मैमथ को दोबारा तैयार करने की कोशिश

रायादव
वे आज के हाथी से भी बड़े होते थे। पाँच मीटर तक ऊँचे, छह से आठ टन भारी। शरीर पर लंबे ऊनी बाल। आज से कोई 10,000 साल पहले तक रूसी साइबेरिया में घूमा-फिरा करते थे। क्या फिर तैयार हो पाएँगे विशालकाय मैमथ।

रूस के साइबेरिया में इतनी ठंड पड़ती है कि जमीन कई-कई मीटर की गहराई तक हजारों वर्षों से बर्फ की तरह जमी हुई है। हमेशा जमी रहने वाली वाली इसी ज़मीन में मई 2007 में वैज्ञानिकों को एक जानवर के बच्चे का शव मिला। यह मैमथ कहलाने वाले ऊनी हाथी का एक मादा बच्चा था।

37,000 वर्षों से यहाँ की ठंडी आबोहवा ने उसे इतना बचाकर रखा था कि वैज्ञानिकों की कल्पनाओं को पर उगने लगे। वे सोचने लगे कि उसकी कोशिकाओं की आनुवांशिक सामग्री को आधार बनाकर गायब हो चुके मैमथ को क्यों न फिर से जिंदा किया जाए।

नवंबर 2008 में जापान में कोबे शहर के सेंटर फॉर डेवलपमेंट बायोलॉजी में इससे मिलता-जुलता एक प्रयोग हो चुका है। वहाँ 16 सालों से माइनस 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर हिमीकृत चूहे की कोशिकाओं की क्लोनिंग से नए चूहे पैदा करने में सफलता पाने का दावा किया गया, लेकिन सेंट पीटर्सबर्ग में रूसी विज्ञान अकादमी के उप निदेशक अलेक्सेई तिखोनोव इसी तरीके से मैमथ हाथी को फिर से जीवित करना संभव नहीं मानते।

डॉक्टर तिखोनोव कहते हैं कि कोशिका की दीवार भी साबूत होनी चाहिए। मैमथ के ऊतक की कोशिकाएँ सूक्ष्मदर्शी के नीचे ठीकठाक ही दिखती हैं पर तापमान बढ़ाने पर जैसे ही कोशिकाएँ पिघलती हैं, उनकी दीवारें क्षतिग्रस्त दिखाई पड़ती हैं।

वैज्ञानिक फिर भी निराश नहीं हैं। जबसे यह पता चला है कि दो अलग-अलग प्रजातियाँ होते हुए भी एक भारतीय और एक अफ्रीकी हाथी के मेल से संतान पैदा हुई है, तब से एक विचार यह है कि मैमथ कहलाने वाला ऊनी हाथी यदि आज भी जिंदा होता, भारतीय हाथी के साथ मेल से हमें शायद उसकी भी संतान मिल सकती थी।

भारतीय हाथी आनुवांशिक दृष्टि से मैमथ के सबसे निकट है। दूसरे शब्दों में विलुप्त हो चुके मैमथ के अवशेषों से ली गई आनुवांशिक सामग्री को आज के भारतीय हाथी की आनुवांशिक सामग्री से मिलाने पर हो सकता है कि मैमथ को फिर से बनाया जा सके। प्राचीन मूर्तियों में भी मैमथ का ज़िक्र मिल जाता है।

मैमथ के अब तक 39 शव मिले हैं। इनमें से चार लगभग साबुत हैं। ऐसे ही एक शव के बालों से जुड़ी खाल में अमेरिका की पेन्सिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को आनुवांशिक कोड वाले सारे डीएनए मिले हैं। हालाँकि वे अनेक टुकड़ों में बँटे हैं। तब भी वैज्ञानिक कम्प्यूटर की सहायता से 70 प्रतिशत डीएनए को फिर से सही-सही जोड़ने में सफल रहे हैं। डीएनए की मदद से वैज्ञानिक सैद्धांतिक तौर पर पूरे मैमथ को फिर से तैयार कर सकते हैं।

वैज्ञानिक टीम के नेता प्रोफेसर स्टेफन शूस्टर ने कहा कि हमें कुल मिलाकर साढ़े तीन अरब बेस पेयर यानी डीएनए वाले क्षारीय जोड़ों के बीच मेल बैठाना होगा। ग्रेग वेंटर की उपलब्धियों की वजह से आज हम आठ लाख ऐसे जोड़ों को एक क्रोमोसोम में बैठा सकते हैं। यदि हम इस गिनती को आगे बढ़ाते हुए कहें कि जल्द ही हम 10 लाख जोड़ों को क्रमबद्ध कर सकते हैं, तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि साढ़े तीन अरब जोड़ों को क्रमबद्ध करने के लिए हमें अभी कितनी और तकनीकी प्रगति की जरूरत है।

दूसरी ओर आशावादी लोग कहते हैं कि यदि डीएनए सिंथेसिस की तकनीक भी उसी तेजी से प्रगति करती है, जिस तेजी से डीएनए के कोड पढ़ने की तकनीक विकसित हुई है, तो अगले 10 से 15 साल में मैमथ के पूरे जीनोम को प्रयोगशाला में तैयार किया जा सकता है।

यह भी सही है कि सिंथेटिक बायोलॉजी की सहायता से मैमथ की दोबारा रचना की कोई ठोस योजना इस समय नहीं है, लेकिन वैज्ञानिक इस विचार को पूरी तरह छोड़ भी नहीं पा रहे हैं। नई खोजें मैमथ को फिर से जीवित करने का एक और रास्ता दिखाती हैं, उसके पूरे जीनोम को फिर से तैयार करने के बदले आज के भारतीय हाथी के जीनों को इस तरह बदलना कि उन से नया एक मैमथ पैदा हो सके।

प्रोफेसर ने कहा कि मजाक में जिसे हम रिवर्स इंजीनियरिंग कहते हैं, उसी से भारतीय हाथी का एक तरह से मैमथीकरण करना, यानी उसमें ऐसे आनुवांशिक परिवर्तन करना कि वह मैमथ जैसा हो जाए, इसके लिए हमें हाथी के जीनोम में कम से कम चार लाख या दसियों लाख बदलाव भी करने पड़ सकते हैं।

रिवर्स प्रोग्रामिंग यानी कोशिका जीनों की पीछे की ओर अतीत की ओर फिर प्रोग्रामिंग के जरिये भारतीय हाथी को आधार बना कर हजारों साल पहले जैसा मैमथ पैदा करना भी संभव माना जाता है।

भारतीय हाथी ही हिमयुग में रहे और हजारों वर्ष पहले खत्म हो गए ऊनी हाथी मैमथ का सबसे निकट संबंधी है। जब और जैसे भी मैमथ को नया जीवन मिलेगा, भारतीय हाथी की भी उसमें एक भूमिका जरूर होगी।

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