देखिए मदुराई के मीनाक्षी मंदिर की अद्भुत छटा

- रमेश गुप्ता

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दक्षिण भारत में श्रेष्ठ मंदिरों की श्रृंखला है। विशाल प्रांगण, आकर्षक गोपुरम्, शिल्प सौंदर्य, रंगों का अभिनव आकल्पन, एक से बढ़कर एक प्रतिमाएं, सुंदर मंडपम् एवं छलछलाते सरोवर। ‍तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश एवं कर्नाटक में जो भव्य मंदिर हमने देखे हैं, वे वर्णनातीत हैं।

सामान्यतया ऐसे एक-एक मंदिर में अच्छी प्रकार भ्रमण करने के लिए 4-5 घंटे भी पर्याप्त नहीं होते हैं। हम रोम जाकर वेटिकन की गैलरीज को देखकर अत्यंत प्रभावित हुए थे। निश्चय ही वहां मायकेल एंजिलो की पेंटिंग अत्यंत प्रभावी एवं आकर्षक थी, परंतु हमारे दक्षिण भारत में मंदिरों विशेषकर रामेश्वरम्, मदुराई, कांची, तिरुअनंतपुरम् में विश्व की सर्वश्रेष्ठ शिल्पकला, पेंटिंग एवं रंगों का अद्भुत प्रयोग दृष्टिगोचर होता है- वे विश्व की श्रेष्ठ कलाकृतियों में भी श्रेष्ठतम हैं।

तमिलनाडु के मदुराई में स्‍थित मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर स्थापत्य एवं वास्तुकला की दृष्टि से आधुनिक विश्व के आश्चर्यों में गिना जाता है। यह मंदिर भगवान सुन्दरेश्वर (शिव) की भार्या जिनकी आंखें मछली की आंखों जैसी सुंदर हैं, को समर्पित हैं।


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एक पौराणिक आख्यान है कि पान्ड्य राजा मलयध्वज की तपस्या से प्रसन्न होकर मां पार्वती के अंश के रूप में रानी कंचनशाला ने मीनाक्षी नामक कन्या को जन्म दिया। कन्या शनै:-शनै: बड़ी होने लगी। भगवान शिव अपनी बारात लेकर आए और मीनाक्षी के साथ उनका विवाह संपन्न हुआ। स्वयं भगवान विष्णु ने अपनी बहन मीनाक्षी का हस्तमिलाप करके कन्यादान किया। इस घटना का शिल्पांकन मंदिर में दिखाई देता है।

यह मंदिर अत्यंत प्राचीन मंदिर माना जाता है। इसका निर्माण 7वीं सदी के प्रारंभ में हुआ था। सन् 1310 में मुस्लिम आक्रांत मलिक काफूर ने इस मंदिर को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था। उस समय वहां के पंडे-पुजारियों ने मूल प्रतिमाओं को सुरक्षित बचा लिया था तथा 50 वर्ष के उपरांत जब मुस्लिम शासन से मुदराई मुक्त हुआ, तब उन प्रतिमाओं को पुन: आदपूर्वक अपने स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया।

सन् 1559-1600 में मदुराई के नायक प्रधानमंत्री आर्यनाथ मुदालियार ने मंदिर के पुनर्निर्माण का बीड़ा उठाया। पश्चात महाराजा तिरुमलनायक तथा उनके उत्तराधिकारियों ने मंदिर को पुन: अपनी श्रेष्ठता वापस दिलाई।

लगभग 15 एकड़ क्षेत्र में फैला यह मंदिर 2 दीवारों की परिसीमा में निर्मित है। जिसमें 9 मंजिला दक्षिणी गोपुरम् सर्वोच्च होकर 170 फीट ऊंचा है। सबसे छोटा गोपुरम् उत्तर दिशा में है तथा 160 फीट ऊंचा है। इन सभी गोपुरम् में विभिन्न देवी-देवताओं, किन्नरों एवं गंधर्वों की सुंदर आकृतियां बनी हैं जिसमें नक्काशी तथा रंग सौंदर्य अद्भुत है।


यहां के विशाल प्रांगण में सुंदरेश्वर (शिव मंदिर समूह) तथा बाईं ओर मीनाक्षी देवी का मंदिर है। शिव मंदिर समूह में भगवान शिव की नटराज मुद्रा में आकर्षक प्रतिमा है। यह प्रतिमा ए एक रजत वेदी पर स्‍थित है। बाहर अनेक शिल्पाकृतियां हैं, जो केवल एक-एक पत्थर पर निर्मित है। साथ ही गणेशजी का मंदिर है।

मीनाक्षी देवी मंदिर में देवी मीनाक्षी की पूर्वाभिमुख श्यामवर्णा अत्यंत सुंदर प्रतिमा है। जैसी कि दक्षिण भारत में परंपरा है, गर्भगृह में स्थित प्रतिमाओं के दर्शन दीपक के प्रकाश से ही होते हैं। यहां मंदिर में अन्य देवी-देवताओं की भी अनेक प्रतिमाएं हैं। निकट के कक्षों में मीनाक्षी देवी तथा सुंदरेश्वर भगवान के रजत निर्मित वाहन हंस तथा नंदीगण रखे हुए हैं।

यहां प्रांगण में अनेक मंडपम् बने हुए हैं जिसमें 'सहस्रस्तंभ मंडपम्' अत्यंत प्रसिद्ध हैं। इस मंडप में 985 भव्य स्तंभ बने हुए हैं। ये प्रत्येक स्तंभ प्राचीन द्रविड़ शिल्पकला के सौंदर्य की अनुपम गाथा प्रस्तुत करते हैं।

इसी मंडपम् में एक कला संग्रहालय है‍ जिसमें प्राचीन मूर्तियां, चित्र, छायाचित्र तथा इतिहास का दिग्दर्शन कराया गया है। मंडपम् के पश्चिमी भाग में जो स्तंभ बने हुए हैं, वे भारतीय शिल्पकौशल के विश्व में श्रेष्ठ उदाहरण हैं। उनके जैसे स्तंभ विश्वभर में अन्यत्र कहीं नहीं हैं। इनकी विशेषता यह है कि 'उन पर थाप देने से विभिन्न वाद्यों के मधुर स्वर सुनाई देते हैं। दर्शकगण इस मधुर ध्वनि को सुनकर भाव-विभोर हो जाते हैं।

निकट ही 'स्वर्ण पुष्करणी' नामक अत्यंत सुंदर सरोवर है जिसके चारों ओर बने मंडपों में आकर्षक चित्र बने हुए हैं। फरवरी माह में देवी मीनाक्षी तथा भगवान सुंदरेश्वर की प्रतिमाओं को सजाकर यहां नौका विहार कराया जाता है। यहीं शिव-पार्वती विवाह संपन्न हुआ था अत: इस स्थान पर आकर नवविवाहित युगल अपने सुखी दांपत्य जीवन की प्रार्थना करते हैं। यहां अनेक जोड़ों को मंदिर प्रांगण में हार-फूल पहने घूमते देखा जा सकता है।


इस सरोवर के विषय में यह प्रचलित है कि प्राचीनकाल में यहां तमिल कवियों का समागम होता था तथा जो कृतियां श्रेष्ठ होती थीं, वे इस सरोवर में तैर जाती थीं तथा निम्न श्रेणी की कृतियां सरोवर जल में डूब जाती थीं।

मंदिर में अनेक उत्सव मनाए जाते हैं। प्रति शुक्रवार को मीनाक्षीदेवी तथा सुंदरेश्वर भगवान की स्वर्ण प्रतिमाओं को झूले में झुलाते हैं जिसके दर्शन के लिए हजारों की संख्या में भक्तगण उपस्थित रहते हैं। नवरात्रि एवं शिवरात्रि के पर्व पर विशेष साज-सज्जा होती है।

यहां का विख्यात उत्सव होता है चैत्र माह में जिसमें मीनाक्षी देवी तथा सुंदरेश्वर भगवान का विवाहोत्सव बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। मंदिर में पाणिग्रहण के पश्चात दिव्य वर-वधू की शोभायात्रा निकाली जाती है जिसमें विभिन्न वाद्यों के साथ वादकगण सम्मिलित होते हैं। हाथियों को सजाकर यात्रा वैगा नदी के तट पर ले जाई जाती है, जहां मीनाक्षी देवी के भाई अलगारजी (विष्णु भगवान) का मंदिर है। संपूर्ण कार्यक्रम 12 दिन तक चलता है। यह उत्सव दक्षिण भारत का प्रमुख उत्सव माना जाता है जिसमें लाखों दर्शनार्थी भाग लेते हैं।

मदुराई के इस विश्वप्रसिद्ध मंदिर के दिव्य दर्शन के पश्चात हम अत्यंत अभिभूत करते थे। यहां आकर हमें हमारी भव्य सांस्कृतिक विरासत के दर्शन होते हैं। यहां का शिल्प सौंदर्य हमारे हृदय पर सदैव के लिए अंकित हो गया तथा यहां की अद्भुत वास्तुकला ने हमें पुन: सोचने को विवश कर दिया है कि सचमुच हमारा देश महान है! ‍अद्वितीय है!! अनुपम है!!!


साभार- देवपुत्र

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