लग्न में केतु शुभ नहीं का होना प्राय: शुभ नहीं समझा जाता। लग्नस्थ केतु जातक को शंकालु, चिंताग्रस्त व भ्रमिष्ट बना देता है। वात व्याधि से भी ऐसे जातक पीड़ित रहते हैं। केतु प्रधान जातक जीवन में कोई लक्ष्य या महत्वाकांक्षा नहीं रखते... 'जैसा चल रहा है, चलने दे' इस मानसिकता के चलते रेस में सदैव पीछे रहना पसंद करते हैं।
ऐसे व्यक्तियों को हँसना-खिलखिलाना पसंद नहीं होता। अति शुभ सूचना भी वे निराश होकर ही देंगे। हाँ सिंह लग्न, मकर या कुंभ में केतु हो तो वैभव, चल-अचल संपत्ति व पुत्र सुख का कारक बनता है।
यदि केतु सूर्य के साथ हो तो मन सदैव शंकालु बनाता है, आत्मविश्वास का अभाव देता है। चंद्र-केतु युति पानी से भय व जीवन में संघर्ष दिखाती है। मंगल-केतु युति होने पर व्यक्ति जीवन में कोई रस नहीं लेता। शुक्र-युति विवाह व काम सुख में बाधा डालती है।
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गुरु-केतु युति प्रतियुति आध्यात्म में रुचि देती है व सिद्धि मार्ग का रास्ता दिखाती है। केतु शुभ दृष्टि में हो तो जातक आध्यात्म-उपासना का मार्ग चुनता है व ईश्वर कृपा का भागी बनता है। बुध के साथ होने पर व्यक्ति मितभाषी होता है।
विशेष : केतु की प्रतिकूलता को कुत्ते को भोजन देकर, कोढ़ी-अपाहिजों की सेवा करके और गणेश जी की आराधना करके व खूब हँसकर कम किया जा सकता है।