शरद पूर्णिमा के दिन आकाश में वर्ष का सबसे बड़ा पूर्ण चंद्रमा दिखाई देता है। वर्ष में 12 पूर्णिमाएं होती हैं जिसमें से शरद पूर्णिमा का चंद्रमा अन्य पूर्णिमा के चंद्रमाओं से बड़ा और भिन्न दिखाई देता है। खगोलशास्त्र में इसे पेरिगी-सिजीगी मून कहा जाता है। यह पूर्णिमा अश्विन मास में आती है। इसका चांद्र नीला दिखाई देता है। इसे सुपरमून कहते हैं। आओ जानते है कि शरद पूनम के चंद्रमा का क्या है सांइस। उल्लेखनीय है कि 17 अक्टूबर को यह बड़ा मून नजर आया था जो आज भी नजर आएगा।ALSO READ: Mini Moon की क्या है Mystery, 2 चंद्रमाओं पर क्यों है दुनियाभर की नजरें, क्या भारत में दिखाई देगा
1. सबसे बड़ा दिखाई देता है चंद्रमा : शरद पूर्णिमा का चंद्र अन्य पूर्णिमा के चंद्रमा से थोड़ा बड़ा नज़र आता है। कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात को चांद आम दिनों की अपेक्षा आकार में 14 फीसद बड़ा और चमकदार दिखाई देता है।
2. वर्ष में एक बार ही दिखता है ब्लू मून : कहते हैं कि नीला चांद वर्ष में एक बार ही दिखाई देता है। परंतु विज्ञान की सृष्टि में नीले चांद के अलग मायने हैं। हालांकि शरद पूर्णिमा पर भी चांद नीला ही दिखाई देता है। एक शताब्दी में लगभग 41 बार ब्लू मून दिखता है जबकि हर तीन साल में 13 बार फूल मून होता है।
3. ब्लू मून की घटना : वर्ष 2018 में दो बार ऐसा अवसर आया जब ब्लू मून की घटना हुई। उस दौरान पहला ब्लू मून 31 जनवरी जबकि दूसरा 31 मार्च को हुआ। 31 अगस्त 2023 तीसरा सबसे बड़ा मून नजर आया। इसी साल बुधवार शरद पूर्णिमा की रात को आसमान में ब्लू मून अफ्रीका, अमेरिका, यूरोप समेत एशिया के कई देशों में दिखाई दिया, लेकिन यह पिछले मून की अपेक्षा थोड़ा छोटा था। इसके बाद अगला बड़ा मून 'ब्लू मून' साल 2028 और 2037 में देखने को मिलेगा।ALSO READ: शरद पूर्णिमा पर लक्ष्मी पूजा, चंद्रमा की महत्ता और पौराणिक कथा का संपूर्ण वर्णन
4. क्यों दिखाई देता है नीला : चांद प्रकाश के लिए सूर्य पर निर्भर करता है। उसका खुद का कोई प्रकाश नहीं होती। चंद्रमा की सतह से टकराकर लौटने वाली किरणों से ही चांद धरती पर लोगों को दिख पाता है। धरती के कारण सूर्य का पूरा प्रकाश चांद पर नहीं पड़ता जिसके कारण चांद के रंगों में बदलाव आ जाता है। चांद से टकराकर जब रोशनी धरती पर आती है तो उसके रंगों में बदलाव देखने को मिलता है। इसीलिए कभी लाल, नाररंगी, पिंक, नीला, सफेद चमकीला और कभी गुलाबी नजर आता है। कई बार धरती के प्रदूषण के कारण चांद का रंग पीला या नारंगी भी नजर आता है तो कई बार मौसम में हो रहे बदलावा के कारण।
5. चंद्र मास : उल्लेखनीय है चंद्र मास की अवधि 29 दिन, 12 घंटे, 44 मिनट और 38 सेकेंड की होती है, इसलिए एक ही महीने में दो बार पूर्णिमा होने के लिए पहली पूर्णिमा उस महीने की पहली या दूसरी तारीख को होनी चाहिए।
6. सोलह कलाओं से पूर्ण चांद : पौराणिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात को चांद पूरी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इस दिन चांदनी सबसे तेज प्रकाश वाली होती है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत गिरता है। ये किरणें सेहत के लिए काफी लाभदायक मानी जाती है।
7. चन्द्रमा का प्रभाव : वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है इन कारणों से शरीर के अंदर रक्त में न्यूरॉन सेल्स क्रियाशील हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान ज्यादा उत्तेजित या भावुक रहता है। एक बार नहीं, प्रत्येक पूर्णिमा को ऐसा होता रहता है।
8. ज्वार-भाटा : पूर्णिमा के दिन चांद का धरती के जल से संबंध बनती है। जब पूर्णिमा आती है तो समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है, क्योंकि चंद्रमा समुद्र के जल को ऊपर की ओर खींचता है। मानव के शरीर में भी लगभग 85 प्रतिशत जल रहता है। पूर्णिमा के दिन इस जल की गति और गुण बदल जाते हैं।
9. दिमाग पर असर : पूर्णिमा की रात मन ज्यादा बेचैन रहता है और नींद कम ही आती है। कमजोर दिमाग वाले लोगों के मन में आत्महत्या या हत्या करने के विचार बढ़ जाते हैं।
10. चय-उपचय की क्रिया : जिन्हें मंदाग्नि रोग होता है या जिनके पेट में चय-उपचय की क्रिया शिथिल होती है, तब अक्सर सुनने में आता है कि ऐसे व्यक्ति भोजन करने के बाद नशा जैसा महसूस करते हैं और नशे में न्यूरॉन सेल्स शिथिल हो जाते हैं जिससे दिमाग का नियंत्रण शरीर पर कम, भावनाओं पर ज्यादा केंद्रित हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों पर चन्द्रमा का प्रभाव गलत दिशा लेने लगता है। इस कारण पूर्णिमा व्रत का पालन रखने की सलाह दी जाती है।