मंत्रियों का ब्लू फिल्म देखना है बड़ा अपराध

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012 (01:13 IST)
संविधान विशेषज्ञों की नजर में विधानसभा के भीतर मंत्रियों का ब्लू फिल्म देखना कानूनी दृष्टि से अपराध है। आईसीएआर के पूर्व कानूनी सलाहकार, कैट और हाईकोर्ट के वकील बैजनाथ प्रसाद पाठक के अनुसार मंत्रियों का फिल्म देखना उनके व्यक्तिगत मामले के तहत आता है। इसलिए पुलिस विधानसभाध्यक्ष की अनुमति लेकर पूर्व मंत्रियों के खिलाफ मामला दर्ज करके जांच आरंभ कर सकती है। देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीएन खरे के मुताबिक इस मामले में पुलिस सीधे तौर पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है। जबकि सुप्रीम कोर्ट की वकील मीनाक्षी लेखी का कहना है कि विधानसभा के भीतर की यह घटना विशेषाधिकार के दायरे में आती है।


जस्टिस खरे के मुताबिक विधानसभा के भीतर जो भी कुछ घटित होता है वह आसन के विशेषाधिकार के दायरे में आता है। इसलिए व्यक्तिगत मामला होने अथवा किसी सदस्य के द्वारा आपराधिक कृत्य करने की दशा में भी इसे पहले विधानसभाध्यक्ष की जानकारी में लाना होगा। वह मामले की स्थिति को देखकर संभावित एजेंसी से जांच तथा आगे की कार्यवाही के बारे में निर्णय लेंगे। जबकि बैजनाथ प्रसाद कहते हैं कि कर्नाटक के मामले में पहले मंत्रियों का दृष्टिकोण देखना होगा। जैसा कि मंत्री कह रहे हैं कि वे 'रेव पार्टी' की असलियत जानने और इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने के प्रयास को लेकर इसे देख रहे थे। यदि जांच के नतीजे में भी यही साबित होता है तो इसमें कोई बुराई नहीं है। वह ऐसा कर सकते हैं और तब जन सरोकार से जुड़ने के कारण विशेषाधिकार के दायरे में आएगा। लेकिन यदि वे मनोरंजन के इरादे से देख रहे थे तो यह वल्गैरिटी अथवा सार्वजनिक स्थान पर अश्लील अपराध की श्रेणी में आएगा। तब यह उनका निजी मामला होगा। इसका विधानसभा से कोई लेना-देना नहीं होगा। पाठक का कहना है कि मंत्री ऐसा न तो विधानसभा की अनुमति से कर रहे थे और न ही उनके इस क्रियाकलाप में विधानसभा का कोई लेना-देना था। इसलिए उन्हें इसके लिए पांच साल तक की सजा हो सकती है। लेकिन विधानसभा के भीतर जाने और जांच पड़ताल करने अथवा विधानसभा के भीतर हुई गतिविधि के खिलाफ मामला दर्ज करके इस अपराध की जांच करने के लिए पुलिस को विधानसभाध्यक्ष की अनुमति लेनी होगी। बैजनाथ के मुताबिक प्रथम दृष्टया यही लगता है कि मंत्री मनोरंजन के लिए ऐसा कर रहे थे। तभी उनसे इस्तीफा मांगा गया और उनका कृत्य कानूनन अपराध है। इसलिए विधानसभाध्यक्ष को उनके खिलाफ मामला दर्ज करके पुलिस को जांच की इजाजत देनी चाहिए।


वहीं संसद की सुरक्षा में तैनात वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी के मुताबिक आपराधिक मामलों, फाइल आदि के गायब होने अथवा सामान के चोरी हो जाने के मामले पुलिस थाने में ही दर्ज कराए जाते हैं। इतना जरूर है कि बिना सुप्रीम ऑफ द हाउस की अनुमति के पुलिस विधानसभा परिसर में प्रवेश नहीं कर सकती। ठीक वैसे ही जैसे अदालत में जाने के लिए अनुमति जरूरी होती है।

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