‘आसान शिकार’ बने सीआरपीएफ के जवान

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010 (22:55 IST)
सुरक्षा विशेषज्ञों ने छत्तीसगढ़ में मंगलवार को हुए देश के बड़े माओवादी हमले के बाद सरकार की नक्सल विरोधी रणनीति पर सवाल खड़ा किया है, जिसमें शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों को ‘आसान निशाना’ बताया गया है।

हमले से स्तब्ध अधिकारी जहाँ इसके कारणों को खोजने में लगे हैं, वहीं विशेषज्ञों ने खराब खुफिया तंत्र और अर्धसैनिक बलों तथा राज्य पुलिस के बीच समन्वय की कमी को जिम्मेदार ठहराया। विशेषज्ञों को यह भी लगता है कि स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स (एसओपी) को नहीं अपनाया गया।

छत्तीसगढ़ सरकार के पूर्व सुरक्षा सलाहकार केपीएस गिल ने कहा कि नक्सल विरोधी रणनीति असफल रणनीति है। यह पूरी तरह विफल है। किसी ने किसी किताब से इस रणनीति को उठा लिया है और इसे अर्धसैनिक बलों पर थोप दिया है, जो बहुत आज्ञाकारी सेवक हैं और जो उनसे कहा जाता है, उस पर कभी आपत्ति नहीं उठाते।

उन्होंने कहा कि आप एक जंगली इलाके में 100 लोगों को भेज रहे हैं, जिन्हें उस इलाके के बारे में अच्छे से जानकारी भी नहीं है। चार दिन बाद वे आसान निशाना बन रहे हैं। गिल को पंजाब से आतंकवाद का सफाया करने का श्रेय दिया जाता है, उन्होंने बारूदी सुरंग विस्फोट निरोधी वाहनों की भी आलोचना करते हुए उन्हें ‘मौत का फंदा’ बताया।

गिल ने कहा कि अगर कोई बारुदी सुरंग विस्फोट होता है तो इस वाहन में बैठा हर व्यक्ति या तो विस्फोट के कारण या फिर वाहन में से निकलने के बाद हमले के कारण मारा जाएगा। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमनसिंह ने कहा कि इस तथ्य से विस्फोट की तीव्रता का अंदाज लगाया जा सकता है कि सीआरपीएफ जवानों के बारुदी सुरंग रोधी वाहन भी पूरी तरह तबाह हो गए।

सीमा सुरक्षा बल के पूर्व डीजीपी प्रकाशसिंह का मानना है कि सीआरपीएफ और प्रदेश पुलिस के बीच खुफिया जानकारी की साझेदारी का स्पष्ट अभाव और आत्मसंतोष बना हुआ है।

सिंह ने कहा कि सीआरपीएफ और पुलिस दोनों ही कुछ स्तर तक आत्मसंतुष्ट रहे। नहीं तो, इतने बड़े स्तर पर हुआ हमला सामान्यत: तब तक नहीं होता जब तक आप बहुत ही ज्यादा लापरवाह और अपनी गतिविधियों को लेकर बहुत ज्यादा आत्मसंतुष्ट न हों। ऐसे इलाकों में अभियान के दौरान जो सावधानियाँ बरतनीं चाहिए, आपने वे भी नहीं बरतीं। उन्होंने कहा कि यदि सीआरपीएफ पर दोनों ओर से घात लगाकर हमला किया गया तो उनकी तरफ से ढील रही।

सिंह ने कहा कि अगर सीआरपीएफ पर दोनों ओर से हमला हुआ, अगर आईईडी विस्फोट हुए, तो निश्चित तौर पर खुफिया जानकारी की कमी थी और प्रदेश पुलिस इस जिम्मेदारी से नहीं बच सकती। सिंह ने कहा कि सीआरपीएफ ने जवानों की संख्या बढ़ाई है, लेकिन उनके उपकरणों, प्रशिक्षण और अनुशासन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।

उनका आरोप था कि बटालियन बढ़ाई जा रहीं हैं, लेकिन उसी वक्त जवानों के उचित प्रशिक्षण, उनके उपकरण, संचार, वाहनों इन सभी पर ध्यान नहीं दिया गया। (भाषा)

वेबदुनिया पर पढ़ें