क़तआत ---बालस्वरूप राही

शनिवार, 12 जुलाई 2008 (11:12 IST)
1. जानता हूँ कि ग़ैर हैं सपने
और खुशियाँ भी ये अधूरी हैं
किंतु जीवन गुज़ारने के लिए
कुछ ग़लत फ़ेहमियाँ ज़रूरी हैं

2. हसरतों की ज़हर बुझी लौ में
मोम सा दिल गला दिया मैंने
कौन बिजली की धमकियाँ सहता
आशियाँ खुद जला दिया मैंने

3. दर्द के हाथ बिक गई खुशियाँ
और हम बेच कर बहुत रोए
जैसे कोई दीया बुझा तो दे
किंतु फिर रात भर नहीं सोए

4. कल मिले या न मिले प्यार गवाही के लिए
कल उठे या न उठे हाथ सुराही के लिए
आज की शाम को रंगीन बना लो इतना
कोई कोना न बचे रात की स्याही के लिए

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