वह कभी 'मुल्तान के सुल्तान' बनकर बल्लेबाजी की नई परिभाषाएँ गढ़ते हैं तो कभी उनके बल्ले को ऐसा जंग लगता है जो अर्से तक नहीं छूटता। भारतीय क्रिकेट के मौजूदा दौर में शायद ही किसी क्रिकेटर ने उतार- चढ़ाव का इतना सामना किया हो जितना वीरेंद्र सहवाग ने।
दिल्ली का यह बल्लेबाज 1999 में एक दिवसीय क्रिकेट में चमका और टेस्ट क्रिकेट में भी अपनी काबिलियत का लोहा मनवाकर अभी तक 5700 टेस्ट रन अपने नाम कर चुके हैं।
उन्होंने 15 में से 11 टेस्ट शतकों में 150 से अधिक रन बनाए हैं। इसके अलावा दो तिहरे और तीन दोहरे शतक का भारतीय रिकॉर्ड उनके नाम है जिससे साबित होता है कि विरोधी गेंदबाजों पर उनका किस तरह हौव्वा रहा है। लेकिन ऐसे दौर भी आए हैं जब टीम को उनसे बड़ी पारी की उम्मीद रही और वह गैर जिम्मेदाराना ढंग से अपना विकेट गिराकर करोड़ों भारतीय क्रिकेटप्रेमियों का दिल तोड़ गए।
खराब फॉर्म की इन्तेहा यह हो गई कि दो साल पहले ऑस्ट्रेलिया दौरे पर सहवाग का नाम 30 खिलाड़ियों की मूल सूची में नहीं था लेकिन पिछले प्रदर्शन को ध्यान में रखकर उन्हें मौका दिया गया। उपकप्तानी से हाथ धो चुके सहवाग को पहले दो टेस्ट केलिए टीम में शामिल नहीं किया गया। आखिर में पर्थ टेस्ट में उन्हें मौका मिला और भारत की ऐतिहासिक जीत में अहम भूमिका निभाते हुए उन्होंने 72 रन की पारी खेली।
इसके बाद एडीलेड टेस्ट में दूसरी पारी में 151 रन बनाकर उन्होंने टीम को हार से बचाया। अंतरराष्ट्रीय करियर को फिर दुरूस्त करने के बाद सहवाग ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ चेन्नई में कैरियर की सर्वश्रेष्ठ 319 रन की पारी खेली। इसमें उन्होंने 278 गेंद में सबसे तेज 300 रनबनाए। इसके बाद टेस्ट स्तर पर वह उतने कामयाब नहीं हो सके हालांकि श्रीलंका में जहां सारे भारतीय बल्लेबाज अजंता मेंडिस की रहस्यमयी फिरकी के आगे नतमस्तक हो गए सहवाग का बल्ला चला।
इंग्लैंड के खिलाफ दो और न्यूजीलैंड के खिलाफ तीन टेस्ट में उन्होंने कुल 249 रन बनाए। इसी दौरान वनडे क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन करते हुए उन्होंने 19 मैचों में 62.77 की औसत से 1130 रन बनाए। इसी दौरान दक्षिण अफ्रीका में आईपीएल के दौरान चोट लगने से वह ट्वेंटी-20 विश्व कप में एक भी गेंद नहीं खेल सके।
कंधे के आपरेशन के बाद अब वह 12 से 16 सप्ताह क्रिकेट से दूर रहेंगे। दक्षिण अफ्रीका में 24 सितंबर से होने वाली चैम्पियंस ट्रॉफी से पहले उनके मैच फिट होने की संभावना भी क्षीण लग रही है।
सहवाग की गैर मौजूदगी भारत केलिए किसी झटके से कम नहीं है। अब देखना यह है कि निकट भविष्य में क्या इस चोट का असर उन्मुक्त होकर खेलने की उनकी शैली पर भी पड़ सकता है।
पुल शाट थर्डमैन पर शाट और अपने चिर परिचित कई शाट खेलने केलिए सहवाग को दाहिने कंधे का अधिक इस्तेमाल करना होगा।
कुछ साल पहले डाक्टर एंड्रयू वालास की निगरानी में ही कंधे का ऑपरेशन कराने के बाद सहवाग के आदर्श सचिन तेंदुलकर को अपनी बल्लेबाजी शैली में बदलाव करना पड़ा था।
सहवाग के करोड़ों प्रशंसकों को टीम में उनकी वापसी का इंतजार है। उम्मीद है कि आस्ट्रेलिया के खिलाफ अक्टूबर-नवंबर में सात मैचों की घरेलू श्रृंखला के दौरान वह मैदान पर दिखेंगे।
उसी श्रृंखला में स्पष्ट होगा कि नजफगढ़ के तेंडुलकर को अपनी बल्लेबाजी शैली बदलनी पड़ती है या पहले की ही तरह बखौफ होकर वे बेधड़क मनचाहे शॉट खेल सकेंगे।