ग्रहण काल के समय ध्यान रखें ये नियम, नहीं होगा अनिष्ट

हिंदू पंचांग के अनुसार 31 जनवरी 2018 को माघ मास की पूर्णिमा है। इसी दिन खग्रास चंद्रग्रहण भी है। माघ माह को बत्तीसी पूर्णिमा व्रत भी कहा जाता है। इस ग्रहण काल के समय कुछ खास नियमों को ध्यान रखते हुए कार्य करना चाहिए।

ग्रहण के दौरान सूतक (वेध) से लेकर ग्रहण समाप्ति तक वृद्ध, आतुर बालक व रोगी को छोड़कर किसी को भी अन्न-जल का सेवन नहीं करना चाहिए। जानिए खास नियम... 
 
ग्रहण काल में पालनीय नियम :- 
 
* ग्रहण स्पर्श के समय स्नान, 
 
* मध्य में हवन, यज्ञ आदि और ईष्ट देवपूजन, 
 
* मोक्ष के समय में श्राद्ध और दान, 
 
* ग्रहण मुक्त होने पर स्नान करें, यही क्रम है। 
 
* ऋतुमती (रजस्वला) स्त्री भी ग्रहण काल समाप्ति में तीर्थ स्थान से लाए गए जल से स्नान करें। यदि तीर्थ स्थान का जल न हो तो किसी पात्र में जल लेकर तीर्थों का आवाहन करके सिर सहित स्नान करें, परंतु स्नान के बाद बालों को निचोड़ें नहीं। 
 
* जो व्यक्ति ग्रहण काल में श्राद्ध करता है, उसको समस्त भूमि ब्राह्मणों को दान देने वाला पुण्य फल प्राप्त होता है। 
 
* स्वयं भगवान श्रीहरि विष्णु का कहना है कि ग्रहण काल में किए गए श्राद्ध का फल जब तक रहता है, जब तक कि सूर्य, चन्द्र व तारे विद्यमान रहेंगे। 
 
* श्राद्ध व दान बिना पकाए हुए अन्न से करना चाहिए, पके हुए अन्न से नहीं। 
 
विशेष : जो सूतक में, मरण में ग्रहण काल (सूर्य या चन्द्र ग्रहण) में भोजन करता है फिर वह मनुष्य नहीं होता है। 

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