12 फरवरी को मनेगा सूर्य सप्तमी व्रत, कैसे करें पूजन, जानिए प्रामाणिक विधि
- श्री रामानुज
सूर्य और चंद्र प्रत्यक्ष देव माने जाते हैं। अन्य देवता अदृश्य रूप से पृथ्वी और स्वर्ग में विचरण करते हैं, परंतु सूर्य को साक्षात देखा जा सकता है। इस पृथ्वी पर सूर्य जीवन का सबसे बड़ा कारण है। प्राचीनकाल से ही कई सभ्यताओं तथा धर्मों में सूर्य को वंदनीय व देवता माना जाता रहा है। इसकी शक्ति और प्रताप के गुणों से धर्मग्रंथ भरे पड़े हैं।
वर्ष 2019 में माघ शुक्ल सप्तमी यानी मंगलवार, 12 फरवरी को भगवान भास्कर की जयंती सूर्य सप्तमी मनाई जाएगी। इसे अचला या रथ सप्तमी भी कहते हैं। पौराणिक शास्त्रों में माघ सप्तमी के दिन भगवान सूर्य का आर्विभाव दिवस बताया गया है। इस दिन नमक रहित भोजन तथा उपवास करने का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा नदी पर स्नान करने की बड़ी महिमा है।
इस दिन गुड़ का सेवन करते हैं। सूर्य की रोग शमन शक्ति का उल्लेख वेदों, पुराणों और योगशास्त्र आदि में विस्तार से किया गया है। आरोग्यकारक शरीर को प्राप्त करने के लिए अथवा शरीर को निरोग रखने के लिए सूर्य सप्तमी अथवा भानु सप्तमी के दिन सूर्य की उपासना के अनेकानेक कृत्य कई प्रयोजनों एवं प्रकारों से किए जाते हैं। इस कारण माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अर्क, अचला सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी और भानु सप्तमी आदि के विभिन्न नामों से जाना जाता है। इस दिन जो भी व्यक्ति सूर्यदेव की उपासना करता है, वह सदा निरोगी रहता है।
सूर्य सप्तमी पूजन की सरल विधि :-
* सूर्य सप्तमी का व्रत माघ शुक्ल सप्तमी के दिन होता है।
* इस बार यह व्रत 12 फरवरी, मंगलवार के दिन है।
* प्रात:काल किसी अन्य के जलाशय में स्नान करने से पूर्व स्नान किया जाए तो यह बड़ा ही पुण्यदायी होता है।
* माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी अथवा जलाशय में स्नान करके सूर्य को दीपदान करना उत्तम फलदायी माना गया है।
* दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर सूर्यदेव की अष्टदली प्रतिमा बनाकर मध्य में शिव व पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करें।
* पूजन के बाद तांबे के बर्तन में चावल भरकर ब्राह्मणों को दान करना चाहिए।
* स्त्रियों को चाहिए कि वे इस दिन एक बार भोजन करके सूर्यदेव की पूजा करें।
* इस व्रत को महिलाएं सूर्य नारायण के निमित्त करती हैं इसीलिए इसे सौर सप्तमी भी कहते हैं। यह सप्तमी स्त्रियों के लिए मोक्षदायिनी है।
सूर्य सप्तमी की पौराणिक कथा :- एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि कृपा करके यह बताइए कि कलयुग में स्त्री किस व्रत के प्रभाव से अच्छे पुत्र वाली हो सकती है?
तब श्रीकृष्ण ने कहा कि प्राचीनकाल में इंदुमती नाम की एक वेश्या थी। उसने एक बार वशिष्ठजी के पास जाकर कहा कि मुनिराज, मैं आज तक कोई धार्मिक कार्य नहीं कर सकी हूं। कृपा कर यह बताइए कि मुझे मोक्ष कैसे मिलेगा?
वेश्या की बात सुनकर वशिष्ठजी ने बताया कि स्त्रियों को मुक्ति, सौभाग्य और सौंदर्य देने वाला अचला सप्तमी से बढ़कर और कोई व्रत नहीं है इसीलिए तुम इस व्रत को माघ शुक्ल सप्तमी के दिन करो, इससे तुम्हारा सभी तरह से कल्याण हो जाएगा।
वशिष्ठजी की शिक्षा से इंदुमति ने यह व्रत विधिपूर्वक किया और इसके प्रभाव से शरीर छोड़ने के बाद वह स्वर्गलोक में गई। वहां वह समस्त अप्सराओं की नायिका बन गई। स्त्रियों के लिए इस व्रत का विशेष महत्व है।
माघ सप्तमी को सूर्य की जयंती के साथ अचला सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी और भानु सप्तमी आदि के रूप में भी मनाया जाता है।