अर्थ : घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य, तीन दुर्गा मूर्ति, दो गोमति चक्र और दो शालग्राम की पूजा करने से गृहस्थ मनुष्य को अशांति होती है।
प्राण-प्रतिष्ठा (1) शालग्राम शिलायास्तु प्रतिष्ठा नैव विद्यते। अर्थ : शालग्राम की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होती।
(2) शैलीं दारुमयीं हैमीं धात्वाद्याकार संभवाम्। प्रतिष्ठां वै प्रकुर्वीत प्रसादे वा गृहे नृप॥ अर्थ : पत्थर, काष्ठ, सोना या अन्य धातुओं की मूर्तियों की प्रतिष्ठा घर या मंदिर में करनी चाहिए।
(3) गृहे चलार्चा विज्ञेया प्रसादे स्थिर संज्ञिका। इत्येत कथिता मार्गा मुनिभिः कुर्मवादिभिः॥ अर्थ : घर में चल प्रतिष्ठा और मंदिर में अचल प्रतिष्ठा करना चाहिए। यह कर्म-ज्ञानी मुनियों का मत है। 'गंगाजी में, शालग्राम शिला में तथा शिवलिंग में सभी देवताओं का पूजन बिना आह्वान-विसर्जन किया जा सकता है।'
पूजन के उपचार (1) पाँच उपचार, (2) दस उपचार, (3) सोलह उपचार।
(1) पाँच उपचार : गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।
(2) दस उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र निवेदन, गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।
(3) सोलह उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। पूजन के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए।