सब कुछ तय होता है विक्रम संवत के प्रारंभ और उसके अंत से क्योंकि यह एक जांचा-परखा और प्रकृति का कैलेंडर है। वेदों और अन्य ग्रंथों में सूर्य, चंद्र, पृथ्वी और नक्षत्र सभी की स्थिति, दूरी और गति का वर्णन किया गया है। स्थिति, दूरी और गति के मान से ही पृथ्वी पर होने वाले दिन-रात और अन्य संधिकाल को विभाजित कर एक पूर्ण सटीक पंचांग बनाया गया है। पंचांग- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण आधारित पंचांग के आधार पर ही सौरमास, चंद्रमास, नक्षत्रमास और सावनमान आदि को बनाया गया है। इसी पर आधारित वर्ष का भेद भी किया गया है। प्रत्येक वर्ष को नवसंवत्सर कहते हैं। प्रत्येक संवत्सर का नाम अलग-अलग है। कुल 60 संवत्सर बताए गए हैं और प्रत्येक संवत्सर की प्रकृति भी भिन्न बताए गई है। अर्थात किस संवत्सर में कौनसी घटना घटेगी इसका भी वर्णन हमें ज्योतिष सिद्धांत की किताबों में मिलता है।
बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि साठ वर्षों में बारह युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में पांच-पांच वत्सर होते हैं। बारह युगों के नाम हैं- प्रजापति, धाता, वृष, व्यय, खर, दुर्मुख, प्लव, पराभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय। प्रत्येक युग के जो पांच वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम संवत्सर है। दूसरा परिवत्सर, तीसरा इद्वत्सर, चौथा अनुवत्सर और पांचवा युगवत्सर है। 12 वर्ष बृहस्पति वर्ष माना गया है। बृहस्पति के उदय और अस्त के क्रम से इस वर्ष की गणना की जाती है। इसमें 60 विभिन्न नामों के 361 दिन के वर्ष माने गए हैं। बृहस्पति के राशि बदलने से इसका आरंभ माना जाता है।
इनके नाम इस प्रकार हैं:- प्रभव, विभव, शुक्ल, प्रमोद, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा, धाता, ईश्वर, बहुधान्य, प्रमाथी, विक्रम, वृषप्रजा, चित्रभानु, सुभानु, तारण, पार्थिव, अव्यय, सर्वजीत, सर्वधारी, विरोधी, विकृति, खर, नंदन, विजय, जय, मन्मथ, दुर्मुख, हेमलम्बी, विलम्बी, विकारी, शार्वरी, प्लव, शुभकृत, शोभकृत, क्रोधी, विश्वावसु, पराभव, प्ल्वंग, कीलक, सौम्य, साधारण, विरोधकृत, परिधावी, प्रमादी, आनंद, राक्षस, नल, पिंगल, काल, सिद्धार्थ, रौद्रि, दुर्मति, दुन्दुभी, रूधिरोद्गारी, रक्ताक्षी, क्रोधन और अक्षय।
नया विक्रम संवत कर 06:02 बजे वृषभ लग्न में प्रवेश करेगा और चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल, 2021 का शुभारंभ रेवती नक्षत्र में मंगलवार को रेवती नक्षत्र में शुरू होगी। इस बार, अमावस्या और नव संवत्सर के दिन, सूर्य और चंद्रमा मीन राशि में ठीक एक ही अंश पर हैं अर्थात् मीन राशि में नया चंद्रमा उदय होगा। वृषभ राशि में मंगल और राहु दोनों ही विद्यामान हैं। राजा, मन्त्री और वर्षा का अधिकार मंगल ग्रह के पास है। विक्रम संवत 2078 में मंगल ग्रह राजा व मंत्री का पद मिला है तथा वित्त का गुरु ग्रह को मिला है।
मंगल को युद्ध का देवता कहा जाता जाता है। यह हिंसा, दुर्घटना, भूकंप, विनाश, शक्ति, सशस्त्र बलों, सेना, पुलिस, इंजीनियरिंग, अग्निशमन, शल्य चिकित्सा, कसाई, छिपकर हत्या करने वाला, दुर्घटना, अपहरण, बलात्कार, उपद्रव, सामाजिक और राजैनतिक अस्थिरता के कारक ग्रह हैं। विक्रम संवत 2078 के राजा मंगल होने से इस साल आंधी-तूफान का भी जोर रहेगा। मतलब लोग महामारी से मुक्त होंगे परंतु उपद्रव और प्राकृतिक घटनाओं से परेशान रहेंगे।