मप्र का टाइगर स्टेट दर्जा खतरे में

शनिवार, 14 नवंबर 2009 (01:19 IST)
भारत का हृदय प्रदेश और बाघों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा भी मिला है पर बाघों के संरक्षण में लगातार पिछड़ते इस राज्य पर नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) की भृकुटी तन गई है।

प्राप्त सूचना के अनुसार केन्द्र सरकार ने मप्र को टाइगर कंजरवेशन फंड से मिलने वाली राशि को रोक दिया है और यह रोक तब तक जारी रहेगी, जब तक मध्यप्रदेश सरकार ट्राईपार्टिट एग्रीमेंट साइन नहीं कर लेती। यह समझौता राज्य सरकार, केंद्र सरकार व एनटीसीए की बीच होना है।

मध्यप्रदेश सरकार इस समझौते का इसलिए विरोध कर रही है क्योंकि इसके अंतर्गत टाइगर रिजर्व के निदेशक बाघ संरक्षण में हुई किसी भी गड़बडी या बाघों की गिरती संख्या के लिए सीधे जिम्मेदार होंगे और ऐसा होने पर उन्हे एनटीसीए की पेनल एक्शन का सामना करना पडेगा।

इस समझौते के बाद टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर्स राज्य सरकार के बजाए सीधे एनटीसीए के नियंत्रण में हो जाएँगे और राज्य सरकार किसी भी हालत में ऐसा नही चाहती, राज्य सरकार वर्तमान व्यवस्था (बाइलेट्रल पेक्ट) ही कायम रखना चाहती है जिसमें राज्य सरकार द्वारा नियुक्त मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक (चीफ वॉइल्डलाइफ वॉर्डन) ही इसके लिए सीधे जिम्मेदार है।

राज्य और केंद्र सरकार की इस रस्साकशी और लालफीताशाही के चलते पर्यावरणविदों, वन्यजीव प्रेमियों और बाघ संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहे लोगों में चिंता फैल गई है क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली इस राशि के बिना मध्यप्रदेश में टाइगर कंजरवेशन का काम ठप पड़ सकता है।
ज्ञात हो भारत के लगभग 1400 बाघों में से 290 के लगभग मध्यप्रदेश में है और पहले से ही संकटग्रस्त बाघों के लिए इस नए संकट के दूरगामी और भयावह परिणाम हो सकते हैं।

मध्यप्रदेश के 6 टाइगर रिजर्व में बसे सैकड़ों गाँवों के विस्थापन में 3200 करोड़ की राशि की जरूरत है, जो इस गफलत में अटकी पड़ी है। सूत्रों के मुताबिक पिछले दो महीनों में इस मुद्दे पर केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय में दो बार चर्चा हो चुकी है।

पिछले कुछ सालों में मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या में चिंताजनक गिरावट देखी गई है। जिसके बाद एनटीसीए ने कड़े तेवर अख्तियार कर लिए है, मध्यप्रदेश में बाघों की घटती संख्या के मद्देनजर पहले ही कयास लगाने शुरू हो गए थे। अगर जल्दी ही स्थिति नहीं सुधरी तो मध्यप्रदेश का 'टाइगर स्टेट' का दर्जा खतरे में पड़ सकता है। पहले से ही पिछड़े इस प्रदेश में वन बहुलता और प्राणी विविधता के चलते काफी पर्यटक आते हैं पर अगर टाइगर स्टेट का दर्जा छिनता है तो निश्चित रूप मप्र के वन्य पर्यटन को गंभीर नुकसान होगा।

गौरतलब है कि लगातार बाघों की गिरती संख्या के मद्देनजर नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) ने मध्यप्रदेश में बाघों की सुरक्षा के लिए नई गाइडलाइन तैयार की थी, जिसके तहत अब तक स्थानीय पुलिस के सहारे बाघों की सुरक्षा की राह देख रहे वन विभाग को खुद का सुरक्षा तंत्र तैयार करने का विकल्प दिया गया है, इसके मुताबिक पेंच, बांधवगढ़ और कान्हा टाइगर रिजर्व के लिए बनने वाले स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स में सिर्फ वन विभाग का अमला ही संभालेगा।

हालाँकि मध्यप्रदेश सरकार ने पेंच, बांधवगढ़ और कान्हा टाइगर रिजर्व में स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स की तैनाती का निर्णय ले लिया है, जो कि टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर के नियंत्रण में कार्य करेगी। यह फोर्स रिजर्व के अंदर शिकारियों व संगठित वन माफिया से निपटने के लिए हथियारों के इस्तेमाल के लिए भी स्वतंत्र होगी।

एनटीसीए के अनुसार देश के 13 टाइगर रिजर्व में स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन किया जा रहा है। सुझाए गए फोर्स में वर्तमान पुलिस बल की तर्ज पर ही नया प्रारूप विभाग के पास भेजा है। इसमें सब-इंस्पेक्टर की जगह रेंज ऑफिसर, हेड कांस्टेबल की जगह फॉरेस्टर और कांस्टेबल की जगह स्पेशल टाइगर गार्ड का प्रावधान किया गया है। (वेबदुनिया)

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