वैष्णव उपासकों के लिए तो तुलसी जी का विशेष महत्व होता है। वह तुलसी की माला पहनते हैं और जपते हैं। तुलसी पत्र के बिना भोजन नहीं। कहा जाता है कि तुलसी पत्र डालकर जल या दूध चरणामृत बन जाता है तथा भोजन प्रसाद बन जाता है। इसीलिए तुलसी विवाह का महोत्सव वैष्णवों को परम आत्मतोष देता है। साथ ही प्रत्येक घर में छह महीने तक हुई तुलसी पूजा का इस दिन तुलसी विवाह के रूप में पारायण होता है।
तुलसी के गमले को गोमय एवं गेरू से लीप कर उसके पास पूजन की चौकी पूरित की जाती है। गणेश पूजा पूर्वक पंचांग पूजन के बाद तुलसी विवाह की सारी विधि होती है। लोग, मंगल वाद्ययंत्रों के साथ उन्हें पालकी में बिठाकर मंदिर परिसर एवं घर-आंगन में घूमाकर पूर्व स्थान से दूसरे स्थान पर रख देते हैं। बधाई के गीत गाए जाते हैं और सगुन में मिष्ठान्न, प्रसाद, फल एवं दक्षिणा दी जाती है। इस दिन रेवती नक्षत्र का तृतीय चरण पर्व के लिए विशेष महत्वपूर्ण होता है।