समलैंगिकता पर पुनर्विचार के लिए केन्द्र की याचिका

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013 (15:45 IST)
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नई दिल्ली। अप्राकृतिक यौनाचार को दंडनीय अपराध बताने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को संवैधानिक घोषित करने के उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर पुनर्विचार के लिए केन्द्र सरकार ने आज शीर्ष अदालत में याचिका दायर की। मौजूदा कानून के तहत अप्राकृतिक यौनाचार दंडनीय अपराध है जिसके लिए उम्र कैद तक की सजा हो सकती है।

केन्द्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका में दलील दी है कि समलैंगिक वयस्कों में स्वेच्छा से यौन संबंध स्थापित करने को अपराध के दायरे से बाहर करने वाली दिल्ली उच्च न्यायालय की व्यवस्था को निरस्त करने वाली शीर्ष अदालत की 11 दिसंबर की व्यवस्था का बचाव नहीं किया जा सकता।

केन्द्र सरकार की पुनर्विचार याचिका को अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती ने अंतिम रूप दिया है। इसमें पुनर्विचार याचिका का निबटारा करने से पहले खुले न्यायालय में मौखिक दलीलें पेश करने की अनुमति देने का अनुरोध किया गया है। सामान्यतया पुनर्विचार याचिका पर न्यायाधीश के चैंबर में ही निर्णय किया जाता है।

वकील देवदत्त कामत के जरिये दायर पुनर्विचार याचिका में केन्द्र सरकार ने 11 दिसंबर के निर्णय पर फिर से विचार के लिए 76 आधार दिए हैं।

याचिका में कहा गया है कि यह निर्णय त्रुटिपूर्ण ही नहीं बल्कि शीर्ष अदालत द्वारा संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों के बारे में प्रतिपादित सिद्धांतों के खिलाफ है।

न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दो जुलाई, 2009 का निर्णय निरस्त करते हुये कहा था कि धारा 377 अंसवैधानिक नहीं है। न्यायाधीशों ने कहा था कि उच्च न्यायालय की व्यवस्था कानूनी दृष्टि से टिकाउ नहीं है। (भाषा)

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