। प्रत्येक मैच के बाद पिता के साथ वह मैच के हर पहलू को लेकर घंटों बातचीत करता रहता और समझने का प्रयत्न करता कि कहां गलती हुई और उसे किस तरह से बैटिंग करना थी।

एक दिन टीम में लेना ही होगा- राहुल के मामा ने बताया कि राहुल ने जब पहला रणजी मैच पुणे में खेला, तब वे परिवार सहित मैच देखने गए थे। जब दिल्ली में टेस्ट खेला, तब भी वे राहुल का उत्साह बढ़ाने के लिए गए थे। राहुल को भी अच्छा लगता था कि परिवार से मैच देखने के लिए आए हैं। पर इसी के साथ एक बात और भी है कि राहुल का टेस्ट टीम में चयन काफी समय बाद हुआ। हर समय जब टीम चयन की खबरें आतीं, हम सभी को लगता था कि इस बार राहुल का चयन जरूर होगा। राहुल ने चार मीनार ट्रॉफी से लेकर अन्य सभी घरेलू स्पर्धाओं में काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। इसके बावजूद राहुल का चयन नहीं हुआ। ऐसे में हम इंदौर से बैंगलोर जाते और राहुल को दिलासा देते।

उस दौरान भी कभी राहुल ने गुस्सा नहीं जताया, बल्कि वह यही कहता था कि एक दिन आएगा, जब उन्हें मुझे टीम में लेना ही होगा। वे कब तक मेरी अनदेखी कर सकते हैं। सुधाकरजी के अनुसार भाग्य पक्ष भी अपना काम करता है। राहुल को भारतीय टीम में काफी देर से जगह मिल पाई। अगर सही समय पर उसे मौका मिलता, तब शायद राहुल के नाम और अधिक क्रिकेट रिकार्ड्‌स होते। उन्हें प्लेइंग ईयर (खेलने के साल) ही कम मिले, इस कारण अंतरराष्ट्रीय करियर के लिए कम समय मिला। फिर भी राहुल ने हरदम अपने खेल पर ध्यान केंद्रित किया और अपना सर्वश्रेष्ठ दिया।

राहुल के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई बार गलत निर्णय दिए गए, पर राहुल ने इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया और न इस बारे में किसी भी तरह की बातचीत की। राहुल की खासियत है कि वे कभी भी नकारात्मक टिप्पणी नहीं करते।

इन्दौर में जन्म- राहुल का जन्म इंदौर में साउथ तुकोगंज में हुआ था। उस समय वहाँ डॉ. एसडी मुळे का अस्पताल था। कुछ समय पहले तक इस जगह पर शांति मंडपम हुआ करता था। राहुल का गर्मी की छुट्टियों में अक्सर मामा के घर आना होता था। बचपन से ही क्रिकेट के प्रति उसे लगाव इतना ज्यादा था कि जब भी समय मिलता, तब घंटों दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलता रहता। राहुल जब थोड़ा बड़ा हुआ, तब उसके इंदौर में ही कई दोस्त बन गए थे, जिनमें विवेक कमानी (चक्कू), अमित चेलावत (बंटी), अतुल चेलावत, इसके अलावा परिवार के सदस्य पूर्वेश काळे, निखिल काळे, वैभव व वर्धन रहे हैं। ये सभी मिलकर घर के गैराज के सामने या खाली प्लॉट पर घंटों क्रिकेट खेला करते थे। (नईदुनिया)

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