जानिए किस अंग को प्रभावित करते हैं शनि साढ़ेसाती के दौरान-
ज्योतिष शास्त्र में शनि की अहम् भूमिका है। नवग्रहों में शनि को न्यायाधिपति माना गया है। ज्योतिष फ़लकथन में शनि की स्थिति व दृष्टि बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। किसी भी जातक की जन्मपत्रिका का परीक्षण कर उसके भविष्य के बारे में संकेत करने के लिए जन्मपत्रिका में शनि के प्रभाव का आंकलन करना अति-आवश्यक है।
शनि स्वभाव से क्रूर व अलगाववादी ग्रह हैं। जब ये जन्मपत्रिका में किसी अशुभ भाव के स्वामी बनकर किसी शुभ भाव में स्थित होते हैं तब जातक के अशुभ फ़ल में अतीव वृद्धि कर देते हैं। शनि मंद गति से चलने वाले ग्रह हैं। शनि एक राशि में ढ़ाई वर्ष तक रहते हैं। शनि की तीन दृष्टियां होती हैं- तृतीय, सप्तम, दशम।
शनि जन्मपत्रिका में जिस भाव में स्थित होते हैं वहां से तीसरे, सातवें और दसवें भाव पर अपना दृष्टि प्रभाव रखते हैं। ज्योतिष अनुसार शनि दु:ख के स्वामी भी है अत: शनि के शुभ होने पर व्यक्ति सुखी और अशुभ होने पर सदैव दु:खी व चिंतित रहता है।
शुभ शनि अपनी साढ़ेसाती व ढैय्या में जातक को आशातीत लाभ प्रदान करते हैं वहीं अशुभ शनि अपनी साढ़ेसाती व ढैय्या में जातक को घोर व असहनीय कष्ट देते हैं। साढ़ेसाती की अवधि में शनिदेव जातक कि विभिन्न अंगों पर अपना शुभाशुभ प्रभाव डालते हैं। आज हम वेबदुनिया के पाठकों को विशेष तौर पर यह जानकारी प्रदान करेंगे कि साढ़ेसाती के दौरान शनि जातक के किस अंग को कितनी अवधि तक प्रभावित करते हैं-