धर्म में समय का महत्व

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किसी ने समय का मूल्यांकन करते हुए ठीक ही कहा है : -
जीवन में एक माह का महत्व समझना हो तो उस मां से पूछो जिसके एक महीने पहले बच्चा पैदा हो गया। एक सप्ताह का महत्व समझना हो तो उससे पूछो जो साप्ताहिक समाचार पत्र निकालना है एवं एक सप्ताह अखबार न निकल सका।

एक दिन का महत्व समझना है तो उससे पूछो जो रोज मेहनत कर अपना पेट पालता हो, व एक दिन उसे कार्य नहीं मिला। एक मिनट का महत्व समझना हो तो उससे पूछो जिसकी रेलगाड़ी छूट गई। एक सेकेंड का महत्व समझना हो तो उससे पूछो जो दुर्घटना से बाल-बाल बच गया। एक सेकेंड के दसवें भाग का महत्व समझना हो तो उससे पूछो जो ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल न पा सका।

उस रोगी के घरवालों से पूछो कि एक मिनट डॉक्टर के लेट होने से रोगी चल बसा। याद रखें समय बहुत मूल्यवान एवं बलवान है। इसका सदुपयोग करते हुए जीवन को श्रेष्ठ, सुंदर, दिव्य बनाने के लिए सत्संग, स्वाध्याय, साधना, परोपकार का साथ लें। दान भी परोपकार का ही एक अंग है। दान देने से घटता नहीं है बल्कि वह और बढ़ता जाता है।

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कहा भी है : -
चिड़ी चोंच भर ले गई, नदी न घट्यो नीर।
दान दिए धन न घटे, कह गए दास कबीर।

दान तो दें लेकिन अहंकार न करें। जीवन का लक्ष्य तो प्रभु प्राप्ति है। इस प्रभु प्राप्ति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा अहंकार है। पद, पैसा, प्रतिष्ठा आदि का अहंकार जहां होता है वहां प्रभु का साक्षात्कार नहीं हो सकता।

जैसे अंग्रेजी में बड़ी आई पर बिंदी लगने से वह छोटी आई कहलाने लगती है, उसी प्रकार महान आत्मा में अहंकार रूपी बिंदी लग जाने के कारण वही नीचा जीवन कहलाने लगता है। अतः हम राग द्वेषादि दुर्गुणों का त्याग करते हुए (तत्सवितुर्वरेण्यं) उस परमात्मा का वरण करें जो निराकार, निर्विकार और सच्चिदानंद है।

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