शनि को प्रसन्न करना बहुत आसान है बस यह शुभ आदतें अपना लीजिए
न्यायदाता, कर्मफल, विधाता, शनिदेव शरण ग्रहण करते ही अपने भक्तों को कष्ट से अतिशीघ्र मुक्त करते हैं। जब शनि की साढ़ेसाती लगती है और जीवन में अचानक हानि का दौर प्रारंभ होता है, तब स्वत: जातक की बुद्धि (कहीं शनिदेव कष्ट तो नहीं दे रहे हैं) यह सोचने पर विवश हो जाती है। शनिदेव नवग्रहों में कालकारक एवं जातक के शुभ-अशुभ कर्मों का फल उनकी दशा, महादशा, अंतरदशा अथवा ढय्या, साढ़ेसाती के समय देते हैं।
यदि जातक के कर्म अच्छे हैं, जातक सात्विक, पवित्र एवं ध्यान-धारणा एवं भक्तिमार्ग पर चल रहा है, तब शनिदेव जातक की रक्षा करते हैं और यदि जातक कुमार्ग पर चलता है, तो शनिदेव ऐसे जातक को अपनों से दूर, बीमारी, पदच्युती, जेल यात्रा, कोर्ट केस, धनहानि आदि फल करते हैं। अत: शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए सदा माता-पिता की सेवा एवं धर्म मार्ग पर चलना चाहिए।
इस भ्रम से दूर रहें कि शनिदेव अपनी साढ़ेसाती में सबको कष्ट देते हैं। शनि कभी भी अशुभ नहीं हैं। शनि न्यायकर्ता हैं और शनि के दरबार में चापलूसी या रिश्वत का लेन-देन नहीं होता। आप असहायों की सहायता करेंगे, भिखारी एवं कौड़ियों को कंबल देंगे एवं भोजन कराएंगे, तो शनिदेव सदा प्रसन्न रहेंगे और जातक की उन्नति होगी।
यदि आप सहाय को असहाय करेंगे, दूसरों को कष्ट पहुंचाएंगे, मांस-मदिरा का सेवन एवं कुसंगति में रहेंगे तो शनि के प्रहार से ऐसे जातक को भयंकर विपत्तियों का सामना करना पड़ेगा। जो जातक माता-पिता को कष्ट देते हैं, अपशब्द कहते हैं, ऐसे जातकों को तीसरी साढ़ेसाती में संतान की ओर से घोर कष्टों का सामना करना पड़ता है।
अत: जातक के कर्मों का फल ही उसको भोगने को मिलता है और भय शनिदेव से आता है, यह गलत है। शनिदेव के पास कर्मों का फल देने का अधिकार है। अत: आपके अच्छे कर्म, सुख-संपत्ति के रूप में बुरे कर्म, हानि एवं विपत्ति के रूप में साढ़े साती में प्राप्त होते हैं।
शनि मकर एवं कुंभ राशि का स्वामी होता है एवं तुला राशि पर यह उच्च होता है अत: इन तीन राशियों के जातक पर शनि का प्रभाव हो तो उसमें शनि संबंधित गुण अधिक आते हैं। शनि प्रधान अथवा शनि के गुण-धर्म से जुड़े जातक अत्यधिक परिश्रमी एवं आत्मविश्वासी होते हैं। बार-बार असफलता का सामना करने पर भी ये आसानी से हार नहीं मानते हैं और निरंतर प्रयास करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ही लेते हैं। कार्यकुशलता, गंभीरता, ध्यान-धारणा, साधना, धूर्तता, चतुराई, डिस्कवरी, प्रधान व्यक्तित्व आदि विशेष गुण होते हैं।
शनि के शुभ संबंध हों तो यह मंत्री एवं राजनीतिक पद प्रदान करता है। कलयुग में शनि राजनीति का मुख्य कारक ग्रह है। अत: शनि को बलवान करना अत्यंत आवश्यक है। यह रात्रि में बलवान होता है तथा जिनका जन्म रात्रि का हो और शनि कुंडली में शुभ हो तो ऐसे जातक को शनि पितातुल्य पालन करता है। बड़े-बड़े एक्सीडेंट से भी जातक सुरक्षित बाहर निकल जाता है। लोग आश्चर्य करते हैं कि ये बच कैसे गया?
जैसे अमिताभ बच्चन की कुंभ लग्न कुंडली में कारक ग्रह शनि चतुर्थ में बैठकर जनता के दिलों में विशेष जगह बनाता है, वहीं कुंभ का कारक होकर लग्न पर शनि भी पूर्ण दृष्टि होने से बड़े से बड़े एक्सीडेंट (बीमारी) से बाहर निकल आता है। अत: शनि शुभत्व लिए हुए हो तो जातक को काल के गाल से भी निकाल लाता है और शनि अशुभ हो तो जातक को व्यर्थ के जंजाल एवं विपरीत परिस्थितियों में ऐसा उलझाता है कि वह सुलझने के लिए जितना प्रयास करता है, उतना ही उलझता जाता है।