प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा तिथि के दिन भाद्रपद पूर्णिमा व्रत (Bhadrapada Purnima Vrat) किया जाता है। इस व्रत में भगवान विष्णु के सत्यनारायण रूप की तथा उमा-महेश्वर की पूजा की जाती है। इस वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा 10 सितंबर 2022, शनिवार को मनाई जा रही है।
महत्व- धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान सत्यनारायण का पूजन किया जाता है। नारद पुराण के अनुसार भगवान सत्यनारायण के पूजन के साथ ही उमा-महेश्वर व्रत भी इसी दिन यानी भाद्रपद पूर्णिमा के दिन किया जाता है। यह व्रत खास तौर से महिलाएं रखती है। यह व्रत करने से जहां संतान बुद्धिमान होती है, वहीं यह व्रत सौभाग्य देने वाला भी माना जाता है।
भाद्रपद पूर्णिमा (bhadrapada purnima) के दिन उमा-महेश्वर का पूजन और व्रत किया जाता है। यह व्रत सभी कष्टों को दूर करके जीवन में सुख-समृद्धि लाता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेकर विधि-विधान पूर्वक भगवान सत्यनारायण और उमा-महेश्वर का पूजन करने की मान्यता है। पुष्प, फल, मिठाई, पंचामृत तथा नैवेद्य अर्पित करने कथा सुनने का विशेष महत्व है। इसी दिन से पितृ महालय प्रारंभ हो जाता है, और पूर्णिमा तिथि को पहला श्राद्ध होता है। अत: इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण करना उचित रहता है। इसके अलावा इस दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए।
इस दिन के महत्व को लेकर मत्स्य पुराण में एक कथा का वर्णन भी है, जिसके अनुसार एक बार महर्षि दुर्वासा भगवान शिव जी के दर्शन करके लौट रहे थे। तभी रास्ते में उनकी भेंट भगवान श्री विष्णु से हो गई। ऋषि दुर्वासा ने शिव जी द्वारा दी गई बिल्व पत्र की माला श्री विष्णु को दे दी। भगवान विष्णु ने उस माला को स्वयं न पहन कर गरुड़ के गले में डाल दी। इस बात से महर्षि दुर्वासा क्रोधित हो गए तथा विष्णु जी को श्राप दिया, कि लक्ष्मी जी उनसे दूर हो जाएंगी, उनका क्षीरसागर छिन जाएगा, शेषनाग भी सहायता उनकी नहीं कर पाएंगे।
तब भगवान विष्णु जी ने महर्षि दुर्वासा को प्रणाम किया और इस श्राप से मुक्त होने का उपाय पूछा, फिर महर्षि दुर्वासा ने उन्हें उमा-महेश्वर व्रत करने की सलाह दी, और कहा कि भाद्रपद पूर्णिमा के दिन यह व्रत करने के बाद ही उन्हें इस श्राप से मुक्ति मिल सकेगी।