कुएँ-बावड़ियाँ बदहाल

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012 (07:24 IST)
नगर निगम और जिला प्रशासन द्वारा शिप्रा जलआवर्धन, राजानल तालाब और लोधरी परियोजना जैसी योजनाओं पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, इसके बावजूद यह तय नहीं है कि इस गर्मी में भी शहर को पर्याप्त पानी मिल पाएगा। दूसरी ओर शहर की सभी पुरानी बावड़ियाँ और कुएँ न सिर्फ सूखे पड़े हैं, बल्कि रहवासियों ने उनमें कूड़ा डालना शुरू कर दिया है। किसी जमाने में इन कुएँ-बावड़ियों से ही पूरे शहर की प्यास बुझती थी। ऐसे में यदि प्राचीन जल स्रोतों को ही सहेज लिया जाता तो काफी हद तक राहत मिलती।


कालानीबाग में स्थित शहर की प्राचीनतम केड़ी कुआँ नामक बावड़ी वर्तमान में बदहाल है। किसी जमाने में शहर के अधिकांश हिस्से की प्यास बुझाने वाली यह बावड़ी रख-रखाव और सफाई के अभाव में दम तोड़ रही है। इस बवाड़ी में गंदगी भरी पड़ी है। यहाँ के रहवासी वासुदेव पटेल ने बताया कि औपचारिकता के लिए हर साल बावड़ी की थोड़ी-बहुत साफ-सफाई कर दी जाती है। इसके बाद कोई ध्यान नहीं देता। उन्होंने बताया कि इस जल स्रोत को कभी सहेजा नहीं गया। इसका संरक्षण किया जाता तो जल संकट से जूझ रहे शहर को थोड़ी राहत तो जरूर मिलती।


राजा-महाराजाओं के जमाने की गवाह मीरा बावड़ी भी वर्तमान में कचरे के ढेर में तब्दील होती जा रही है। यह बावड़ी बिल्कुल सूख गई है। यहाँ के महेन्द्रसिंह ठाकुर ने बताया कि एक समय था जब लोग इस बावड़ी में कूद-कूदकर नहाते थे। पीने के लिए भी इसका पानी प्रयोग किया जाता था, लेकिन आज कोई इसकी रखवाली भी नहीं करता है। उन्होंने बताया कि बावड़ी में एक आव से पानी भी आता है। इसकी सफाई करवाई जाए तो इसमें फिर से पानी आ सकता है।


इसी प्रकार शहर के बीच स्थित खारी बावड़ी भी कचरे और गंदगी का शिकार हो गई है। मस्जिद के पास स्थित यह बावड़ी भी अति प्राचीन है, लेकिन फिलहाल गंदगी के कारण मलबे में बदलती जा रही है। यहाँ के रहवासी इब्राहिम और सोहेब शेख बताते हैं कि हर साल नगर निगम द्वारा सफाई तो की जाती है, लेकिन सालभर बाद बावड़ी फिर से इसी तरह बदहाल हो जाती है। इस सफाई का कोई औचित्य नहीं, जब तक कि इसको पानी का स्रोत बनाकर इसका संरक्षण न किया जाए। इधर विकास प्राधिकरण के कब्जे में सयाजी द्वार के समीप स्थित पुष्कर मंडूक तालाब भी अपनी बदहाली की कहानी खुद ही कहता नजर आ रहा है। इन सभी जल स्रोतों का संरक्षण किया जाए और बारिश का पानी इनमें सहेजा जाए तो काफी हद तक जल संकट से राहत मिल सकती है।


इधर शहर को जल संकट से निजात दिलाने के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा करोड़ों रुपए की योजनाएँ बनाई गई हैं। शिप्रा जलआवर्धन योजना पर करोड़ों रुपए की राशि लगाकर बाँध निर्माण किया गया है। इसके बावजूद प्रशासन द्वारा यह दावा नहीं किया जा रहा है कि इससे जल संकट दूर हो जाएगा। नगर निगम आयुक्त देवेन्द्रसिंह सेंगर ने इस बारे में बताया था कि शिप्रा जलआवर्धन, राजानल तालाब और इंदौर से पानी खरीद कर इस बार देवास को जल मुहैया करवाया जाएगा। कुल मिलाकर इस बार भी शहर की जनता को पानी के लिए कड़ा संघर्ष करना होगा। इसका उदाहरण कुछ क्षेत्रों में अभी देखने को मिल रहा है।

वेबदुनिया पर पढ़ें