जावन्ति लोए पाणा तसा अदुव थावरा। ते जाणमजाणं वा न हणे नो विघायए॥
हिंसा के बारे में महावीरजी ने कहा है इस लोक में जितने भी त्रस जीव (दो, तीन, चार और पाँच इंद्रिय वाले जीव अपनी इच्छा से चल-फिर सकते हैं, डरते हैं, भागते हैं, खाना ढूँढते हैं) और स्थावर जीव (एक इंद्रिय वाले, स्पर्श इंद्रिय वाले जीव। ये पैदा होते हैं, बढ़ते हैं, मरते हैं, पर अपने आप चल-फिर नहीं सकते। जैसे, पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, वनस्पति आदि) हैं, उनकी न तो जानकर हिंसा करो, न अनजान में। दूसरों से भी किसी की हिंसा न कराओ।
दो इंद्रिय वाले जीवों के दो इंद्रियाँ होती हैं, एक स्पर्शन, दूसरी रसना। जैसे, केंचुआ, घोंघा, जोंक आदि। तीन इंद्रिय वाले जीवों के तीन इंद्रियाँ होती हैं- स्पर्शन, रसना और घ्राण। वे छू सकते हैं। स्वाद ले सकते हैं, सूँघ सकते हैं। जैसे, चींटी, खटमल, जूँ, घुन, दीमक आदि। चार इंद्रिय वाले जीवों के चार इंद्रियाँ होती हैं- स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु। जैसे, मक्खी, मच्छर, भौंरा, बर्रे, टिड्डी, बिच्छू आदि। पाँच इंद्रिय वाले जीवों के पाँच इंद्रियाँ होती हैं- स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण। जैसे स्त्री, पुरुष, बालक, गाय, बैल, घोड़ा, हाथी, मगरमच्छ, साँप, चिड़िया आदि।
सभी प्राणियों को अपने प्राण प्यारे हैं। सबको सुख अच्छा लगता है, दुःख अच्छा नहीं लगता। हिंसा सभी को बुरी लगती है। जीना सबको प्यारा लगता है। सभी जीव जीवित रहना पसंद करते हैं। सबको जीवन प्रिय है।
नाइवाइज्ज किंचण। किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो।
आयातुले पयासु। प्राणियों के प्रति वैसा ही भाव रखो, जैसा अपनी आत्मा के प्रति रखते हो।
तेसिं अच्छणजोंएण निच्चं होंयव्वयं सिया। मणसा कायवक्केण एवं हवइ संजए॥
सभी जीवों के प्रति अहिंसक होकर रहना चाहिए। सच्चा संयमी वही है, जो मन, वचन और शरीर से किसी की हिंसा नहीं करता।
जो आदमी चलने में असावधानी बरतता है, बिना ठीक से देखे-भाले चलता है, वह त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है। ऐसा आदमी कर्मबंधन में फँसता है। उसका फल कडुआ होता है।
जो आदमी बैठने में असावधानी बरतता है, ठीक से देखे-भाले बिना बैठता है, वह त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है, ऐसा आदमी कर्मबंधन में फँसता है। उसका फल कडुआ होता है।
जो आदमी भोजन करने में असावधानी बरतता है, ठीक से देखे-भाले बिना भोजन करता है, वह त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करता है। ऐसा आदमी कर्मबंधन में फँसता है। उसका फल कडुआ होता है।