भारतीय संस्कृति में प्रत्येक मांगलिक कार्यक्रम के लिए बृहस्पति ग्रह का बड़ा ही महत्व है। जब गुरु बृहस्पति ग्रह सूर्य के नजदीक आते हैं तो बृहस्पति की सक्रियता न्यून हो जाती है जिसे हम अस्त होना भी कहते हैं। ऐसी अवस्था में जितने भी मांगलिक कार्य हैं, उसे नहीं किया जाता है और इस अवस्था को खरमास या मलमास कहा जाता है।
कब से लग रहा है खरमास?
ज्योतिषीय गणना के आधार पर इस वर्ष सूर्य 16 दिसंबर 2019 को शाम 18.30 पर धनु राशि में प्रवेश कर रहे हैं और 15 जनवरी 2020 को सुबह 4.57 तक इसी राशि में रहेंगे। इस घटना को आप कुंडली के सॉफ्टवेयर में तारीख और समय डालकर चेक कर सकते हैं जबकि पंचांग में दिसंबर 13 से खरमास का प्रारंभ होना बताया गया है। इस महीने में हिन्दू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और कोई भी धार्मिक संस्कार नहीं होता है।
हिन्दू धर्म में खरमास के महीने में किसी भी तरह के शुभ काम नहीं किए जाते। पंचांग की मानें तो जबसे सूर्य बृहस्पति राशि में प्रवेश करता है तभी से खरमास या मलमास प्रारंभ हो जाता है। हिन्दू धर्म में इस महीने को शुभ नहीं माना जाता है इसलिए इस महीने में किसी भी तरह के नए या शुभ काम नहीं किए जाते हैं। मलमास को मलिन मास माना जाता है। मलिन मास होने के कारण इस महीने को मलमास भी कहा जाता है।
क्या नर्क में जाता है खरमास में मरने वाला?
मान्यता है कि खरमास में यदि कोई प्राण त्याग करता है तो उसे निश्चित तौर पर नर्क में निवास मिलता है। इसका उदाहरण महाभारत में भी मिलता है, जब भीष्म पितामह शरशैया पर लेटे होते हैं लेकिन खरमास के कारण वे अपने प्राण इस माह नहीं त्यागते। जैसे ही सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, भीष्म पितामह अपने प्राण त्याग देते हैं।
मलमास या खरमास में किसी भी तरह का कोई मांगलिक कार्य न करें, जैसे शादी, सगाई, वधू प्रवेश, द्विरागमन, गृह प्रवेश, गृह निर्माण, नए व्यापार का आरंभ आदि। मांगलिक कार्यों के सिद्ध होने के लिए गुरु का प्रबल होना बहुत जरूरी है। बृहस्पति जीवन के वैवाहिक सुख और संतान देने वाला होता है।